विचार / लेख

मुझे भूल तो नहीं गए, जानी!
03-Jul-2023 4:44 PM
मुझे भूल तो नहीं गए, जानी!

 ध्रुव गुप्त

मुंबई के माहिम थाने के कडक़ थानेदार से फिल्मों में स्टारडम तक का अभिनेता राज कुमार का सफर एक सपने जैसा रहा था। एक बार उनके पुलिस स्टेशन में किसी काम के लिए पहुंच फिल्म निर्माता बलदेव दुबे ने उनकी बातचीत के अंदाज से प्रभावित होकर अपनी फिल्म ‘शाही बाजार’ में अभिनेता के रूप में काम करने की पेशकश की। उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा देकर फिल्म स्वीकार कर ली। उनकी आरंभिक कई फिल्मों की असफलता ने उन्हें यह सोचने पर विवश किया था कि उनका चेहरा फिल्मों के लायक नहीं है।

1957 में महबूब खान की नरगिस पर केंद्रित फिल्म ‘मदर इंडिया’ की अपनी बहुत छोटी-सी भूमिका में वे पहली बार अपनी क्षमताओं का अहसास करा सके। उसके बाद जो कुछ हुआ वह इतिहास है। अपने व्यक्तिगत जीवन में बेहद आत्मकेंद्रित और रहस्यमय राज कुमार के अभिनय, मैनरिज्म, संवाद अदायगी की एक विलक्षण शैली थी जो उनके किसी पूर्ववर्ती या समकालीन अभिनेता से मेल नहीं खाती थी। अपनी ज्यादातर फिल्मों में उन्होंने जिस अक्खड़, बेफिक्र और अहंकार  की सीमाएं छूते आत्मविश्वासी व्यक्ति का चरित्र जिया, वह सिर्फ उन्हीं के बूते की बात थी। राज कुमार का अपना एक अलग दर्शक वर्ग रहा है जिसके लिए उनकी एक-एक अदा अपने समय का मिथक बनी। कहते हैं कि उनके समकालीन कई अभिनेता तुलना के डर से उनके साथ फिल्म करने से बचते थे। अभिनय सम्राट दिलीप कुमार के साथ उनकी दो फिल्मों-पैग़ाम और सौदागर में दोनों की अभिनय क्षमताओं की लंबे वक्त तक तुलनाएं होती रही थीं।

यह सच है कि उनकी रूढ़ अभिनय शैली में विविधता का अभाव था, लेकिन उनका दुर्भाग्य यह रहा कि जब भी उन्होंने अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करने की कोशिश की, दर्शकों ने उसे  पसंद नहीं किया। गोदान जैसी फिल्में इसका उदाहरण हैं। उनके बाद अभिनेता नाना पाटेकर ने उनकी इस अक्खड़ अभिनय शैली को पुनर्जीवित करने में बहुत हद तक सफलता पाई। आज  इस विलक्षण अभिनेता की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि, मेरे एक शेर के साथ !

वो आग था किसी बारिश का बुझा लगता था

अजीब शख्स था खुद से भी जुदा लगता था !

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