विचार / लेख
-अपूर्व गर्ग
मुझ बच्चे की बात मानिये और अपनी सोच बदलिए.
सारी समस्या आपकी सोच की वजह से आ खड़ी हुई है. सबसे पहले अपने शब्दकोश बदलिए. कम से कम शब्दकोश में जो बुज़ुर्ग, बूढ़े, वृद्ध, अधेड़ जैसे जो शब्द हैं उन्हें निकाल फेकिये.
इंसान बूढ़ा नहीं होता. उम्रदराज़ होना बूढ़ा होना नहीं होता. हिमाचल के 105 साल के श्याम सरन नेगी वोट देते हैं उसके बाद ही वो शरीर त्यागते हैं. 105 साल तक लोकतंत्र के प्रति आस्था रखते हुए नेगीजी अपने कर्त्तव्य का निर्वहन करते रहे. ऐसे नेगी जी को कभी 80 साल में वृद्ध कहा ही गया होगा, जो हमारी संस्कृति है, आदत में शुमार है.
इसके बाद भी नेगी जी 25 वर्षों तक युवा रहते हैं.
इस दुनिया में मौजूद ऐसे सभी नेगियों और सक्रिय 80 + वालों को वृद्ध घोषित कर उनके प्रति हम इतने निर्मम क्यों हो जाते हैं ?
आपकी परिभाषा के अनुसार युवा लोग चुनाव के दिन घर बैठे हॉलिडे एन्जॉय करते हैं और ऐसे करोड़ों लोग वोट तक नहीं डालते, लाइन में खड़े होना नहीं चाहते, सोचिये युवा कौन ? बुज़ुर्ग कौन ?
105 साल की एथलीट मान कौर दौड़ती रहीं थीं रिकॉर्ड पर रिकॉर्ड बनती रहीं थीं. जब 'मम्माज़ डार्लिंग बेबी बाबा ...रजाई में दुबके रहते थे तब मान कौर फील्ड में पसीना बहा रही होती थीं ये और बात है इस समाज ने उन्हें भी 35 - 40 बरस पहले बूढी धावक करार दे दिया होगा ....इस सोच को बदलिए ..
बीजेपी ने भी 2014 में मार्गदर्शक मंडल बनाकर कम ज़ुल्म नहीं किया. सोचिये, आज आडवाणीजी 95 के आसपास हैं और 85 के आस-पास ही उन्हें और उनके साथियों को बुज़ुर्ग बना दिया, जबकि आज भी 95 साल की उम्र में आडवाणीजी पुराने तेवर में लौटने को आतुर दीखते हैं.
अभी -अभी LIC के जुझारू नेता चंद्रशेखर बोस का 101 वां जन्मदिन मनाया गया और आगे न जाने कितने मनाये जाते रहेंगे. ये 44 साल पहले रिटायर हुए होंगे इन्हे भी बुज़ुर्ग माना गया होगा. सौ बरस की उम्र में उन्होंने मीटिंग को भी सम्बोधित किया था, आगे भी ये करेंगे.
पहले भी मैंने 104 बरस के बॉडी बिल्डर मनोहर आइच की कसरत से लेकर खुशवंत सिंह के 92 बरस होने पर उन्होंने आत्मकथा लिखी ये बताया था. हबीब मियां जो खूब जिए और ज़िंदादिली से जिए 2008 में 138 बरस की उम्र में चल बसे थे, ये लिखा था. ऐसे उदाहरण अब हमारे आस-पास ही बहुत हैं, अब बताने की ज़रूरत नहीं है.
ज़रूरत इस बात की है अब समय आ गया समाज अपनी सोच बदले.
सुनिए,
सबसे पहले रिटायरमेंट को बुढ़ापे से लिंक मत करिये. रिटायरमेंट कोई आधार नहीं है जिसे किसी पेन से लिंक किया जाए !
कोई इंसान जब रिटायर होता है तो वो सब कुछ करना चाहता है जो नौकरी के दौरान नहीं कर पाता. उन्हें एन्जॉय करने दीजिये. रिटायरमेंट शब्द को भूल कर आँखें खोल के देखिये 60 बरस के लोग कितने नौजवान, फिट, सुंदर सुडौल और सक्रिय हैं. दरअसल, ये नौजवानी कई दहलीज़ में कदम रख रहे हैं और अब शरीर कई बनावट ऐसी होती जा रही कि बुज़ुर्ग जैसा कोई गैर ज़रूरी शब्द इन पर 40 बरस बाद ही उपयोग किया जा सकेगा.
