विचार / लेख

बातों बातों में, छोटी-छोटी बातें
13-Feb-2023 12:05 PM
बातों बातों में, छोटी-छोटी बातें

-सनियारा खान
पश्चिम बंगाल के एक गांव में जन्मी लक्ष्मीबाला 102 साल में भी सब्जी भाजी बेच रही है। इस महिला ने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था। इनका बेटा भी चाय दुकान ही चलाता है। अजीब बात है कि स्वाधीनता सेनानी की हालत देखिए और स्वाधीनता आंदोलन में खामोश रहनेवालों का रुतबा देखिए।

कोलकाता में आरएसएस ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती को बहुत ही धूमधाम से मनाने से पहले ही बोस की बेटी अनिता बोस ने कह दिया कि नेताजी कभी भी आरएसएस के विचारों से सहमत नहीं थे। वे हिंदू हो कर भी सभी धर्मो को सम्मान देना पसंद करते थे। तो फिर ये कार्यक्रम क्यों? अच्छा होता अगर आरएसएस नेताजी के विचारों को अपनाते। सभी नायकों को ‘हमारा नायक’ घोषित कर हाईजैक करने के चक्कर में कभी कभी फजीहत भी हो जाती है।

ऑस्कर वाइल्ड ने कहा था कि हर संत का एक अतीत होता है और हर अपराधी का एक भविष्य । अलग अलग लोग इसे अलग अलग ढंग से समझेंगे। वैसे समझ में तो यही आ रहा है कि काले अतीत को सब से छुपाने के लिए संत बन जाना एक आसान तरीका है। लेकिन अपराधी का काला अतीत कभी न कभी उसके भविष्य में सामने आ ही जाता है। हां, वह अगर खास वाशिंग मशीन में चला गया तो बात दूसरी हो जाती है। फिर तो उसमें दूध सी सफेदी ही सफेदी दिखने लगती है।

अखबारों के पहले पेज में गुटके के विज्ञापन छपते हैं। लेकिन उसके खिलाफ़ कुछ नहीं बोला जाता है। खिलाडिय़ों को प्रताडऩा के खिलाफ़ धरना देना पड़ता हैं । लेकिन उनके हक में आवाज़ उठानेवाले बहुत ही कम मिलते हैं। कोई सैनिक अगर अपने विभाग के कुछ भी गलत काम के खिलाफ़ बोलता है तो उसे भी देशद्रोही बना दिया जाता है। कोई बलात्कारी को समाज में सम्मान देने की परंपरा शुरू हो जाए तो लोग उसे सही प्रथा मानते हैं। जब खामोशी को ही सही माना जाता है तो फिर ईश्वर से यही प्रार्थना करना चाहिए कि अब वे बगैर ज़बान के ही इंसान बना कर दुनिया में भेजना शुरू कर दे। जिस चीज़ का हम इस्तमाल ही करना नहीं जानते हैं, उसका न होना ही ठीक है।

असम सरकार ने 2022 के 14 नवंबर को गुवाहाटी हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था कि मई 2021 से अब तक पुलिस ने 171 लोगों पर गोली चलाई और पुलिस हिरासत में 4 लोगों की मौत हुई। फिर उसके बाद 28 दिसम्बर 2022 को असम सरकार के एक मंत्री ने असम विधान सभा में बताया कि अब तक असम में पुलिस एनकाउंटर में कोई भी नहीं मरा । है ना ये अजीब बात कि एक ही सरकार करीब करीब एक ही समय में दो अलग अलग बातें कहती है। सच क्या झूठ क्या ये कौन बताएगा? वैसे तो कहते है कि अभी के असम उच्छेद और एनकाउंटर के मामलों में ही ज़्यादा ख्याति बटोर रही है।


सोशल मीडिया में ही पढ़ी हुई एक कहानी से अपनी बातें फिलहाल ख़त्म करना चाहती हूं। 

फ्रेंच रिवोल्यूशन के दौरान पेरिस से जान बचा कर एक आदमी निकल भागा। वह किसी तरह छुपते छुपाते एक गांव पहुंच गया। उस गांव के किसी एक दोस्त ने उससे पूछा कि शहर में क्या हो रहा है? उसने दुखी होकर जवाब दिया कि बहुत ही बुरा हाल है। वहां हजारों लोगों के गले काटे जा रहे हैं और लोग बेमौत मर रहे हैं। बात सुनते ही पास खड़े एक दुकानदार ने चिल्लाया,- ‘अरे, अब तो हमारा टोपी का धंधा मंदा हो जाएगा।’

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