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फुटबॉल, मेस्सी, एमबापे, र्मार्टीनेज़ और...
19-Dec-2022 12:54 PM
फुटबॉल, मेस्सी, एमबापे, र्मार्टीनेज़ और...

-आनंद बहादुर

विश्व कप फुटबॉल के कल के फाइनल में अर्जेंटीना और फ्रांस की भिड़ंत की तुलना प्राचीन काल के रोम के एम्फिथिएटर में होने वाले ग्लेडिएटरों की भिड़ंत से की जा सकती है, इसकी और कोई उपमा नहीं दी जा सकती। ठीक वैसा ही दृश्य था, सारी दुनिया एक बहुत बड़े एम्फिथिएटर में बदल गई थी, गोल! गोल! गोल! गगनभेदी शोर उठ रहा था, ऐसा लगता था कि मानो खून की प्यासी भीड़ चिल्ला रही हो- मारो! मारो! किल हिम ! ऐसा जुनून ऐसा तमाशा ऐसी टक्कर!

आमतौर पर फाइनलें बहुत नीरस और उबाऊ हुआ करती हैं। टीमें नापतोल कर प्रतिद्वंदी की ताकत को आजमाते हुए, गोल किसी हालत में नहीं खाने की सौ तिकड़में में लगाते हुए, खेलती हैं; और जब तक वे किसी ठोस नतीजे तक पहुंचती हैं, समय निकल जाता है, और पेनल्टी से फैसला करना पड़ता है। फैसला यहां भी पेनल्टी शूटआउट से ही हुआ, मगर किन मुकामों से गुजर कर!

इसका कारण लियोनेल मेस्सी नामक एक ऐसा शख्स है, जो पिछले दो दशक से फुटबॉल का देवता बना हुआ है, मगर अगर वह इस विश्वकप को जीत नहीं लेता, तो उसका सारा कैरियर कूड़े के ढेर से बढ़कर कुछ नहीं होता, क्योंकि फुटबॉल का देवता हो और विश्वकप नहीं जीत पाए, ऐसी शर्मनाक जिंदगी खुदा किसी को ना दे! दूसरी ओर एमबापे नामक एकदम ताजा टटका जुनून से भरा बेखौफ नौजवान, बोरिस बेकर टाइप का खिलाड़ी, जिसके रहते धूम धड़ाका न हो यह हो ही नहीं सकता। नतीजे में मिला विश्व का सर्वश्रेष्ठ फाइनल!

मैं बचपन से फुटबॉल का दीवाना रहा हूं, स्कूल के दिनों में खेलता भी था, और बड़ा होने पर अपने शहर देवघर के सबसे प्रसिद्ध फुटबॉलर, बुलबुल दा के साथ दो-चार बार खेलने का मौका मुझे मिला था। खेलना क्या, हमारे शहर के उस लीजेंड के आगे-पीछे भाग-दौड़ करने का! बुलबुल दा, आप को सलाम, कि आपसे फुटबॉल खेलना भले न सीख पाया, लेकिन फुटबॉल की दीवानगी आज भी रग रग में बसी हुई है!

इसीलिए जब दोनों टीमों का राष्ट्रगान हो रहा था, तो पहली बार मैंने अपने देश से अलग किन्हीं अन्य देशों के राष्ट्रगानों को इस तरह सुना मानो वह देश भी मेरा ही देश हो। और मैं शिद्दत के साथ राष्ट्र गान गाते मेस्सी के चेहरे को देखता रहा... फ्रांस के प्रेसिडेंट इमानुएल मैक्राॅन भी उस समय स्टेडियम में मौजूद थे, उनकी तस्वीर टीवी पर आई, तो मैंने सहानुभूति के साथ सोचा, आज आप निराश होने वाले हैं।

मगर सच बात तो यह है कि मैच से पहले ज्यादातर फुटबॉल के पंडित अर्जेंटीना को कोई खास ज्यादा चांस नहीं दे रहे थे। दिल ही दिल में सब चाह रहे थे, मगर हर कोई जानता था कि फ्रांस का पलड़ा भारी है। इधर क्या है? बूढ़ा होता हुआ, अपने ही सपनों के मकड़जाले में फंसा मेस्सी... और उधर? उधर है 23 साल का तेजतर्रार, एक विश्व कप पहले से जीत चुका एमबापे, जेरू और ग्रीजमैन...

