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समान नागरिक संहिता का जहाँ बीजेपी के अपने कर रहे हैं विरोध
05-Jul-2023 4:32 PM
समान नागरिक संहिता का जहाँ बीजेपी के अपने कर रहे हैं विरोध

समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर जहाँ विपक्ष पार्टियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बेरोज़गारी, मंहगाई जैसे मुद्दों से ध्यान भटकाने का आरोप लगा रही हैं, वहीं उत्तर-पूर्व में भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी राजनीतिक दल इसके विरोध में हैं.

मेघालय में बीजेपी के सहयोगी दल नेशनल पीपल्स पार्टी ने इसे भारत के विचार के ख़िलाफ़ बताया है, वहीं मणिपुर सरकार में शामिल पार्टनर नगा पीपल्स फ्रंट ने चेतावनी दी है कि इसे थोपने का परिणाम प्रतिकूल हो सकता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 जून को भोपाल में एक कार्यक्रम के दौरान यूसीसी अर्थात यूनिफॉर्म सिविल कोड पर कहा था कि एक घर में परिवार के दो सदस्यों के लिए अगर दो तरह का क़ानून होगा तो वो घर नहीं चल सकता है.

उन्होंने ये भी कहा था कि ये याद रखा जाना चाहिए कि क़ानून समानता की बात करता है.

नरेंद्र मोदी के बयान पर विपक्षी पार्टियों का कहना था कि प्रधानमंत्री मोदी ने बेरोज़गारी, महंगाई जैसे मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए यूसीसी का मुद्दा उछाला है.

मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनरॉड संगमा का क्या है रुख?

कॉनरॉड संगमा

कॉनराड संगमा एनपीपी अध्यक्ष हैं. साल 2016 में बीजेपी असम की सत्ता में आने के बाद गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस नाम से जो राजनीतिक फ्रंट बनाया गया था, जिसमें सातों पूर्वोत्तर राज्यों की प्रमुख क्षेत्रीय दलों शामिल किए गए थे.

इनमें से ज़्यादातर क्षेत्रीय दलों की यहाँ के सूबों में सरकार में शामिल हैं.

मेघालय में इस समय नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) की सरकार है, जिसमें बीजेपी भी शामिल है.

एनपीपी प्रमुख संगमा ने कहा कि पूर्वोत्तर को एक अनूठी संस्कृति और समाज मिला है और वह ऐसे ही रहना चाहेंगे.

अपने राज्य का उदाहरण देते हुए संगमा बताते है, "हमारा मातृसत्तात्मक समाज है और यही हमारी ताक़त है. यही हमारी संस्कृति रही है. अब इसे बदला नहीं जा सकता है."

हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि यूसीसी ड्राफ्ट को देखे बिना किसी विवरण में जाना मुश्किल काम है. लेकिन वो इस मामले पर बीजेपी के साथ नहीं हैं.

मणिपुर-नगालैंड में भी बीजेपी के सहयोगियों का विरोध

बीजेपी के सहयोगी दल एनपीएफ अर्थात नगा पीपुल्स फ्रंट ने चेतावनी दी है कि देश भर के विविध समुदायों पर प्रस्तावित समान नागरिक संहिता को थोपने का कोई भी प्रयास निरर्थक और प्रतिकूल होगा.

मणिपुर में बीजेपी दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में है. लेकिन पार्टी ने अपने कुछ पुराने क्षेत्रीय दलों को सरकार में पार्टनर बना रखा है.

यूसीसी पर अपनी पार्टी का रुख़ रखते हुए एनपीएफ़ नेता कुझोलुज़ो निएनु ने एक बयान जारी कर कहा, "यूसीसी लागू करने का मतलब हमारी संस्कृति को आदिम, असभ्य और अमानवीय कहकर ख़ारिज करना है."

नगा नेता ने कहा, "यूसीसी लागू करने का प्रयास अल्पसंख्यकों को विशेषकर आदिवासी समुदायों की आशा और विश्वास को धोखा दे रहा है.

असल में अनुच्छेद 371 (ए) या छठी अनुसूची जैसे संवैधानिक प्रावधान हमारे रीति-रिवाजों, मूल्यों और प्रथाओं की रक्षा और बढ़ावा देने के लिए प्रदान किए गए हैं."

नगालैंड में बीजेपी की अन्य सहयोगी सत्तारूढ़ नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) ने शनिवार को घोषणा की कि "यूसीसी को लागू करने से भारत के अल्पसंख्यक समुदायों और आदिवासी लोगों की स्वतंत्रता और अधिकारों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा".

नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो की पीर्टी एनडीपीपी ने गुरुवार को दो पन्ने को बयान जारी कर कहा कि भारत के संविधान में अनुच्छेद 371 ए द्वारा नगाओं की प्रथागत प्रथाओं और परंपराओं की सुरक्षा सुनिश्चित की गई है.

