विचार / लेख

काश! मोदी ने नागेश्वर को निहार लिया होता..
19-Dec-2022 12:13 PM
काश! मोदी ने नागेश्वर को निहार लिया होता..

-शशांक तिवारी

वैसे तो मेरा कई बार गुजरात आना-जाना हुआ है लेकिन ज्यादातर मौकों  पर अहमदाबाद से बाहर झांकने का मौका नहीं मिला। मगर इस बार अपने परिवार के साथ धार्मिक यात्रा पर जाने का संयोग बना और फिर ऐतिहासिक महत्व के तीर्थ स्थलों के दर्शन के लिए निकल पड़ा। हमारे 40 सदस्यीय दल के ज्यादातर रायपुर के ही थे।
 

हम रायपुर से ट्रेन से गुजरात पहुंचे तो वहां हमारा पहला पड़ाव अहमदाबाद ही था। देशभर में वाइब्रेंट गुजरात की धूम मची है। कुछ दिन पहले ही उग्र हिन्दुत्व के पैरोकार भूपेंद्र पटेल की अगुवाई में भाजपा की सरकार दो तिहाई बहुमत से फिर से सत्तासीन हुईं । ऐसे में हिन्दू धर्मस्थलों को लेकर  संवेदनशील मानी जाने वाली भाजपा सरकार के इंतजामों को करीब से परखने का मौका भी था।
   

अहमदाबाद में तो अक्षरधाम मंदिर तक सीमित रहे और फिर अगली सुबह बस से साबरमती रिवरफ्रंट को निहारते हुए सोमनाथ के लिए रवाना हो गए। अहमदाबाद से सोमनाथ तक करीब साढ़े 4 सौ किलोमीटर की यात्रा तय कर रात्रि करीब 8 बजे सोमनाथ पहुंच। हम सब सोमनाथ भगवान के दर्शन के लिए इतने उत्सुक थे कि हमने होटल में विश्राम करने के बजाए सीधे मंदिर जाने का फैसला लिया।
  भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से सर्वप्रथम समुद्र तट पर स्थित  भगवान सोमनाथ मंदिर के दर्शन मात्र से हमारी यात्रा की सारी थकान जाती रही। मंदिर पर ही लेजर शो के जरिए सोमनाथ मंदिर की ऐतिहासिक गाथा दिखाई गई। अमिताभ बच्चन की आवाज में सुनना और देखना वाकई अदभुत था।
  

सोमनाथ मंदिर पर हमले की गाथा सुनकर विदेशी आक्रमणकारियों के प्रति हमारे मन में गुस्से का ज्वार रह-रहकर उमड़ रहा था तो यह जानकर कि कई मुसलमानों ने भी मंदिर को बचाने के लिए अपनी जान गंवाई थी और पुनर्निर्माण में जामनगर के ढेबर भाईयों का योगदान  यह बताने के लिए काफी था कि सर्व धर्म सदभाव की नींव सदियों पुरानी है। सोमनाथ मंदिर यात्रा के बाद अगले दिन हम बस से द्वारिका के लिए निकल गए। भगवान कृष्ण की नगरी द्वारिका का जिक्र पुराणों में है । सनातन धर्म के चार धाम में से एक द्वारिका की काफी मान्यता है। रोजाना हजारों की संख्या में लोग द्वारिकाधीश के दर्शन के लिए आते हैं।
गोमती नदी के किनारे स्थित द्वारिकाधीश मंदिर को लेकर एक मान्यता यह भी है कि भगवान कृष्ण के पड़पोते वद्रनाभ ने भगवान कृष्ण के मूल आवासीय महल पर ही मंदिर का निर्माण कराया था। मगर मंदिर का मूल स्वरूप 15 वीं शताब्दी में चालुक्य शैली में बना है।

