विचार / लेख
-मनीष सिंह
पटना मीटिंग एक जरुरी किस्म का गैरजरूरी एक्सरसाइज है। कर लिया, तो ठीके है।
तमिलनाडु, बिहार, महाराष्ट्र की 100 सीट में कांग्रेस का ऑलरेडी गठबंधन है। जो होना है, वो पहले ही तय है। पटना कोई नया रंग नहीं देगा।
राजस्थान, सीजी, एमपी, कर्नाटक, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड, असम, गोआ, पंजाब में उसे किसी की जरूरत नही। लड़े, और जीते या हारे.. उसका अपना दम है।
दो सौ सीट यहां हो गई। केरल, आंध्र, तेलंगाना में भाजपा का कोई नामलेवा नही। तो वहां भाजपा को हराने के लिए किसी से गठबंधन करना, जबरन विपक्ष का स्पेस भाजपा को देना है।
रह गयी दिल्ली, उड़ीसा, यूपी, कश्मीर, और बंगाल। यहां सामने वाली पार्टी कुछ दे, तो ठीक, न दे तो भी ठीक। मुझे ज्यादा लाभ या हानि तो दिखती नही। गठबंधन न किया तो क्षेत्रीय दल साफ हो जाएंगे।
दरअसल एकदम स्पस्ट है। पैन इंडिया कांग्रेस ही लड़ रही है। क्षेत्रीय दल एकदम बौने साबित हुए है। हारे तो समाप्त, जीतकर भी शांति से सरकार नहीं चला पा रहे। तो कांग्रेस सेंटर में लौटे, उनको पीस ऑफ माइंड ज्यादा रहेगा। दो चार सीट से ज्यादा, उन्हें अपने सर्वाइवल की सोचनी चाहिए।
कांग्रेस मुक्त भारत तो फेल हो गया। मगर क्षेत्रीय दल मुक्त भारत, एक हद तक संभावनाशील है।
पटना बैठक से लाभ सिर्फ नीतीश कुमार को है। उनका हक भी बनता है। मेहनत कर रहे हैं। बन जाएं पीएम, सम्हालें निटी-ग्रिटी राजनीति..
कायदे से राहुल को उनको यूपीए का कन्वेनर बना देना चाहिए। इस शर्त के साथ कि कांग्रेस 350 सीट लड़ेगी। और वहां कोई दूसरा फुटकर टाइप दल अपना कैंडिडेट नही खड़ा करेगा।
राजनीतिक दांव पेंच और सीटवार चवन्नी अठन्नी नीतीश और खडग़े सम्हाल लेंगे। और बखूबी सम्हाल लेंगे। खुद निकलें भारत जोड़ो 2 पर।
शुरू नोआखाली से कर सके तो ठीक, अन्यथा मणिपुर से करें। असम, वेस्ट बंगाल, बिहार, यूपी, एमपी, होते गुजरात मे पोरबंदर पर समापन। यह काम उन्हें आता है, यही फबता है, यहीं कांग्रेस को लडऩा, जीतना है। तो चलना शुरू करें। और जल्दी करें। उनको चुनाव के पहले जेल भी जाना है। कब बुलावा आ जाये,
भला कौन जानता है..