विचार / लेख
-संजय पाण्डेय
कल एक नाटक देखने पृथ्वी थिएटर (जुहू , मुंबई ) गया था नाटक शुरू होने में थोड़ा वक्त था तो तब तक वहाँ की लायब्रेरी में कुछ किताबें ख़रीदने चला गया, जब किताबों का बिल दे रहा था तो वहाँ काउंटर पे एक सज्जन उस बंदे से बात कर रहे थे जो काउंटर पे बैठा था, वो पूछ रहे थे कि यहाँ जो किताबें बिकने के लिए आती हैं वो आप लोग किससे लेते हैं कोई व्यक्ति अपनी लिखी किताब यहाँ आके बेच सकता है या पब्लिशर्स के ज़रिए आना पड़ता है? उसने कहा सर हम पब्लिशर्स के द्वारा ही किताब लेते हैं किसी व्यक्ति से नहीं, वो थोड़ा उदास हुए और उनने कहा एक मेरी लिखी किताब है पर किसी बड़े पब्लिशर्स ने नहीं छापी है और मुझे यहाँ बुक स्टॉल पर बेचने के लिए देनी है, क्या करना होगा उसके लिए ?
...कैशियर मेरी किताबों की बिलिंग कर रहा था और मैं उन सज्जन को चुपचाप देख रहा था और उनकी बातें सुन रहा था. जब नहीं रहा गया तो मैंने धीरे से पूछ लिया कौन सी किताब लिखी है आपने ? वो धीरे से बोले - इरफ़ान, मैंने कहा अभिनेता इरफ़ान के ऊपर लिखी है, वो बोले हाँ . अब तक मेरा उत्साह बढ़ चुका था, वो बोले पर इरफ़ान की आत्मकथा नहीं है उनके साक्षात्कार हैं, मैंने कहा - मैं देख सकता हूँ? उन्होंने अपने थैले में हाथ डाला और एक प्रति निकाली, मैंने जब लेखक का नाम पढ़ा तो लगा ये नाम तो पढ़ा और सुना हुआ है - अजय ब्रम्हात्मज ..मैं हतप्रभ सा था समझ नहीं आ रहा था कि ये स्वयं अजयजी हैं या कोई और, पत्रकारिता की दुनियाँ का एक बड़ा नाम हैं अजयजी, मैंने फ़िल्मों को ले के इनकी समीक्षाएँ पढ़ीं हैं, मैं सकते में था, मैं उन्हें चुपचाप देख रहा था और उस काउंटर वाले पे ग़ुस्सा भी आ रहा था, फिर मैंने उनसे कहा कि मैं एक प्रति इस किताब की ख़रीद सकता हूँ वो बोले हाँ ले लीजिए, मैंने पूछा आप कहाँ से हैं वो बोले बिहार से ..किताब की क़ीमत 299/ थी, और मैंने उन्हें 500 का नोट दिया और उनने 200 लौटाये. मैं चलने को हुआ तो उन्होंने रोका - जनाब आपके 1 रुपये बचे हैं वो लेते जाइये, मैं उन्हें धन्यवाद बोलके चला आया और आज उसे पढ़ना शुरू किया ..