द्वारिका पहुंचते ही हमारी नजर गोमती नदी पर पड़ी, जो कि प्रदूषण की मार झेल रही देश की बाकी नदियों की तरह दिखी । रात्रि विश्राम के बाद अलसुबह मंदिर जाने से पहले गहरी सांस लिए पवित्र गोमती के स्नान के लिए पहुंचा । वहां तट पर गंदगी से दो- चार होना पड़ा । देश में स्वच्छ भारत अभियान जोर शोर से प्रचारित है और  पीएम इसके अगुवा हैं। वहां उनके गृह राज्य के पवित्र गोमती तट की गंदगी चौंकाने वाली थी ।
खैर, सभी बातों को नजरअंदाज कर  नदी में स्नान किया। कंपकंपाती ठंड में स्नान के बाद मेरी ठंड एक तरह से गायब हो गई। फिर भी नदी के पानी के आचमन का जोखिम नहीं उठा सका,फिर द्वारिकाधीश के दर्शन के निकल पडा़।

मंदिर के बाहर सुबह से ही भीख मांगने वालों की कतार थी । यह स्थिति सोमनाथ और गुजरात के हर मंदिरों के बाहर देखने को मिली।  मन ही मन सोच रहा था कि क्या भिक्षा वृत्ति को रोकने के लिए केन्द्र सरकार की भिक्षुक पुनर्वास योजना गुजरात में नहीं चल रही है ?

 फिर एक ठंडी सांस लेकर मन को एकाग्र कर मंदिर की ओर बढ़ा और
द्वारिकाधीश के दर्शन किए। इसके बाद यात्रा का अगला पड़ाव गोपी तालाब था । गोपी तालाब भी द्वारिका तहसील में  है।
गोपी तालाब के पीछे मान्यता यह है कि भगवान कृष्ण के विरह में गोपियों ने जल समाधि ली थी। उबड़- खाबड़ सडक़ से होते हुए हम जब गोपी तालाब पहुंचे तो ऐतिहासिक और पुरातत्व के महत्व के  इस तालाब की दुर्दशा देख कर सभी हतप्रभ रह गए। आसपास के मकान के सीवरेज का पानी तालाब में जा रहा था। वहां गाइड, और पुरोहित  तालाब की महत्ता बता पानी से शुद्धिकरण के लिए कह रहे थे। ऐसा करने की हमारी इच्छा भी थी।  लेकिन सीवरेज को देखकर हममें से ज्यादा इसका साहस नहीं कर सके। कुछ खरीददारी के बाद हम वहां आगे निकल गए।
 

गोपी तालाब के बाद हम बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के  लिए रवाना हुए। ये भी द्वारिका जिले में  है। यहाँ भी सालभर श्रदालुओं की भीड़ रहती रही है। लेकिन  यह धार्मिक स्थल शासन- प्रशासन की उपेक्षा का शिकार रहा है। मंदिर के आसपास भारी गंदगी देखने को मिली। थोड़ी दूर पर सैकड़ों गौवंश कचरा निगलते देखे।  जबकि मंदिर के बाहर सामाजिक संस्थाएं गोवंश की रक्षा के लिए स्टाल लगा कर मुक्त हस्त से दान की अपील करते  हैं और लोग दान भी देते नजर आ रहे थे ।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की उपेक्षा से हमारी तरह कई श्रद्धालु नाखुश हैं । कुछ स्थानीय लोग बताते हैं कि पहले हाल तो और बुरा था। बाद में टी- सीरीज के संस्थापक गुलशन कुमार ने पांच करोड़ रुपए दान कर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।

पीएम नरेंद्र मोदी हर साल सोमनाथ मंदिर दर्शन के लिए जाते हैं, लेकिन पीएम बनने के बाद नागेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन के लिए नहीं गए। पीएम को शिवभक्त माना जाता है। उन्होंने गुजरात सीएम रहते प्राकृतिक आपदा से क्षति ग्रस्त केदारनाथ मंदिर  की मरम्मत का प्रस्ताव दिया था मगर उनके अपने गृह राज्य स्थित ज्योतिर्लिंग की सुध नहीं ली। यद्यपि नौ साल पहले सीएम रहते उन्होंने द्वारिका को जामनगर से अलग कर नया जिला बनवाया था। बावजूद यहां के धार्मिक स्थलों की दुर्दशा साफ दिखाई देती है,वह भी तब जब पिछले 27 साल से  हिन्दू वादी भाजपा की सरकार गुजरात में राज कर रही है। कुछ स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि पीएम एक दफा भी यहाँ आ जाते तो नागेश्वर उपेक्षित नहीं रहते।
 हमें भी लगता है मोदी जी एक बार नागेश्वर दर्शन कर लेते ।
 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news