विचार / लेख
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बेहद करीबी माने जाने वाले वागनर ग्रुप के प्रमुख येवगेनी प्रिगोजिन ने कदम पीछे खींच लिए हैं। पहले उन्होंने रूसी शहर रोस्तोव-ऑन-डॉन पर कब्जा करने का दावा किया था।
बगावती तेवर लिए प्रिगोजिन ने इससे पहले कहा था कि वो अपनी प्राइवेट आर्मी के लड़ाकों के साथ मॉस्को की तरफ मार्च करेंगे। उनका कहना था कि वो देश के रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु और रूसी सेना के चीफ ऑफ स्टाफ वालेरी गेरासिमोव से रूबरू मुलाकात करना चाहते हैं। प्रिगोजिन की इस चेतावनी के बाद मॉस्को में सुरक्षा व्यवस्था बेहद कड़ी कर दी गई थी। कई अन्य शहरों में आम नागरिकों की आवाजाही को लेकर भी पाबंदियां लगाई गई थी। लेकिन रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भरोसेमंद मित्र बेलारूस के राष्ट्रपति एलेक्जेंडर लूकाशेंको के हस्तक्षेप के बाद अब प्रिगोजिन ने मॉस्कों की तरफ मार्च करने का अपना इरादा बदल दिया है। अपनी प्राइवेट आर्मी के लड़ाकों को लेकर अब वो बेलारूस की तरफ जा रहे हैं।
विद्रोह से पुतिन की छवि को नुकसान?
बीबीसी रूसी सेवा की संवाददाता ओल्गा इवशिना मानती हैं कि प्रोगोजिन के विद्रोह ने रूसी राष्ट्रपति छवि को नुकसान पहुंचाया है। वो कहती हैं कि पुतिन और रूस का मीडिया सालों से देश के भीतर एकता और स्थिरता की एक छवि बनाने की कोशिश करते रहे हैं, जिसे इस विद्रोह ने एक तरह से चुनौती दे दी है। रोस्तोव-ऑन-डॉन पर नियंत्रण के प्रोगोजिन के दावे के बाद कई राजनेताओं में डर फैल गया। फ्लाइट रडार सेवाओं के अनुसार इस दौरान कई निजी जेट विमानों को मॉस्को से बाहर जाते देखा गया है। एक के बाद एक प्रांतीय गवर्नर मीडया के सामने आए और उन्होंने रूसी राष्ट्रपति के प्रति अपनी वफादारी की बात दोहराई।
ओल्गा कहती हैं, ‘इससे पहले 1991 में रूस में एक और सशस्त्र सैन्य विद्रोह की कोशिश हुई थी। उस वक्त प्रांतीय गवर्नरों ने विद्रोहियों का साथ दिया था। शुक्रवार और शनिवार को रूस में जो कुछ हुआ उसमें ऐसा कुछ नहीं दिखाई दिया। हालांकि ये जरूर कहा जा सकता है कि इस विद्रोह ने रूसी राष्ट्रपति की छवि में दाग जरूर लगा दिया है।’
बेलारूस की पत्रकार और शोधकर्ता हान्ना ल्यूबाकोवा कहती हैं कि प्रोगाजिन और लूकाशेंको के बीच हुई ये डील बताती है, ‘लूकाशेंको पुतिन के हाथों की कठपुतली हैं।’ वो कहती हैं कि लूकाशेंको के हाथों में ‘इतनी ताकत नहीं है कि वो प्रिगोजिऩ को फिर से इस तरह का कदम उठाने से रोक सकें।’ वो कहती हैं, ‘आपको ये नहीं भूलना चाहिए कि केवल एक दिन में प्रिगोजिन लगभग मॉस्को की सरहद तक पहुंच गए थे। मुझे नहीं लगता कि इस तरह का बेहद महत्वाकांक्षी व्यक्ति जो इस तरह का बड़ा जोखिम लेने की काबिलियत रखता है लूकाशेंको की बात सुनेगा।’ वो कहती हैं, ‘प्रिगोजिन के विद्रोह का बेलारूस के भीतर भी कुछ हद तक असर होगा क्योंकि उनके विद्रोह की ये घटना पुतिन की कमजोरियों को सामने ले आई है।’
रूसी राष्ट्रपति के आलोचक रहे एलेक्जेंडर लित्विनेन्को की पत्नी मारिया ने बीबीसी संवाददाता लॉरा कॉन्सेनबर्ग को बताया कि इस पूरे घटनाक्रम ने पुतिन की कमजोरी दुनिया को दिखा दी है। वो कहती हैं, ‘एक बर्बर नेता वाली पुतिन की छवि केवल लोगों के दिनों में खौफ पैदा करने के लिए है।’ मारिया के पति एलेक्जेंडर लित्विनेन्को की हत्या साल 2006 में हो गई थी। मारिया कहती हैं, ‘ये विद्रोह पुतिन की सत्ता के बारे में एक खास संदेश देता है। पुतिन ऐसे व्यक्ति नहीं हैं जो किसी भी चीज पर नियंत्रण रख पाते हैं।’
