विचार / लेख
painting Bimal Bishwas
-ध्रुव गुप्त
कभी आपने सोचकर देखा है कि कुछ अपवादों को छोड़कर सृष्टि के समय से लेकर आजतक हमारी दुनिया इस क़दर अराजक, अव्यवस्थित, क्रूर, हिंसक और अमानवीय क्यों रही है ? यह शायद इसीलिए है कि दुनिया को बनाने, चलाने और मिटाने वाला ईश्वर हमेशा से पुरुष ही रहा है। दुनिया के किसी भी धर्म ने स्त्री को ईश्वर बनाने के लायक नहीं समझा। बावज़ूद इसके कि प्रेम, वात्सल्य, दया, करुणा, क्षमा जैसे ईश्वर के जो गुण बताए गए हैं वे बहुतायत से स्त्रियों में ही मौज़ूद हैं। ईश्वर की प्रतिनिधि के रूप में जीवन की श्रृंखला को आगे वे ही बढ़ाती रही हैं। एक ईश्वर ही क्यों, ईश्वर के तमाम अवतार, पैगंबर, देवदूत, फ़रिश्ते और संदेशवाहक पुरुष ही रहे हैं। और तो और, दुनिया के किसी भी धर्म के धर्मगुरु आज तक पुरुष ही बनते या बनाए जाते रहे हैं। धर्म यह तो मानते हैं कि स्त्री ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट रचना है और इसीलिए उसका सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन सच्चाई यह है कि धर्मों ने स्त्रियों की स्वतंत्र सोच, इच्छा और व्यक्तित्व को कुंठित कर उसे पुरुषों की इच्छाओं के अनुरूप चलाने की साज़िशें भी कम नहीं की हैं।
पुरुषवादी सोच की विकृतियां सुख, मुक्ति और स्वर्ग का रास्ता बताकर स्त्रियों पर लादी जाती रही हैं और स्त्रीत्व के आभूषण मानकर वे खुशी-खुशी इन्हें स्वीकार भी करती रही हैं और अपनी अगली पीढ़ियों को हस्तांतरित भी। गड़बड़ी यही हो गई। जो पुरुष अपने छोटे-से घर तक को व्यवस्थित नहीं रख सकता, उसे आप दुनिया भर की ख़ुदाई दे देंगे तो दुनिया का वही हाल होना है जो अपने चारो तरफ़ हम देखते आए हैं। ज़मीन से आसमान तक पुरुष की निरंकुश सत्ता ने हमारी इस खूबसूरत दुनिया को बहुत बदसूरत बनाया है। इस सिलसिले को अब उलटने की ज़रुरत है। वक़्त आ गया है कि आसमान में पुरुष ईश्वर को सृष्टि के सर्वोच्च पद से बेदख़ल कर उसकी जगह वहां किसी स्त्री ईश्वर को स्थापित किया जाय और यहां ज़मीन पर नीतियों के निर्धारण और इस दुनिया को चलाने की ज़िम्मेदारी पूरी तरह स्त्रियों को सौंप दी जाय।
आप मानें या न मानें, इस दुनिया को बचाने और उसे व्यवस्थित करने का अब एक ही रास्ता बचा है-ज़मीन औरत की, आकाश औरत का !