विचार / लेख

दिल्ली पुलिस की कार्यशैली
05-Jul-2023 4:40 PM
दिल्ली पुलिस की कार्यशैली

डॉ.आर.के. पालीवाल

दिल्ली पुलिस महिला पहलवानों के मामले में निश्चित रूप से भयंकर दबाव में रही है। इस दबाव का कितना प्रतिशत वह ख़ुद महसूस कर रही है और कितना प्रतिशत सरकार की तरफ़ से है यह तो कोई खोजी पत्रकार ही खोज सकता है या जांच दल के सदस्य और ईश्वर ही जानते हैं लेकिन आम आदमी के मन मस्तिष्क में दिल्ली पुलिस की जो उज्जवल छवि विज्ञापनों में प्रचारित की जाती है उसका आचरण उसके धुर विपरीत दिखाई देता है।इंडिया टी वी, जिसे सामान्यत: सरकार समर्थक चैनल्स में गिना जाता है, के चीफ रजत शर्मा ने भी रेशलिंग रेफरी जगवीर सिंह का इंटरव्यू दिखाया है जिसमें उन्होंने महिला पहलवानों के साथ 2013 और 2022 के दो शर्मनाक वाक्ये बयान किए हैं जो क्रमश: थाईलैंड के फुकेट और उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहरों में घटित हुए हैं।संगीता फोगाट को जांच के नाम पर बृजभूषण शरण सिंह के घर ले जाने पर भी खिलाडिय़ों द्वारा आपत्ति जताई जा रही है। एक तरफ बृजभूषण शरण सिंह को सत्ताधारी दल का सासंद होने के कारण वी वी आई पी ट्रीटमेंट मिल रहा है और दूसरी तरफ़ शिकायतकर्ताओं को दर दर भटकना पड़ रहा है। यदि अंतर्राष्ट्रीय पदक प्राप्त खिलाडिय़ों द्वारा यह शिकायत किसी रेफरी या कोच या आम आदमी और विपक्षी दल के सासंद के खिलाफ होती तो दिल्ली पुलिस का व्यवहार और कार्यशैली एकदम अलग तरह की होती।

जिस गति से यह मामला तूल पकड़ता जा रहा है और जिस तरह से इस मामले में नित नए खुलासे हो रहे हैं उससे यह तो निश्चित है कि बृजभूषण शरण सिंह का आजीवन कार्यवाही से बचना मुश्किल है। सामान्यत: शक्ति संपन्न लोगों के खिलाफ़ इसीलिए तत्काल कार्यवाही की मांग की जाती है क्योंकि वे अपने रसूख, पैसे और धमकियों आदि के बल पर शिकायत कर्ता और गवाहों पर तरह तरह के दबाव बनाकर संभावित सबूतों को नष्ट कर मामले को कमजोर कर सकते हैं। इस मामले में एक नाबालिग पहलवान के परिजनों के विरोधाभासी बयानों से यह लगता है कि वह परिवार भी काफ़ी दबाव में है।

जगबीर सिंह के खुलासे की यह बात चौंकाने वाली है कि बृजभूषण शरण सिंह 2013 से 2023 तक पिछ्ले दस साल से इस तरह की आपराधिक गतिविधियों में लिप्त रहा है।उसके खिलाफ़ आवाज़ उठाने की हिम्मत करने में महिला पहलवानों को भी इतना समय लगा है। संभव है कि बहुत सी महिला पहलवान अपने करियर और प्रतिष्ठा दांव पर लगाने का साहस नहीं कर पाई होंगी। जब अंतर्राष्ट्रीय पदक विजेता प्रतिष्ठित और रसूखदार पहलवानों की शिकायत पर पुलिस कड़ी कार्यवाही करने में संकोच कर रही है तब आम अनाम खिलाड़ी कैसे इतने शक्तिशाली व्यक्ति के खिलाफ मोर्चा खोल सकते हैं। वैसे भी महिलाओं के लिए इस तरह की शिकायत करना आसान नहीं है क्योंकि सबसे पहले उनके घरवाले ही उन्हें ऐसी परिस्थितियों में घर बैठने की सलाह दे देते हैं। पिछ्ले दो दशक में इस दौरान केन्द्र में उसी पार्टी की सरकार रही है जिसके ब्रजभूषण शरण सिंह सांसद हैं। इसलिए सरकार की भूमिका पर भी प्रश्न चिन्ह खड़े होते हैं। वैसे भी हमारे देश में खेलों का स्तर कई एशियाई देशों से बदतर है और आबादी के हिसाब से तो बहुत ही निम्न स्तर का है। उसमें भी महिलाओं की भागीदारी और भी कम है।

निश्चित रूप से यह मामला भविष्य में बहुत सी महिला खिलाडिय़ों को खेलों में भाग लेने से रोकेगा और महिला खिलाडिय़ों के परिजनों की चिंताएं बढ़ाएगा। इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी देश की छवि खराब करेगा। बेटी बचाओ के नारे को भी यह मामला खोखला करता है। यह चिंताजनक है कि कई दर्जन आपराधिक मामलों के आरोपी को लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय दल टिकट देते हैं और जनता उन्हें जिताती है और वे खेल संघों के लम्बे समय तक अध्यक्ष भी बने रहते हैं। एक तरह से हमारा पूरा समाज ही कटघरे में खडा दिखाई देता है।

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