बीबीसी संवाददाता स्टीव रोजनबर्ग कहते हैं कि प्रिगोजिन की बगावत के बाद जब पुतिन ने शनिवार को टेलीविजन पर लोगों को संबोधित किया तो कड़े शब्दों का इस्तेमाल जरूर किया लेकिन वो मजबूत नहीं दिखे।
वो कहते हैं, ‘अपने संदेश में सबसे पहले कहा, ‘देश की पीठ पर छुरा भोंका गया है’। उन्होंने प्रिगोजन को गद्दार कहा। लेकिन शाम होते-होते लूकाशेंको के शांति प्रस्ताव पर प्रिगोजिन सहमत हो गए और रूस ने उनके खिलाफ लगाए सारे आरोप हटा लिए।’ वो कहते हैं, ‘वागनर और क्रेमलिन के बीच क्या समझौता हुआ है उसके बारे में अभी विस्तृत जानकारी नहीं है, इसलिए इसके बारे में कुछ कहना मुश्किल है।’ वो कहते हैं कि हो सकता है कि आने वाले दिनों में इस बारे में और जानकारी सामने आएगी लेकिन ये कहा जा सकता है कि पुतिन इस घटनाक्रम के बाद अधिक ताकतवर नहीं दिख रहे।
आगे पुतिन क्या करेंगे?
पोलैंड के सासंद राडोस्लॉ सिकोर्स्की कहते हैं कि इस विद्रोह ने जहां एक तरफ पुतिन की कमजोरी दिखाई है वहीं उन्हें और ताकतवर भी बना दिया है। वो कहते है, ‘आप सोचिए कि हथियारबंद लड़ाकों का पूरा दस्ता रूस के भीतर सैंकड़ों किलोमीटर आगे तक चला आया लेकिन कहीं किसी ने उन्हें न तो रोकने की कोशिश की और न ही उन्हें किस ने चुनौती दी। ये पुतिन की कमजोरी दिखाता है।’ ‘लेकिन फिर आगे पुतिन शायद उन लोगों को नहीं बख्शेंगे जिन्होंने वागनर को समर्थन दिया और उनका विरोध नहीं किया। वो अब आगे क्या करेंगे ये आने वाला वक्त बताएगा लेकिन उनकी सत्ता अब और निरंकुश और बर्बर हो जाएगी।’
बीबीसी संवाददाता ओल्गा इवशिना कहती हैं कि पुतिन ताकत के इस्तेमाल में यकीन रखते हैं और हो सकता है कि हमेशा की तरह वो अब अधिक ताकत का इस्तेमाल करें। वो कहती हैं कि पुतिन देश के भीतर अभिव्यक्ति की आजादी पर लगाम लगा सकते हैं, जाने-माने टेलीग्राम चैनलों समेत मीडिया पर अधिक पाबंदी लगा सकते हैं। ये भी हो सकता है कि वो यूक्रेन पर हमले बढ़ा दें। वो कहती हैं, ‘एक बात तो स्पष्ट है, अगर अगले सप्ताह यूक्रेन को कहीं पर युद्ध में कुछ बढ़त मिल जाती है तो रूस इसके लिए सीधे तौर पर वागनर और उसकी बगावत को जिम्मेदार ठहराएगा।’
हालांकि बीबीसी की पूर्वी यूरोप संवाददाता सारा रीन्सफोर्ड कहती हैं कि मामला इतना सीधा नहीं लगता। वो कहती हैं, ‘पहले गद्दारी करने का आरोप लगाना और फिर आपराधिक मामले हटाकर अपने कदम पीछे हटा लेना, ये पुतिन की शख्सियत का हिस्सा नहीं लगता।’ वो कहती हैं कि इस पूरे घटनाक्रम से जुड़े कई सारे सवाल अभी बाकी हैं, जिनका अब तक कोई जवाब नहीं मिल सका है। वो कहती हैं, ‘प्रिगोजिन ऐसे व्यक्ति तो हैं नहीं जो यहां से जाकर ट्रैक्टर चलाने या आलू की खेती करें। रही पुतिन की बात करें तो वो अब और निरंकुश हो जाएंगे और विद्रोह से जुड़े लोगों का दमन करेंगे।’
बेलारूस के साथ डील और प्रिगोजिन का यू-टर्न
लूकाशेंको से बातचीत के बाद रोस्तोव-ऑन-डॉन से मॉस्को की तरफ आने वाले वागनर ने मॉस्को से 200 किलोमीटर पहले ही अपना मार्च रोक दिया। ये लड़ाके रोस्तोव से आगे वोरोनेज पहुंच चुके थे जहां उन्होंने वहां के सैन्य मुख्यालय पर कब्जा करने का दावा किया। लेकिन रविवार को प्रिगोजिन एक कार में रोस्तोव शहर से बाहर जाते नजर आए। रोस्तोव से मॉस्को की तरफ निकलें तो वोरोनेज ठीक आधे रास्ते में पड़ता है। लेकिन सवाल ये है कि वागनर और प्रिगोजिन को इससे क्या हासिल हुआ?
