विचार / लेख
-दिनेश चौधरी
अर्जेंटीना फुटबॉल में अपना दोस्त है और हॉकी में दुश्मन। वह शायद विश्वकप का कोई मैच था, जिसमें भारतीय हॉकी टीम को सेमी फायनल में पहुँचने के लिए अर्जेंटीना को हराना जरूरी था। अर्जेंटीना ने मैच ड्रा खेलकर भारत को बाहर कर दिया और इसके बाद से अपन ने उस मुल्क को दिल से माफ नहीं किया।
मैराडोना बहुत बाद में आए। कहा, ‘जाने भी दो! ऐसी दुश्मनी ठीक नहीं।’ तब से उनसे दोस्ती रही पर सिर्फ फुटबॉल के मैदान में। हॉकी में अब भी भिड़ंत होती है और अपना पसंदीदा खेल वही है। भला हो नवीन पटनायक का, जिनके चलते अपन अब जीतने भी लगे हैं। पता नहीं सिर्फ आस्ट्रेलिया के सामने क्या हो जाता है?
फुटबॉल से अपना कुछ बनता-बिगड़ता नहीं है। किसी के भी हारने पर जबरन दु:खी हो सकते हैं और किसी के भी जीतने पर खुशियाँ मना सकते हैं। और इसका भी मन न हो तो सन्यासियों की तरह के तटस्थ भाव से इस खेल को वैसे देख सकते हैं, जैसे वे इस असार-संसार को देखते हैं। वे शोक, दु:ख, प्रसन्नता, राग-विराग से ऊपर उठ जाते हैं। ‘बाजीचा-ए-अतफाल है दुनिया मिरे आगे/ होता है शब-ओ-रोज तमाशा मिरे आगे।’ मिर्जा गालिब ने यह शेर वल्र्ड कप फुटबॉल देखते हुए ही लिखा था।
फुटबॉल अपने बचपन का खेल है। गिल्ली-डंडा और दीगर देसी खेलों के अलावा अपने गाँव में यही एक खेल था जो ‘इंटरनेशनल’ था। दूसरे गाँवों से टीमें आती थीं और हारकर जाती थीं। इन जीतों के कारण अपन ने उन्हीं दिनों में 56 इंच का सीना हासिल कर लिया था जो गैरों को बहुत बाद में मिला। अपना हीरो सरजू था। फुल बैक। बारिश के दिनों में उसकी दिलचस्पी खेलने में कम और फिसलने में ज्यादा होती थी। वह उन गेंदों पर भी हैडिंग लगाता था, जिस पर दूसरे खिलाड़ी किक लगाते हैं। आगे फुटबॉल का मतलब बस मोहन बागान और ईस्ट बंगाल रहा, जिनके हारने-जीतने की खबरें अपन ‘खेल-समाचार’ में इंदु वाही से सुन लिया करते थे। अब अर्जेंटीना और फ्रांस भी अपने लिए ईस्ट बंगाल और मोहन बागान की तरह ही है। न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर!
आगे जसदेव सिंह के कारण हॉकी से दोस्ती हुई। अपना पसंदीदा खेल आज तक यही है, हालांकि विदेशी टीमों ने एशियाई हॉकी को खत्म करने के लिए इस खेल को भी फुटबॉल की तरह का बना डाला। वरना वो भी क्या दिन थे जब इधर मोहम्मद शाहिद होते थे और उधर हसन सरदार। अशोक और गोविंदा का जिक्र तब अमोल पालेकर की ‘गोल माल’ में भी हो जाया करता था। हॉकी आम हिंदुस्तानी का खेल है। जशपुर, रायगढ़, भोपाल से ढेर खिलाड़ी निकल आते थे। बाजार को आम भारतीयों का खेल पसन्द नहीं आया। उसने ‘भगवान’ और ‘रत्न’ गढ़े और खेलों को खेल के मैदान से बाहर कर दिया।
बहरहाल, आधी रात को नींद खराब करने की मेरी बात का ‘फीफा’ ने गंभीरता से संज्ञान लिया है और अब आगे के मैच शाम साढ़े आठ बजे होंगे। आप चाहें तो मुझे दिल से धन्यवाद दे सकते हैं!