विचार / लेख

एक वह था, महाभारत लिखने वाला, राही मासूम रज़ा
18-Jun-2023 11:33 AM
एक वह था, महाभारत लिखने वाला, राही मासूम रज़ा

-अपूर्व गर्ग

कभी हिन्दुस्तान की जनता ने पहला जनता कर्फ्यू रविवार को देखा.
ऐसे रविवार जब अचानक एक निर्धारित समय पर सड़कें सूनी हो जाती,
बाज़ार वीरान हो जाते, रसोई से कोई धुआँ नहीं निकलता, पूरे शहर में सन्नाटा पसरा रहता ...ऐसे थे वो दिन !

ये वो दिन थे जब राही मासूम रज़ा के लिखे 'महाभारत 'के संवाद घर-घर में गूँज रहे थे और पूरा देश ख़ामोशी से सुनता रविवार के इंतज़ार में जीता.

ये और बात है राही मासूम रज़ा उन दिनों बेहद व्यस्त थे और जब बी आर चोपड़ा ने उनसे महाभारत लिखने का आग्रह किया तो अति व्यस्तता के चलते रज़ा साहब ने बी आर चोपड़ा से क्षमा मांग ली.

पर वो भी बी आर चोपड़ा ठहरे. उन्हें राही मासूम रज़ा के सिवाय दूसरा स्वीकार ही न था. उन्होंने मीडिया से बात करते हुए पटकथा और संवाद के लिए राही मासूम रज़ा का नाम घोषित कर दिया.

इसके बाद बी आर चोपड़ा के पास विरोध पत्रों का तांता लग गया कि क्या महाभारत के लिए उनके पास 'रज़ा ' जैसे ही बचे हैं ?

बी आर चोपड़ा ने ये तमाम विरोध पत्र राही मासूम रज़ा के पास भेज दिए.

अगले दिन राही मासूम रज़ा ने बी आर चोपड़ा को फ़ोन कर कहा - :
"चोपड़ा साहब ! महाभारत अब मैं लिखूंगा. मैं गंगा का बेटा हूँ. मुझसे ज़्यादा हिन्दुस्तान की सभ्यता और संस्कृति को कौन जानता है.''

आज जब संस्कृति के ठेकेदार कहे जाने वाले 'मनोजों' ने लोगों के विश्वास की, परंपरा की, लेखन की, शालीनता की धज्जियाँ उड़ा कर सब कुछ तार-तार कर दिया तो देख रहा हूँ कैसे और किस श्रद्धा से लोग रज़ा साहब को याद कर रहे हैं.

सोचिये, टोपीबाज की तरह के लोग 'टोपी शुक्ला 'के लेखक के सामने क्या टिकेंगे !
सोचिये, जिनके पास लिखने के लिए आधा दिमाग भी नहीं वो महान उपन्यास 'आधा गाँव' के आगे कितने बौने हैं !!

सोचिये, जिनके पास न लिखने का हौसला है न हिम्मत वो 'हिम्मत जौनपुरी' के आगे कितने अप्रासंगिक और
ना-क़ाबिल-ए-बरदाश्त हैं !!!

राही मासूम रज़ा भारतीय सभ्यता और संस्कृति के बहुत बड़े अध्येयता ही नहीं माटी पुत्र - गंगा पुत्र थे.

रज़ा साहब ने लिखा, हमेशा कहा :
''मैं तीन माओं का बेटा हूँ. नफ़ीसा बेगम, अलीगढ़ यूनिवर्सिटी और गंगा.
नफ़ीसा बेगम मर चुकी हैं. अब साफ़ याद नहीं आतीं. बाकी दोनों माएं ज़िदा हैं और याद भी हैं.''

इनकी आत्मकथा में लिखी वसीयत सब कुछ कहती है :
' मेरा फ़न तो मर गया यारों
मैं नीला पड़ गया यारों
मुझे ले जा के ग़ाज़ीपुर की गंगा की गोदी में सुला देना
अगर शायद वतन से दूर मौत आए
तो मेरी ये वसीयत है
अगर उस शहर में छोटी सी एक नद्दी भी बहती हो
तो मुझको
उसकी गोद में सुला कर
उससे कह देना
कि गंगा का बेटा आज से तेरे हवाले है.'

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