विचार / लेख
-बादल सरोज
दुनिया की 60 फीसद आबादी वाला एशिया इस वर्ल्डकप से भी बाहर हो चुका है। फीफा इतिहास में मोरक्को पृथ्वी पर दूसरी सबसे अधिक आबादी वाले महाद्वीप अफ्रीका की चौथी टीम है जो क्वार्टर फाइनल में पहुंची है।
इसके पहले 1990 में कैमरून, 2002 में सेनेगल और 2010 में घाना की टीम क्वार्टर फाइनल में पहुँच चुकी हैं।
1990 में कैमरून की टीम क्वार्टर फाइनल में पहुँचने वाली पहली अफ्रीकी टीम थी। इसने ग्रुप मैच में अर्जेंटीना - तब मैराडोना की अर्जेंटीना - को एक गोल से हराकर दुनिया को चौंका दिया था।
कैमरून की इस टीम के नायक थे #रोजर_मिल्ला जिन्होंने उस वर्ल्ड कप में 38 वर्ष की उम्र में 4 और 1994 के वर्ल्ड कप में 42 वर्ष 39 दिन की उम्र में रूस के खिलाफ भी एक गोल किया था ; फीफा मुकाबलों में वे आज भी सबसे अधिक उम्र में गोल करने वाले फुटबॉलर हैं। हर गोल करने के बाद उसकी ख़ुशी मनाते समय किया जाने वाला उनका डांस उनके गोलों से भी ज्यादा आनंददायी होता था। गजब के थिरकते थे रोजर मिल्ला - उनका पूरा शरीर नाचता था।
भले अफ्रीकी देश फीफा में फाइनल्स में न हों - मगर फुटबॉल में वे ही वे हैं। पिछली 2018 की विजेता, मौजूदा चैंपियन फ्रांस की टीम के 78.3% खिलाड़ी (23 में से 14) का मूल 11 अफ्रीकी देश हैं । उसकी तब 19 साल की और आज 23 साल की उम्र के सबसे बड़ी ताकत और तब के एमबाप्पे कैमरूनी पिता और अलजीरियन माँ की संतान हैं ।
पिछले फाइनल में पहुंचाने वाला गोल दागने वाले उमतीति भी अफ्रीकी हैं। फीफा 2018 में तीसरी जगह के लिए भिड़ी इंग्लैंड टीम के 23 में से 11 और बेल्जियम की टीम में करीब आधे (47.8%) खिलाड़ी अफ्रीकी मूल के हैं ।
बेल्जियम की जीत में जिन रोमेलु लुकाकु और विंसेंट कोम्पानी का पसीना और गोल जुड़े हैं वे कांगो मूल के हैं । यहां जर्मनी इत्यादि का जिक्र नही कर रहे हैं ।
मैराडोना ने ठीक ही पिछले वर्ल्डकप को आप्रवासियों का विश्वकप बताया था।
अमीर देश और उनके अमीर क्लब्स अफ्रीका से सिर्फ सोना-हीरा-खनिज और सम्पदा चुराकर ही नहीं ले जाते। इन अफ्रीकियों की देह के बल के दम पर खिताब भी जीतते हैं। मगर एक दिन आएगा जब सेमीफाइनल और फाइनल में एशिया और अफ्रीका होंगे ;
हम इन्तजार करेंगे !!