विचार / लेख

मणिपुर जल रहा है और हम आदिपुरुष में ही फंसे हुए हैं
19-Jun-2023 8:09 PM
मणिपुर जल रहा है और हम आदिपुरुष में ही फंसे हुए हैं

-रमेश अनुपम
मणिपुर इस देश का ही एक खूबसूरत हिस्सा है। पूर्वोत्तर भारत का एक अभिन्न अंग। सेवन सिस्टर्स के नाम से जाना जाने वाले सात बहनों में से एक मणिपुर पिछले महीने मई की 3 तारीख से सुलग रहा है जिसके चलते अब तक लगभग 100 से भी ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और 35000 से भी ज्यादा लोग वहां विस्थापित हो चुके हैं, जिसमे बच्चों से लेकर वृद्ध तक शामिल हैं।

कुल 28 लाख 56 हजार की आबादी वाले इस शांत और सुरम्य राज्य मणिपुर में 20 अप्रैल को हाईकोर्ट के कार्यवाहक न्यायाधीश एम.वी. मुरलीधरन के उस फैसले ने जिसमें राज्य के मैतेई समुदाय के लोगों को जनजाति समुदाय में शामिल किए जाने की मांग को राज्य सरकार द्वारा 4 सप्ताह के भीतर विचार करने के लिए कहा गया था, पूरे राज्य को एक खतरनाक दावानल में झोंक दिया है।

मैरी कॉम की चीखें और आर्त्तनाद हमें नहीं सुनाई दे रही है जिसमें वे देश के प्रधानमंत्री से गुहार लगा रही हैं कि मेरा मणिपुर जल रहा है प्रधानमंत्री जी, हालात अच्छे नहीं है, मेरे इस राज्य को बचा लीजिए।

रतन थियाम का कोरस रेपिटरेरी भी रो रहा है पर इसे सुनने की फुर्सत किसे है।

मणिपुर पिछले डेढ़ महीने से कर्फ्यू की गिरफ्त में है, उपद्रवियों को देखते ही गोली मार दिए जाने का आदेश दिया जा चुका है, इंटरनेट सेवाएं वहां अनिश्चित काल के लिए बंद कर दी गई है। हालात बेहद चिंताजनक और तकलीफदेह है।

मणिपुर राज्य में कुकी और नगा दोनों ही प्रमुख जनजातियां पहाड़ों में निवास करती हैं। पर्वतीय इलाकों में रहने वाली ये जनजातियां राज्य के 90 प्रतिशत हिस्से में बसी हुई हैं, आबादी के हिसाब से उनकी आबादी राज्य में 40 प्रतिशत है। ये मैतेई समुदाय की तुलना में कम पढ़े-लिखे हैं। सत्ता पर भी उनका वर्चस्व और प्रभाव मैतेई की तुलना में काफी कम है।

सन 1972 में पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त करने वाले मणिपुर राज्य में कुल 60 विधानसभा सीटें हैं। जिनमें से 40 सीटें मैतेई समुदाय से आने वाले विधायकों की है। मैतेई एक प्रभुता संपन्न, पढ़ा-लिखा और राज्य में अपना एक अलग रसूख रखने वाला समुदाय माना जाता है।

पिछले कुछ वर्षों से मैतेई समुदाय के लोग कुकी और नगा जनजाति की तरह उन्हें भी जनजाति समूह में शामिल किए जाने की मांग करते आ रहे हैं।

मणिपुर में अभी तक कुकी और नगा जनजातियों की जमीन कोई गैर जनजाति का व्यक्ति नहीं खरीद सकता है। मैतेई भी उनकी जमीन नहीं खरीद सकते हैं। कुकी और नगा जनजाति जो मैतेई की तुलना में काफी पिछड़ी हुई मानी जाती हैं उन्हें यह डर है कि मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा मिल जाने से वे इस आरक्षण का फायदा उठाकर बहुत आगे पहुंच जायेंगे, उनकी जमीन भी सस्ते दामों में खरीदकर और अधिक संपन्न हो जायेंगे जबकि कुकी और नगा जनजाति वैसे ही पिछड़े हुए गरीब हैं।

राज्य में इस समय भाजपा की डबल इंजिन वाली सरकार कायम है। एन. बीरेन सिंह इस राज्य के मुख्यमंत्री हैं जो स्वयं मैतेई समुदाय से आते हैं। देश के गृहमंत्री ने मणिपुर जाकर यह ऐलान किया था कि राज्य में पंद्रह दिनों के भीतर स्थिति सामान्य हो जायेगी पर इन डेढ़ महीनों में भी मणिपुर में स्थिति सामान्य नहीं हुई है बल्कि बेहद डरावनी और असामान्य बनी हुई हैं।

मणिपुर राज्य के मानवाधिकार कार्यकर्ता के.ओनिल का मानना है कि 'राज्य में जारी हिंसा से निपटने में केंद्र सरकार कोई गंभीरता नहीं दिखा रही है।'

यही हाल राज्य के मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह का भी है जो राज्य में भाजपा की कमान संभाले हुए हैं।

दुखद यह है कि बंदूकों के साए में जल रहे मणिपुर राज्य की, वहां के नागरिकों की चिंता हमें उस तरह से नहीं हो रही है, जिस तरह से होनी चाहिए थी।
हम सब भाजपा के बिछाए हुए उस बिसात में ही फंसकर रह गए हैं जिसका नाम है आदिपुरूष। वे तो चाहते ही यहीं हैं कि हम मणिपुर को भूलकर आदिपुरुष में व्यस्त हो जाएं।

अच्छा है 'तेल तेरे बाप का, कपड़ा तेरे बाप का,जलेगी भी तेरे बाप की ही में मस्त रहें, व्यस्त रहें। आगे अभी कंगना राणावत की एक फिल्म भी जबरदस्त धमाका करने वाली है, उसकी भी तैयारी में लग जाएं।

आखिरकार मणिपुर की चिंता भी कोई चिंता है। इस पूर्वोत्तर राज्य की चिंता भला हम क्यों करें।

जे.एन.यू के होनहार छात्र उमर खालिद बिना किसी ट्रायल के 3 सालों से भी ज्यादा समय से जेल में बंद है, लेकिन इससे भी हमें क्या लेना देना है।

हम सब बुद्धिजीवी हैं, पत्रकार हैं लेखक हैं, समाजसेवी हैं, जागरूक नागरिक हैं, लेकिन हम ही सबसे ज्यादा अंधे, गूंगे और बहरे लोग हैं। क्या किया जाए।
तो जय श्रीराम कहकर विदा लिया जाए।

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