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नीतीश कुमार बिहार में शराब नीति की समीक्षा के लिए तैयार क्यों नहीं?
17-Dec-2022 3:54 PM
नीतीश कुमार बिहार में शराब नीति की समीक्षा के लिए तैयार क्यों नहीं?

-चंदन कुमार जजवाड़े

नशा मुक्ति का जिस प्रकार से नीतीश कुमार ने अभियान चलाया है। आने वाली पीढिय़ों को बचाने के लिए उन्होंने जो बीड़ा उठाया है, मैं उनका बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं बधाई देता हूं।
-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री, भारत (5 जनवरी, 2017)
हमने साथ दिया है आज भी हम साथ हैं और शराबबंदी के पक्ष में हैं। लेकिन इस तरह की शराबबंदी जिसमें लाखों लोगों को जेल जाना पड़े और पूरा राज्य पुलिस राज्य में बदल जाए, उसकी समीक्षा तो मुख्यमंत्री जी को करनी चाहिए।
-सुशील मोदी, राज्यसभा सांसद, बीजेपी (15 दिसंबर, 2022)
दोनों नेता यूं तो भारतीय जनता पार्टी के नेता हैं। दोनों के नाम में मोदी है। दोनों शराबबंदी के पक्ष में हैं। पर पाँच साल के अंतराल में बिहार के इस क़ानून की तारीफ़ के बाद मामला समीक्षा तक पहुँच चुका है।
एक अहम फर्क ये भी है कि 2017 में नीतीश बीजेपी के साथ बिहार की सत्ता में थे। वहीं 2022 में जब सुशील मोदी ने शराबबंदी कानून की समीक्षा की बात की तो बीजेपी राज्य में नीतीश के खिलाफ यानी विपक्ष में है।

यही वजह है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बीजेपी के बयान में राजनीति की बू आ रही है। और वो ये मानने को तैयार नहीं कि बिहार में शराबबंदी कानून की समीक्षा की जरूरत है।
इसके लिए साफ़ शब्दों में उन्होंने भले ही इनकार नहीं किया, लेकिन पिछले दो दिन के बयान यही दर्शाते हैं।
16 दिसंबर को नीतीश कुमार ने कहा, शराब पीकर और भी राज्यों में लोग मर रहे हैं। शराब पीना गलत है। हम तो कह रहे हैं जो पिएगा, वो मरेगा। दारू पीकर मरने वालों को हम कोई मुआवजा देंगे इसका सवाल ही नहीं उठता।

15 दिसंबर को उन्होंने साफ कहा था कि इस कानून से राज्य की महिलाएं काफ़ी खुश हैं।

शराबबंदी कानून

बिहार राज्य में साल 2016 से शराबबंदी कानून लागू है। बिहार में शराब पीने से लेकर इसे खरीदने बेचने पर भी पाबंदी है।
यहां तक कि कोई व्यक्ति बाहर से भी खऱीदकर अपने पास शराब नहीं रख सकता है।

बिहार में शराब के अवैध कारोबार को रोकने के लिए पुलिस और आबकारी विभाग को जिम्मेदारी सौंपी गई है।
समय और सख़्ती के बावज़ूद भी बिहार में शराबबंदी क़ानून को तोडऩे के मामले कम होने की जगह हर साल बढ़ते जा रहे हैं।

जहरीली शराब से मौतें
यही नहीं बिहार में जहरीली शराब पीकर कई बार लोगों की मौत भी हो रही है।
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद से अब तक करीब 300 लोगों की मौत ज़हरीली शराब पीने से हुई है।
बिहार के औरंगाबाद में इसी साल जहरीली शराब पीने से कई लोगों की मौत हो गई थी।

पिछले साल भी अक्टूबर-नवंबर महीने में राज्य के गोपालगंज, सिवान, और चंपारण में एक महीने के अंदर जहरीली शराब पीने से 65 से ज़्यादा लोगों की मौत के मामले सामने आए थे।
इसमें सबसे नया मामला सारण जिले के छपरा का है जहां सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जहरीली शराब से अब तक 30 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और कई लोग गंभीर रूप से बीमार हैं।

इनका इलाज छपरा और पटना के हॉस्पिटल में चल रहा है। आशंका जताई जा रही है इसमें कई लोग बच भी गए तो उनकी आंख की रोशनी ख़त्म हो सकती है।

