विचार / लेख

लुंगी महात्म्य
19-Jun-2023 7:26 PM
लुंगी महात्म्य

-विष्णु नागर
हम भी बहुतेरों की तरह लुंगी-प्रेमी हैं।ठंड के दिनों के अलावा घर में लुंगी और बनियान धारण किए रहते हैं। कोई आने वाला हो और साथ में कोई महिला भी हो तो ऊपर कुर्ता या कमीज पहनकर सभ्य बन जाते हैं। हां घर के बाहर लुंगी पहनकर नहीं जाते।वैसे भी हम रंगीन चौखानेदार लुंगी पहनते हैं,बाहर के लिए यह शायद ठीक भी नहीं।दिल्ली की मेट्रो में तो मैं कुर्ता-पजामा पहन कर जाता हूं तो दूसरों की नजरें मुझे अजनबी की तरह देखती हैं। चौखानेदार लुंगी में फायदा यह है कि पुरानी हो जाए तो भी खराब या मटमैली नहीं लगती। इसका रंग जल्दी जाता भी का नहीं। सफेद लुंगी में तो चाय का दाग़ भी बोलता है।

धन्यवाद तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश।बताते हैं,इसका आविष्कार वहीं हुआ- छठी शताब्दी में चोल राजाओं के काल में। आजकल यह दक्षिण भारत के अलावा बताते हैं कि ओमान, श्रीलंका, म्यांमार, मारीशस, बांग्लादेश, मालदीव, ताइवान, इंडोनेशिया में भी पहनी जाती है। भारत में मुख्य रूप से दक्षिण भारत में पहनी जाती है मगर इसका कम-ज्यादा चलन सारे भारत में है, पंजाब में भी। भगवाधारी साधु संन्यासी भी लुंगी ही पहनते हैं, उसका नाम जो भी हो। दक्षिण भारत में रेशमी लुंगी विवाह आदि अवसरों पर पहनी जाती है मगर दैनिक इस्तेमाल में सूती ही चलती है।इसके कई रूप हैं-मुंडू, वेष्टि, तहमद आदि पर हमारे लुंगी प्रेम का संबंध इसके इतिहास और इसके भौगोलिक विस्तार आदि से नहीं है। हमारा यह ज्ञान, गूगल ज्ञान है।

हमारा लुंगी प्रेम विशुद्ध उपयोगितावादी है।इससे उपयोगी अधोवस्त्र हमारी नजर में पुरुषों के लिए दूसरा नहीं। बाजार से लाओ। दोनों किनारों पर सिलाई लगवाओ और तैयार। वैसे सिलवाने की जरूरत भी नहीं मगर हमें ऐसी ही लुंगी चलती है। यह ऐसा वस्त्र है,जो सिर के ऊपर से पहन लो,नीचे पांव की ओर से पहन लो। किसी गीली जगह फंस गए तो आधी लुंगी आसानी से ऊपर कर लो।  जरूरत पडऩे पर यह लंगोट भी बन जाती है। शरीर पर यह कमर के अलावा कहीं कसती नहीं, नाड़ी के खुलने न खुलने का झंझट नहीं।ढीली ढाली पोशाक है, गर्मियों में आरामदेह। खड़े रहो, बैठो, सो ओ, कपड़े धो ओ, सबमें आराम ही आराम।रात में चाहो तो हल्की ठंड सुबह लगने पर गांठ खोलकर इसे ओढ़ लो। गले से घुटनों तक यह शरीर ढंक देती है।

दक्षिण में गरीबों-मजदूरों का यह सहारा है। वहां के नेताओं की पोशाक सफेद कमीज और सफेद लुंगी है, जैसे उत्तर भारत में सफेद कुर्ता-पजामा है।नब्बे के दशक में केरल गया था तो पुरुष अमूमन लुंगी ही पहनते थे।अब इसकी जगह पैंट-शर्ट ने ले ली है। लड़कियों खासकर सलवार-कमीज पहनती हैं, केरल में महिलाओं में लुंगी पहनने का चलन अब बहुत कम है? मगर यह पहनी जाती रही है। तिरुवनंतपुरम के पद्मनाभ स्वामी मंदिर में लुंगी पहन कर ही पुरुष जा सकते हैं,पैंट-पजामा अछूत है। महिलाएं केवल साड़ी पहन कर आ सकती हैं, सलवार-कमीज में नहीं।न मालूम हो तो वहीं खरीदो और पहनो।
इति लुंगी महात्म्य।

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