विचार / लेख

गुरुदक्षिणा
03-Jul-2023 4:45 PM
गुरुदक्षिणा

प्रकाश दुबे

एकलव्य की निशानेबाजी से घबराकर आचार्य द्रोण ने अंगूठा मांग लिया था। गुरु पूर्णिमा से एक दिन पहले चेले-चपाटों ने शरद पवार का उद्धवीकरण कर दिया। अंतर इतना सा है कि उद्धव को राजनीतिक पार्टी विरासत में मिली। मातोश्री की बदौलत सत्ता और संपत्ति का वरदान पाने सैनिक उन्हें नया बता गए। युवा शरद ने अपनी हिकमत, होशियारी और पारे की तरह मु_ी से फिसलने और पानी की तरह दूध में घुल-मिल जाने की अदा से पार्टी तैयार की। चचा को छोडक़र फिर एक बार उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले अजीत पवार  बरसों से मुख्यमंत्री बनने की हसरत पाले हैं। दस साल पहले उनसे पूछा- आपके शिवसेना में जाने की चर्चा है? सबेरे नौ बजे नहा-धोकर ताजा दम अजीत ने दादागीरी वाले लहजे में कहा - कल जाने तैयार हूं। वे मुख्यमंत्री बनाने का वादा तो करें। तब बाला साहेब ठाकरे जीवित थे।

फायदा : भाजपा के साथ पिछली मर्तबा गए तो सिंचाई घोटाले के कुछ मामले मंत्रिमंडल की पहली बैठक में अदालत से वापस लिए गए। बाकी के अब वापस लेने की वेला आ गई है।

2. सत्ता के सहयोग से एनसीपी के एकनाथ बनने की उम्मीद।

छगन भुजबल: बाल ठाकरे की दहशत के पंजे से छीनकर शरद पवार ने अपने साथ लिया। उपमुख्यमंत्री सहित कई जिम्मेदारियां दीं। बिहार समेत देश में पिछड़ों का चेहरा बनाकर पेश करना चाहा। अजीत दादा और पिछड़े समुदाय से संबंध के बावजूद महाराष्ट्र संगठन की कमान पहुंच से दूर रही।

फायदा: भ्रष्टाचार की जांच और कार्यवाही की तलवार से मुक्त होने की आस।

हसन मुश्रीफ: नवाब मलिक और अनिल देशमुख के बचाव में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की असफलता की घबराहट के कारण यही एकमात्र रास्ता बचा था।

फायदा: मुस्लिम होने के कारण कुछ कटृर धार्मिक संगठनों के हमले से राहत मिलेगी।

दिलीप वलसे पाटील: युवा कांग्रेस नेता के रूप में शरदराव के निजी सचिव से लेकर मंत्री, महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष तक कुशल प्रशासक और ईमानदारी की छाप छोड़ी। अजीत, जयंत, दिलीप तिकड़ी में साहेब का सबसे मजबूत मोहरा। कल जहां बस दुर्घटना में 25 प्राण गए, उसके पास ही सासुरवाड़ी।

फायदा: लालबत्ती? दिल के दु:ख के बाद आराम की जिंदगी? वे जानें?

प्रफुल्ल भाई: आपकी क्या राय है? सब कुछ सारू छे? बडो प्रधान का अपनापन या जांच एजेंसियों से हैरानी?

और अंत में -

कस्में, वादे, प्यार, वफा पर भारी चुनाव संग्राम।

सही कहे नरिंदर भाई, अभी अमित हैं काम।

  (लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)

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