विचार / लेख

बजरंग दल के कितने रंग
04-Jul-2023 7:18 PM
बजरंग दल के कितने रंग

-डॉ.आर.के. पालीवाल
आजकल हिंदू देवी देवताओं और महान विभूतियों के नाम का कई संगठन जमकर दुरुपयोग कर रहे हैं। एक तरफ इस तरह के दलों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है और दूसरी तरफ़ उन्हें राजनीतिक दलों का संरक्षण प्राप्त हो रहा है। श्रीराम सेना, करणी सेना और बजरंग दल आदि इसी तरह के संगठन हैं। इन सबमें आजकल बजरंग दल सबसे ज्यादा रंग दिखा रहा है। इसका ज्यादा श्रेय भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को जाता है। 

हाल ही में कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने बजरंग दल को प्रतिबंधित करने की घोषणा कर इस संगठन को अनावश्यक सुर्खियां प्रदान की थी। इस घोषणा के विरोध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो कदम आगे बढ़ कर जरुरत से ज्यादा कड़ी प्रतिक्रिया कर बजरंग दल पर प्रतिबंध को बजरंग बली का अपमान बताकर इस संगठन को एक तरह से हनुमान जी का प्रतिनिधि मान लिया था। कांग्रेस और भाजपा द्वारा कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जरूरत से ज्यादा भाव दिए जाने से बजरंग दल के बाजार भाव सातवें आसमान पर पहुंच गए थे।

कर्नाटक चुनाव में बजरंग दल मुद्दे पर कोई राजनीतिक दल सांप्रदायिक आधार पर वोटो का लाभ नहीं ले पाया। इसीलिए इसके बाद मध्य प्रदेश में बजरंग दल को भारतीय जनता पार्टी की सरकार से ज्यादा भाव नहीं मिले तो इन्होने कांग्रेस के कमलनाथ की शरण ली। 

अभी तक मध्य प्रदेश में बजरंग दल पर सरकार की नजर टेढ़ी नही थी लेकिन जब से वह खुलकर कांग्रेस के साथ आया है तब से मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार की भृकुटि टेढ़ी होना लाजमी था। कोई भी सरकार इतनी उदार नही होती कि खुलेआम चुनौती देने वाले व्यक्ति या संगठन को अपनी ताकत का प्रभाव न दिखाए। यही कारण रहा कि इंदौर में बजरंगियों के उद्दंड पर सरेआम पुलिस का डंडा चला। आजकल पुलिस अपनी मर्जी से कोई महत्वपूर्ण कार्य बहुत कम करती है लेकिन आकाओं की भृकुटि के इशारे को पलक झपकते समझ लेती है।

उत्तर प्रदेश में भी बजरंग दल के कार्यकर्ता बौखलाए हुए हैं। जालौन में कांग्रेस कार्यालय के पास उपद्रव करने आए बजरंग दल के कार्यकर्ताओं पर वहां भी पुलिस ने कार्यवाही की है।बजरंग दल जैसे संगठनों के कार्यकर्ताओं के नाम किसी प्रदेश में कोई महत्त्वपूर्ण रचनात्मक कार्य दर्ज नहीं है। ये लोग चर्चा में रहने के लिए खुद को हिंदू धर्म और संस्कृति के रखवाले समझकर यहां वहां हिंदू समाज के आराध्य के नाम पर विध्वंसक गतिविधियों को अंजाम देते रहते हैं। इसी तरह करणी सेना के पदाधिकारी भी जब तब हिंदू धर्म और संस्कृति, और उसमें भी विशेष रूप से राजपूतों से जुड़ी विभूतियों के नाम पर धमकियां देते रहते हैं। उनकी ताजा धमकी आदि पुरुष फिल्म निर्माताओं के लिए है। उनके किसी पदाधिकारी ने फिल्म के निर्माता निर्देशक को खोजकर मारने की घोषणा की है।

महात्मा गांधी हर तरह की हिंसा की मुखालफत करते हुए अक्सर कहते थे कि हिंसा की लत बडी भयानक होती है जो अपने लिए नए नए दुश्मन खोजती रहती है। वे कहते थे कि जो लोग आज अंग्रेजों को दुश्मन मानकर उनके खिलाफ हिंसा कर रहे हैं कल देश आजाद होने पर वे अपने देश के उन लोगों से हिंसक व्यवहार करने लगेंगे जिन्हें वे अपना विरोधी मानते हैं। उनका इशारा सांप्रदायिक और अंतरजातीय हिंसा की तरफ था। वर्तमान परिदृश्य में गांधी की अहिंसा का सिद्धांत इसीलिए और ज्यादा प्रासंगिक लगता है। चाहे मणिपुर की भयावह हिंसा हो या बजरंग दल और करणी सेना की विध्वंसक गतिविधियां हों या पीएफआई, आई एस आई एस और सिमी जैसे आतंकी संगठन यह सब कहीं न कहीं अपने ही देश के नागरिकों के साथ हिंसा कर रहे हैं। जब इन हिंसक तत्वों को राजनीतिक दलों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन मिलता है तब यह संगठन और ज्यादा घातक हो जाते हैं।

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