विचार / लेख
-डॉ. आर.के.पालीवाल
खुद को प्रधानमंत्री की जगह प्रधान सेवक कहने, फकीर बताने और लाल-नीली बत्तियों की संस्कृति समाप्त करने की घोषणाओं से ऐसा लगा था कि प्रधानमंत्री सच में वीवीआईपी संस्कृति खत्म करना चाहते हैं। लेकिन उनकी ये घोषणाएं जुमले ही साबित हुई हैं। अब अदने से नेता, तमाम जन प्रतिनिधि और अफसर अपने वाहनों पर कान फोड़ू हूटर लगाए घूमते हैं जो लाल नीली बत्तियों से भी खतरनाक हैं। उनकी कर्कश आवाज का ध्वनि प्रदूषण आदमी के साथ कुत्ते, बिल्ली और अन्य पशु पक्षियों के लिए भी खतरनाक है। प्रधानमंत्री पर यह कहावत चरितार्थ होती है कि अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने से कोई लाभ नहीं। बात तो तब है जब दुनिया हमारी प्रशंसा करे।
प्रधानमंत्री आज भोपाल में थे। भोपाल के हजारों लोगों के लिए आज प्रधान सेवक (प्रधान मंत्री) प्रधान उत्पीडक़ बन गए। उनके आगमन पर कई जगह सडक़ बंद की गई थी। ट्रैफिक पुलिस का अता-पता नहीं था। तमाम पुलिस प्रधान सेवक की सेवा में लगी होगी! घंटों ट्रैफिक जाम और बारिश में मरीज, बच्चे और बुजुर्ग सडक़ों पर वाहनों के जहरीले धुंए के बीच फंसे थे। क्या प्रधानमंत्री को इतनी भी जमीनी हकीकत मालूम नहीं कि किसी शहर में उनके आगमन से आम अवाम को कितनी परेशानी होती है।
लोकतंत्र की तमाम विकृतियों की शुरुआत के श्रेय की तरह प्रमुख पदों पर बैठे लोगों की सुरक्षा को कड़ा करने की अमेरिकी संस्कृति की शुरुआत का श्रेय भी कांग्रेस को ही जाता है। वर्तमान दौर में उसमें लगातार बढ़ोतरी ही हुई है। मोदी जी अन्य प्रधानमंत्रियों की तुलना में निरंतर चुनावी मोड़ में रहने के कारण दौरे भी बहुत ज्यादा करते हैं।
भोपाल में वे भाजपा कार्यकर्ता सम्मेलन और वंदे भारत को हरी झंडी दिखाने आए थे। ये काम क्रमश: भाजपा अध्यक्ष और रेल मंत्री कर सकते थे। मोदी जी हर चीज का श्रेय खुद लेना चाहते हैं। अति सर्वत्र वर्जयेत की पुरानी कहावत संभवत: भारतीय संस्कृति के स्नेही प्रधानमंत्री ने भी सुनी होगी लेकिन वे इस पर अमल नहीं करते। यदि अमल करते तो वे जगह-जगह वंदे भारत ट्रेनों को हरी झंडी दिखाने नहीं पहुंचते।
मध्यप्रदेश शासन ने प्रधानमंत्री के दौरे पर एक पेज का विज्ञापन जारी कर प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिया है। सरकार अपने प्रधानमंत्री को धन्यवाद देने के लिए भी जनता का धन बर्बाद करती है। उसे यह अहसास नहीं होता कि प्रधानमंत्री के भोपाल दौरे से भोपाल के लोगों को कितनी परेशानी होती है। डबल इंजन सरकार में शासन के लोग भी प्रधानमंत्री की आवभगत में जुट जाते हैं क्योंकि उनके मुख्यमंत्री खुद सब काम छोडक़र अपने प्रधानमंत्री को खुश करने में लगे रहते हैं। बेहतर है जिस दिन प्रधानमंत्री किसी शहर में आएं, वहां स्कूलों, बाजारों और दफ्तरों के लिए सार्वजनिक अवकाश घोषित कर दिया जाए ताकि घंटों जाम में फंसे वाहनों के जहरीले धुंए से नागरिकों, प्रकृति और पर्यावरण को होने वाले नुकसान से बचा जा सके। जनता को जाम में फंसकर एक सौ बीस रुपए लीटर पेट्रोल न फूंकना पड़े। सडक़ों पर भीड़ कम होने से बीमार लोग अस्पतालों तक तो पहुंच सकेंगे।
प्रधानमंत्री खुद को प्रधान सेवक के साथ-साथ फकीर भी कहते हैं। फकीरों की सबसे बड़ी पहचान निर्भयता होती है। अति वरिष्ठ जैन मुनि विद्यासागर जी सुबह होने के पहले अकेले किसी भी निर्जन स्थान की तरफ निकल जाते हैं। 1916 में महात्मा गांधी ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के अवसर पर तत्कालीन वायसराय को भारी-भरकम सुरक्षा के साथ बनारस आने पर आड़े हाथ लिया था जिसकी सराहना तत्कालीन मीडिया में हुई थी। दुर्भाग्य से वर्तमान दौर में मीडिया का बड़ा हिस्सा इस तरह का साहस नहीं रखता कि वह गांधी जैसे निर्भय फकीर की मिसाल प्रधानमंत्री के सामने आईने के रुप में रख सके। प्रधानमंत्री अक्सर अपनी विदेश यात्राओं में महात्मा गांधी का जिक्र करते हैं। यदि उन्हें सच में लोगों का दिल जीतना है तो उन्हें गांधी से सादगी, सेवा और निर्भयता के कुछ गुर भी सीखने चाहिएं!