लेकिन सभी आकलनों को चकनाचूर करते हुए शुरू से ही अर्जेंटीना खेल पर हावी हो गया और लगभग 75 मिनट तक इस कदर हावी रहा कि उसने फ्रांस को गोल पर एक शाॅॅट लेने तक का मौका नहीं दिया। सारे मूव अर्जेंटीना ने बनाए, सारे कॉर्नर अर्जेंटीना को मिले, सारे ऑफसाइड अर्जेंटीना के विरुद्ध दिए गए।

इस ताबड़तोड़ हमले का परिणाम यह निकला कि पहले तो अर्जेंटीना को पेनल्टी मिली जिस पर मेस्सी ने गोल कर 1-0 की बढ़त दिलाई, उसके बाद डी मारियो ने शानदार फील्ड गोल कर 2-0 कर दिया।

मेस्सी जिस अंदाज में पेनल्टी शाॅट लेते हैं वह बिल्कुल मध्ययुग के संतों की याद दिलाता है, संतों की तरह की निश्चिंतता के साथ, और ऐसा लगता है मानो वे बाॅल को किक नहीं कर रहे, दुलार रहे हों, उसे आशीर्वाद दे रहे हों कि जाओ, अमर हो जाओ। वे बहुत धीमे से बाॅल को दुलारते हैं, और पांव से अबूझ दिशा देते हुए नेट में डाल देते हैं। बेचारा गोलकीपर किसी दूसरी ओर छितराया हुआ पड़ा होता है। ऐसा दर्शनीय होती है मेस्सी की पेनाल्टी! अन्य मामलों में उनके कई प्रतिद्वंदी हैं, लेकिन पेनल्टी लेने के मामले में तो मेस्सी अद्वितीय हैं।

दूसरे हाफ में भी शुरू में अर्जेंटीना खेल पर हावी रहा उसने अपनी रणनीति में कोई परिवर्तन नहीं किया। फ्रांस की टीम 4-4-2 के फॉरमेशन से उतरी थी, जो मेरे ख्याल से फ्रांस के ऑफ कलर खेल का सबसे बड़ा कारण था। ऐसा लग रहा था जैसे फ्रांस मेस्सी से बिल्कुल अभिभूत हो, वह मेस्सी का तोड़ नहीं खोज पा रहा था, और उसके महान खिलाड़ी अपना स्वाभाविक खेल नहीं खेल पा रहे थे, जेरू और ग्रीजमैन इत्यादि कोई प्रभाव नहीं डाल पा रहे थे। उनका समूचा खेल मेस्सी के चारों तरफ नाच रहा था। जबकि मेस्सी इन बातों से बेखबर अपना स्वाभाविक खेल खेल रहे थे। उनको एमबापे की कोई चिंता नहीं थी। एमबापे पूरी तरह से मेसी की छाया में थे, पता ही नहीं चल रहा था कि जादूई खेल वाले एमबापे कहां चले गए?

उधर अर्जेंटीना की ओर से बाएं फ्लैंक में डी मारियो भी बहुत शानदार खेल खेल रहे थे। बल्कि यह तो उन्हीं का तेज गति का सधा हुआ अनुभव से लबरेज खेल था जो अंतर ला रहा था। एक ओर फ्रांस के खिलाड़ी मेसी के दबाव में थे, दूसरी ओर डी मारियो बहुत तेज गति से छकाते हुए बार-बार डी में घुसकर क्राॅस पास दे रहे थे, और बाद में उन्हीं को गिराए जाने पर पहली पेनाल्टी मिली, जिसे मेस्सी ने कन्वर्ट करके गोल किया। मेस्सी के रहते हुए भी कहा जा सकता है कि एक तरह से पहले 60-70 मिनट के अर्जेंटीना के मुख्य खिलाड़ी डी मारियो थे।

अर्जेंटीना के खिलाड़ी अपने उस विश्व प्रसिद्ध साउथ अमेरिकन स्किल का बेहतरीन मुजाहरा कर रहे थे, उन्होंने कई बार बैक फ्लिप से गेंद एक दूसरे को दिया और अनेक बार शानदार वन-टच खेल खेलते हुए फ्रांस को झांसे में रखा।