अधेड़ उम्र घोषित करने की बहुत इच्छा है तो 70 के बाद वालों के लिए सुरक्षित रखिये. आप अगर अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलकर 70 साल वालों पर सर्वे करेंगे तो उनकी अपार-असीम ऊर्जा, फिटनेस और सक्रियता देखकर चकित रह जायेंगे. वो दिन बरसों पहले हवा हुए जब 70 के उम्र दराज़ होते थे. सावधान रहिये आज सत्तर वाले पूरे मट्ठर हैं.. वो लड़ना-भिड़ना ही नहीं ऐसे-ऐसे असंभव काम में जुटे हैं जो कल्पनातीत हैं.
इसलिए, बुढ़ापे, अधेड़ावस्था का सर्टिफिकेट बांटने की हड़बड़ी मत करिये. खासकर, ये रोग मीडिया के लोगों को बहुत है. कुछ अखबार तो खुल्लम -खुल्ला अवमानना करते हैं. 45 साल के बच्चों को अधेड़ लिख देते हैं ..65 को वृद्ध...बहुत नाइंसाफी है ठाकुर !!
समय आ चुका उम्र के साथ अवस्था जोड़ने कई आदत बदल लेना चाहिए . वर्ना आगे और शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी जब 70 वाले यूथ फेस्टिवल मनाएंगे और 80 वाले फनी गेम खेलते मिलेंगे और डेस्टिनेशन ...करते भी !
दुनिया बदल रही नहीं बदल चुकी . लोगों ने खूब जीने कई ही नहीं ज़िंदादिली से जीने कई ठान ली .अब कोरोना का बाप भी आये तो हमारे 60 -70 साल के नौजवान लात मारेंगे ऐसी सभी बीमारियों को और बता देंगे ...अभी तो पार्टी शुरू हुई है .. ऐसी मुझ 'बच्चे ' की स्पष्ट राय है और दिन के उजाले में साफ़-साफ़ देख रहा हूँ कि लोग बूढ़ा, वृद्ध अधेड़ जैसे शब्दों को त्याग कर शरीर कितना फिट है उस लिहाज़ से ज़िंदगी जी रहे हैं. और सुनिए, अधेड़ वो है जो घरवालों के धक्का देने पर कुछ वाकिंग करता है वो भी धीरे-धीरे स्मार्ट फ़ोन के अंदर घुसकर.
बूढ़ा वो है जिस पर सुबह दो बाल्टी पानी भी डाला जाये तो भी रज़ाई उससे छूटती नहीं. न कसरत करेगा, न घर के काम. इन्हे वोट देने कहेंगे तो राजनीति को गाली देगा , काम करने कहेंगे तो हर काम छोटा नज़र आएगा. इनसे मिलना है तो जगह -जगह मिलेंगे स्मार्ट फ़ोन के अंदर झुकी कमर के साथ ...
अकबर इलाहाबादी ने कहा है :
''जवानी की दुआ लड़कों को ना-हक़ लोग देते हैं
यही लड़के मिटाते हैं जवानी को जवाँ हो कर ''
और ..
नौजवानों से मिलना है तो सुबह-सुबह और शाम किसी भी मैदान में बगीचे में गुलाब के फूल की तरह ख़ुशबू बिखेरते दौड़ते भागे जगह-जगह मिलेंगे.
नौजवानों की इस ललक -महक और ख़ुशबू को पहचानिये और शब्दकोष से परे सोचिये .अपनी पीढ़ियों से चली आ रही पुरानी सोच बदलिए, शब्दावली बदलिए. आपके आस-पास जो 80, 90 के लोग हैं उनकी हिम्मत, हौंसले और आत्म विश्वास को टूटने मत दीजिये. वो हैं इसलिए हम भी हैं . कल हम भी वही होंगे और तभी बच्चों से ऐसी उम्मीद कर पाएंगे.