राजस्व का नुकसान
शराबबंदी की समीक्षा की वकालत करने वाले बिहार को इससे होने वाले राजस्व नुक़सान को भी इसकी एक वजह बताते हैं।
नीतीश कुमार के पुराने सहयोगी और अब जेडीयू से अलग हो चुके आरसीपी सिंह का आरोप है कि शराबबंदी से बिहार को हर महीने करीब छह हजार करोड़ के राजस्व का नुक़सान हो रहा है।
विपक्ष में रहते हुए उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी शराबबंदी से बिहार को हो रहे राजस्व के नुक़सान का मामला उठा चुके हैं।
वहीं बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने एक ट्वीट में आरोप लगाया है कि नीतीश कुमार के ही कार्यकाल में बिहार में शराब का टर्नओवर दो सौ करोड़ से चार हजार करोड़ तक पहुंचा था।
कई लोग ऐसा भी मानते हैं कि बिहार में उन अपराधियों की बड़ी कमाई हो रही है जो शराब का अवैध कारोबार करते हैं।
यानी जो राजस्व सरकार के पास पहुंचना था उसका एक बड़ा हिस्सा अपराधियों की जेब में जा रहा है।
बिहार में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल का आरोप है कि इसमें बहुत कमाई है, इसलिए शॉर्टकट में पैसे कमाने के लिए कम उम्र के बच्चे भी शराब की खेप यहां से वहां पहुंचा रहे हैं।
यूं तो इससे पहले आरजेडी अध्यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव भी शराबबंदी को लेकर कई बार सवाल उठा चुके हैं और इसे पूरी तरह फ़ेल बता चुके हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी तो ताड़ी को शराब की कैटेगरी में ही रखने के ख़िलाफ़ हैं।
हाल में शराबबंदी क़ानून पर आरजेडी के विधायक और पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने इस मामले की जांच सिटिंग जजों की कमेटी के कराने की मांग की है।
इससे पहले वो सदन में नीतीश कुमार के गुस्से को भी ग़लत बता चुके हैं। सुधाकर सिंह कैमूर की रामगढ़ सीट से विधायक हैं।
उनके पिता जगदानंद सिंह आरजेडी के मुख्य रणनीतिकारों में गिने जाते हैं और बिहार आरजेडी के अध्यक्ष भी हैं।
महिलाओं का फायदा
हालांकि नीतीश कुमार सरकार के इस नुक़सान को दूसरी तरह देखते हैं। वो कई बार कह चुके हैं कि शराबबंदी से कई परिवारों का जीवन बेहतर हुआ है।
इससे महिलाओं के ऊपर घरेलू हिंसा कम हुई है और लोग खान-पान या बच्चों की पढ़ाई पर अच्छा ख़र्च कर पा रहे हैं।
नीतीश कुमार शराबबंदी के फैसले को लेकर काफ़ी भावुक भी नजर आते हैं। बुधवार को बिहार विधानसभा में शराबबंदी के मुद्दे पर वो बीजेपी पर बरसते भी नजर आए थे।
वो कई बार शराब पीने पर पाबंदी को गांधी जी की इच्छा से भी जोड़ते रहे हैं।
लेकिन यह भी माना जाता है कि बिहार में महिलाएं नीतीश कुमार के लिए हमेशा से बड़ा बोट बैंक रही हैं। साल 2006 में नीतीश कुमार ने राज्य में महिलाओं के लिए साइकिल योजना की शुरुआत की थी।
पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण की घोषणा करने वाला भी बिहार ही था। उसके बाद ही दूसरे राज्यों में लागू हुआ।
माना जाता है कि इस वजह से महिलाओं ने बड़ी संख्या में नीतीश कुमार के पक्ष में मतदान किया था। साल 2010 के विधानसभा चुनाव के दौरान बिहार में महिला मतदाताओं ने पुरुषों के मुक़ाबले ज़्यादा मतदान भी किया था।

महिलाओं का साथ
साल 2016 में नीतीश सरकार ने शराबबंदी क़ानून लागू किया था और इसके पीछे भी वो महिलाओं की मांग ही बताते हैं।
नीतीश कुमार शराबबंदी के पीछे पुरुषों का शराब पीकर घर आना और झगड़े करना, बड़ी वजह बताते हैं।