मिज़ोरम: यूसीसी के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित

मिज़ोरम विधानसभा ने इसी साल 14 फ़रवरी को सर्वसम्मति से यूसीसी को लागू करने के किसी भी क़दम का विरोध करते हुए एक आधिकारिक प्रस्ताव पारित किया था.

मिज़ोरम की सत्तारूढ पार्टी मिज़ो नेशनल फ्रंट बीजेपी के साथ एनडीए में शामिल है.

यूसीसी को लेकर छिड़ी बहस के बाद मिजोरम के गृह मंत्री लालचामलियाना ने शुक्रवार को पत्रकारों से कहा कि यूसीसी को भले ही संसद द्वारा क़ानून बना दिया जाए.

लेकिन मिज़ोरम में तब तक लागू नहीं किया जाएगा जब तक कि राज्य विधायिका एक प्रस्ताव द्वारा ऐसा कोई निर्णय नहीं ले लेती.

पूर्वोत्तर में मिज़ोरम एक ऐसा राज्य है जहां सबसे अधिक जनजातीय आबादी है. लिहाज़ा किसी भी सरकार के लिए यूसीसी को यहां लागू करना बहुत बड़ी चुनौती होगी.

असम-त्रिपुरा में बीजेपी के सहयोगी क्या सोच रहे हैं?

पूर्वोत्तर में मिज़ोरम एक ऐसा राज्य है जहां सबसे अधिक जनजातीय आबादी है. (सांकेतिक तस्वीर)

असम में बीजेपी की सहयोगी असम गण परिषद और त्रिपुरा में बीजेपी की पार्टनर इंडिजिनस पीपल्स फ्रंट ऑफ़ त्रिपुरा (आईपीएफटी) ने अभी यूसीसी को लेकर अपने रुख़ पर कोई चर्चा नहीं की है.

त्रिपुरा सरकार में जनजातीय कल्याण विभाग के मंत्री तथा आईपीएफटी के सचिव प्रेम कुमार रिआंग ने बीबीसी से कहा,"चूंकि यूसीसी को लेकर अभी तक कोई ड्राफ़्ट सामने नहीं आया है, इसलिए हमारी पार्टी के रूख़ पर अभी कोई बात नहीं हुई है."

हालांकि मंत्री रिआंग ने कहा, ''त्रिपुरा में 19 जनजातियां है जिनके समक्ष बहुत चुनौतियां है. हमारे पास ख़ुद की राजनीतिक ताक़त भी नहीं है. ''

''संविधान पर विश्वास करते हुए हमें अपनी जनजाति की पहचान और अधिकारों के लिए लड़ते रहना होगा.''

समान नागरिक संहिता यानी शादी, तलाक़, विरासत, गोद लेने समेत कई चीज़ों पर देश के सभी नागरिकों के लिए एक ही क़ानून होगा.

लेकिन यूसीसी को लेकर कहा जा रहा है कि इससे क़रीब 220 आदिवासी समुदायों के अधिकार और आज़ादी कम होने का ख़तरा है.

'यूनिफॉर्म सिविल कोड को किसी पर थोप नहीं सकते'

प्रेम कुमार रियांग (बाएं से दूसरे)

भारत की क़रीब 12 फ़ीसदी आदिवासी आबादी पूर्वोत्तर के राज्यों में बसती है. 2011 की जनगणना के अनुसार, मिज़ोरम में 94.4 फ़ीसदी, नागालैंड में 86.5 फ़ीसदी और मेघालय में 86.1 प्रतिशत आदिवासी आबादी बसी है.

पूर्वोत्तर के जनजातीय इलाक़ों में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर 'द शिलांग टाइम्स' की संपादक पैट्रिशिया मुखिम कहती हैं,"भारत में विभिन्न जाति-प्रजाति के लोग रहते है. यहां तिब्बती-बर्मन लोग बसे है. यहां ऑस्ट्रो एशियाटिक जाति के लोग रहते है. इसलिए आप किसी पर यूसीसी थोप नहीं सकते."

वो कहती हैं, "इसके अलावा पूर्वोत्तर राज्यों में छठी अनुसूची के अंतर्गत जिला स्वायत्तशासी परिषद है जो जनजातीय लोगों के रीति-रिवाज और परंपराओं को बचाए रखा है. ऐसे में अगर यूसीसी को लाया जाएगा तो छठी अनुसूची पूरी तरह ख़त्म हो जाएगी.''

पैट्रिशिया मुखिम

'' यूसीसी को लेकर जारी बहस मात्र से ही यहां की जनजातियां नाराज़गी ज़ाहिर कर रही हैं. बीजेपी का जो मक़सद है कि एक धर्म, एक भाषा सबकुछ एक जैसा ऐसा भारत में नहीं हो कता है." (bbc.com/hindi)

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