शनिवार शाम को पुतिन के मित्र और बेलारूस के राष्ट्रपति एलेक्जेंडर लूकाशेंको के साथ प्रिगोजिन का समझौता हो गया। क्रेमलिन ने कहा कि प्रिगोजिन बेलारूस जाएंगे और इसके बदले उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों को हटा लिया जाएगा। वहीं उनके लड़ाकों को भी क्षमादान दिया जाएगा।
बीबीसी मॉनिटरिंग के विटाली शेवचेन्को कहते हैं कि प्रिगोजिन के बेलारूस जाने की खबर बस एक सूत्र के हवाले से है। क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने इसके बारे में जानकारी दी थी। लेकिन इस मामले में अब तक प्रिगोजिन ने कोई टिप्पणी नहीं की है। उन्होंने अब तक केवल मार्च बंद करने की ही बात की है।
शेवचेन्को कहते हैं ‘प्रिगोजिन के लिए ये नुकसान का सौदा है। अगर क्रेमलिन की बात सही है तो उन्हें निर्वासन में बेलारूस भेजा गया है। रही बात वागनर ग्रुप की तो क्रेमलिन चाहता है कि उसके लड़ाके सेना के साथ अनुबंध करें और सेना का हिस्सा बन जाएं। यानी ये एक तरह के वागनर का अंत है।’
क्या कह रहे हैं रूसी नागरिक?
प्रिगोजिन की बगावत के बाद पुतिन के राष्ट्र को संबोधित करने के बारे में कहा जा रहा है कि उन्होंने स्थिति को गंभीरता से लिया और उन्हें लगा कि उन्हें खुद जनता के सामने आने की जरूरत है।
रूस की एक जानीमानी विश्लेषक तातियाना स्टैनोवाया ने टेलीग्राम पर लिखा, ‘रूस के संभ्रांत वर्ग के कई लोग निजी तौर पर इसके लिए पुतिन को जि़म्मेदार ठहराएंगे कि मामला इस हद तक बढ़ गया और सरकार की तरफ से सही समय पर कोई उचित प्रतिक्रिया नहीं आई।’ उन्होंने लिखा ‘इसलिए, यह पूरा घटनाक्रम केवल पुतिन के लिए नहीं बल्कि पुतिन के आला अधिकारियों के लिए भी एक का झटका है।’ इस पूरे मामले पर रूसी नागरिकों की प्रतिक्रिया के बारे में कोई भी निष्कर्ष निकालना मुश्किल है। हालांकि मीडिया में वागनर लड़ाकों और टैंकों के साथ आई रूसी नागरिकों की तस्वीरों ने नेताओं को चिंता में जरूर डाल दिया होगा।
वागनर के लड़ाकों ने रोस्तोव शहर पर कब्ज़ा करने का दावा किया था। लेकिन जब वो शहर से बाहर जाने लगे तो कई लोगों ने उनका अभिवादन किया, लोगों ने उनके लिए तालियां बजाई और उनके साथ तस्वीरें लीं। हालांकि ये भी महत्वपूर्ण है कि वागनर के लड़ाकों के शहर में आने के बाद कुछ लोग शनिवार को शहर छोड़ते हुए भी नजर आए थे। (bbc.com/hindi)