सीएसडीएस के संजय कुमार बताते हैं, आंकड़ों से दिखता है कि शराबबंदी की शुरुआत में नीतीश कुमार के पक्ष में महिला वोटरों ने वोटिंग की थी। लेकिन पिछले कुछ चुनावों में ऐसा नजर नहीं आ रहा है।
जनता दल यूनाइटेड-बीजेपी गठबंधन को सबसे बड़ी जीत साल 2010 में मिली थी। तब गठबंधन को 39।1 फीसदी मत मिले थे।
सीएसडीएस के आंकड़ों के मुताबिक़ 2010 के चुनाव में एनडीए को 39 प्रतिशत महिलाओं का वोट मिला था, जो उनके औसत वोट जितना ही था।
2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव के राजद से हाथ मिलाया और प्रभावी जीत दर्ज की।
उस चुनाव में 41।8 फीसदी मतों के साथ वो सत्ता में आए। इस चुनाव में भी गठबंधन को, जिसका चेहरा नीतीश कुमार ही थे, 42 फीसदी महिलाओं का ही वोट मिला।

शराबबंदी के बाद महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध?
शराबबंदी के पक्ष में नीतीश कुमार अक्सर यह भी कहते हैं कि इससे महिलाओं के खिलाफ अपराध कम हुए हैं।
गुरुवार को भी नीतीश ने कहा कि पहले शराब पीकर लोग आते थे और घर में महिलाओं के साथ मारपीट करते थे, हमने महिलाओं की मांग पर शराबबंदी की है, वो इससे बहुत खुश हैं।
दूसरी तरफ एनसीआरबी के आंकड़ों को देखें तो 2016 में जिस साल शराबबंदी लागू हुई उस साल महिलाओं के खिलाफ अपराध कम मामले सामने आए थे। लेकिन बाद में ऐसे मामले बढ़ते गए।
भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले कुल अपराधों में बिहार का प्रतिशत 2016 में घटकर 4 फीसदी हो गया था।
लेकिन फिर वह 2019 में बढक़र 4।6 फ़ीसदी पर पहुंच गया। इस हिसाब से भारत में बिहार राज्य महिलाओं के खिलाफ अपराध में आठवें पायदान पर पहुँच गया।
हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि सरकारी योजनाओं और स्वयं सहायता समूहों की वजह से महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं, इसलिए अब अपने खिलाफ होने वाले अपराध को दर्ज कराने लगी हैं।
 

राजनीतिक नुकसान
बिहार की राजनीति पर पकड़ रखने वाले जानकार मानते हैं कि कुढऩी उप-चुनाव में शराबबंदी कानून नीतीश कुमार के खिलाफ गया।
वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी ने कुढऩी विधानसभा के नतीजों के बाद बीबीसी से बातचीत में कहा था, शराबबंदी के बाद गिरफ्तार किए गए लोगों में बड़ी संख्या कमज़ोर तबके के लोगों की है। पिछड़े वर्ग के लाखों लोग जेल में हैं और यह नाराजगी कुढऩी में हुई वोटिंग में भी रही है।

इतना ही नहीं बिहार में आबकारी विभाग और पुलिस ने शराबबंदी कानून को तोडऩे के जुर्म में अब तक साढ़े छह लाख से ज़्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है। इनमें करीब चालीस हजार लोग फिलहाल जेल में हैं।
इन मामलों में सजा की दर भी काफी कम है। इंडियन एक्सप्रेस अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस पकड़े गए लोगों में से पांच फीसदी से कम को सजा दिला पाती है।
इस तरह के लाखों मामलों में पुलिस, आरोपी, गवाह या सूचना देने वाले की कोर्ट में गवाही होती है। इस तरह से कोर्ट के समय का बर्बाद होना भी बिहार में एक बड़ी समस्या बताई जाती है।
जहरीली शराब पीकर मरने वाले हों या अवैध शराब के कारोबार में जेल जाने वाले, इनमें बड़ी तादाद गरीबों और दलितों की होती है। सारण में हुई घटना में भी ऐसे लोग सबसे ज़्यादा पीडि़त हुए हैं।
इस वजह से धीरे धीरे नीतीश कुमार को इसका राजनीतिक नुक़सान हो रहा है।

पटना में पीटीआई के पत्रकार नचिकेता नारायण कहते हैं, शराबबंदी कानून में लोगों की गिरफ्तारी के अलावा जो लोग ज़हरीली शराब से मरते हैं, उन्हें कोई सरकारी मुआवजा भी नहीं मिलता है क्योंकि शराब पीना गैर-कानूनी है। ये सारी बातें अब बैकफायर कर रही हैं। इसलिए नीतीश कुमार को खुद इस बहस में उतरना पड़ा है। (bbc.com/hindi)

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