मगर फिर जैसा फुटबॉल में होता है, कि कोई चूक होती है, और अचानक परिवर्तन आ जाता है, खेल का सारा समीकरण बदल जाता है। ठीक ऐसा ही हुआ। कोई 70-75 मिनट खेल के बाद जब अर्जेंटीना के कोच स्केलोनी ने, मेरे ख्याल से बहुत बड़ी चूक करते हुए, मैच के अपने सबसे अच्छा खेल रहे खिलाड़ी डी मारियो को वापस बुला लिया, तो मैंने हताशा में अपना सर ठोंक लिया। और सचमुच, डी मारियो के जाते ही अर्जेंटीना का लेफ्ट फ्लैंक इतना कमजोर हो गया, कि फ्रांस के लिए खेल बिल्कुल खुल गया, और उसके बाद तो एमबापे और उसके फ्रांस ने ऐसा खेल दिखाया कि जिसका बयान मुश्किल है।

और अब्ब! जैसे खेल ही बदल गया है... फुटबॉल पर्दे से हट गया है... रोम के एंफिथियेटर के ग्लेडिएटर सामने आ गए हैं... बड़े-बड़े खूंखार, रथों पर सवार महारथी दौड़ रहे हैं... प्रचंड रूप से चीखते... हाथ में भाला, बल्लम, सिक्कड़ से बंधी कांटे वाली दानवाकार गेंद घुमाते.... मार्कस ऑरिलियस का चेहरा सामने आता है...चला जाता है... मैक्सिमस आता है... भीड़ चीख रही है... मैक्सिमस मैक्सिमस मैक्सिमस... मेस्सी मेस्सी मेस्सी... दृश्य बदल जाता है धड़फड़ धड़फड़ धड़फङ... यह क्या? यह तो मेरे बचपन का बच्चों वाला फुटबॉल हो गया है... फ्रांस अर्जेंटीना कुछ नहीं रह गया... सब होशो हवास खोकर पल भर में इधर से उधर भाग रहे हैं... फिर उधर से इधर भाग रहे हैं... मेरे बचपन के हीरो बुलबुल दा किक लगा रहे हैं.... वाह वाह वाह... आह आह आह... क्या बात है... क्या बात है... कुछ नहीं दाल-भात है... अभी सब कुछ दाल-भात था... अभी-अभी सब कुछ खिचड़ी हो गया है... खिचड़ी हलवे में बदल गई है... एक्स्ट्रा टाइम, एक्स्ट्रा टाइम... मेस्सी ने गोल ठोंक दिया है... एमबापे ने गोल ठोंक दिया है... टाइम अप-टाइम आप! शूटआउट-शूटआउट!

...अब मार्टिनेज़ का समय है.... अब केवल मार्टीनेज़ दिखाई दे रहे हैं... वही रक्षक हैं, वही सुपर हीरो हैं... बाकी सब भक्षक हैं... कोच स्केलोनी, डिफेंडर रोड्रिगो, एमिलियानो, किंग्सले कोमान, ऑरेलियन टोचामेनी... मार्टीनेज़ मार्टीनेज़ नहीं रह गए.... कैसियस क्ले... मोहम्मद अली में बदल गए हैं... ही लुक्स लाइक ए बटरफ्लाई स्टिंग्स लाइक ए बी... रस्से ऊपर "रोप ए डोप" वाला नर्तन करते... किक लगाने वाले को छकाते मार्टीनेज़... इधर-उधर शॉट मारने को मजबूर करते... केवल एमबापे के पास उनका तोड़ है, और किसी के पास नहीं, एमबापे जो फ्रेजियर है, मुहम्मद अली को भी चित कर देने वाला...

...जीत गया जी, जीत गया.. जीत गया जी... जीत गया... फुलबन की सेज सजाऊं सखी री... आज मोरे घर मोहन आया...

... और अब स्टेडियम अंधेरे में डूब गया है... यह क्या? अरे धुत्त, यह तो तैयारी है... प्राइज सेरेमनी की... स्टेडियम उजाले से भर गया है... इधर से उधर, कहां से कहां, मैदान के टर्फ का रंग दौड़ रहा है... अजीब अजीब रंग दौड़ रहे हैं... ऐसी सुंदर आतिशबाजी... न कभी हुई, न कभी किसी ने देखी...

और देखो देखो... वह हैं मेस्सी! अब मेराडोना के बराबर हो गए हैं... क्या जाने पेले से कितनी दूर हैं! 9 नंबर जर्सी वाले रोनाल्डो के कितने पास हैं...

मुझे याद आ रहे हैं, पिछले विश्व कपों में हारकर आंसुओं से तरबतर, वापस जाते मेस्सी... अपने रिटायरमेंट की घोषणा करते मेस्सी...

और ये हैं बिश्ट पहने हुए वर्ल्ड कप हाथ में उठाए मेस्सी... मानो रोमन देवता अपोलो ने पृथ्वी को कंधे पर उठा रक्खा हो!

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