विचार / लेख
डॉ.आर.के. पालीवाल
हम अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने और अपनी ही पीठ थपथपाने वाली जमात बनते जा रहे हैं। हमसे अपना देश संभल नहीं रहा और सपने विश्व गुरु बनने के पाल रहे हैं जो उन्हीं असंभव सी परिस्थितियों में संभव हो सकता है जब विश्व में अधिकतर मापदंडों में हमसे ज्यादा आगे चल रहे देश हमसे भी बुरी आदतों को आत्मसात कर लें। हमारे आजादी के आंदोलन के तमाम बड़े नायक, मसलन महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस और जवाहर लाल नेहरु आदि पश्चिम के लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी, समानता और बंधुता के विचार से काफ़ी प्रभावित थे। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर भी विशेष रूप से फ्रांस की क्रांति के बड़े समर्थक थे और वैसी ही समानता और बंधुता की कामना आजाद भारत के लिए करते थे।
दुर्भाग्य से हमने जिन यूरोपीय देशों से संविधान में लोकतान्त्रिक व्यवस्था ली है, कालांतर में हम उन पश्चिमी देशों की प्रगतिशील परंपराओं को आत्मसात नहीं कर पाए। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जब घर से ऑफिस आते जाते हैं तो उनके लिए गाडिय़ों का काफिला नहीं चलता और रास्तों का ट्रैफिक नहीं रोका जाता। उनकी सरकारी कार खराब होने पर वे पास की मेट्रो पकडक़र अपने गंतव्य पर पहुंच जाते हैं। वहां प्रधानमंत्री के बेटे का चालान काटते हुए एक पुलिस कांस्टेबल के हाथ जरा भी नहीं थरथराते। इसके बरक्स जब हम अपने प्रधानमंत्री का काफिला देखते हैं तो शर्म आती है कि अस्सी करोड़ लोगों के गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले देश के प्रधानमंत्री किस तरह पुराने राजे महाराजों की शान से चलते हैं। हमारे देश में प्रधानमन्त्री तो दूर सत्ताधारी दल के सासंद के खिलाफ कार्रवाई करने में कैसे पुलिस बल हिम्मत नही जुटा पाता।
फ्रांस की ही बात करें तो वहां के राष्ट्रपति अपने देश में हिंसक वारदात होने पर महत्त्वपूर्ण विदेशी दौरा बीच में छोडक़र अपने देश आ जाते हैं और अपनी आगामी विदेश यात्रा स्थगित कर देते हैं। हमारे यहां मणिपुर प्रदेश हिंसा की आग में जल रहा है लेकिन प्रधानमंत्री न अमेरिका और मिस्र का दौरा स्थगित करते हैं और न मणिपुर के लोगों के घावों पर मरहम लगाने वहां जाते हैं। इस दौरान वे मध्य प्रदेश में पांच दिन में दो दौरे करते हैं। उनके लिए अपनी पार्टी के विधानसभा चुनाव की शुरुआत के लिए अपने बूथ कार्यकर्ताओं के सम्मेलन में शामिल होना पहली प्राथमिकता है। मणिपुर में आंदोलन के केंद्र में आदिवासी हैं। वहां मैतेई समुदाय आदिवासी दर्जा मांग रहा है और आदिवासी दर्जा प्राप्त कुकी और नगा उन्हें आदिवासी दर्जा देने का विरोध कर रहे हैं। वहां जाकर आदिवासी समस्या को सुलझाने की बजाय प्रधानमंत्री मध्य प्रदेश के आदिवासियों के वोटों के लिए अपने दल को आदिवासियों का सबसे बड़ा हितैषी बता रहे हैं। प्रधानमंत्री की कथनी और करनी में इतना अंतर नहीं होना चाहिए।
मणिपुर के हालात बहुत चिंताजनक हैं लेकिन प्रधानमन्त्री वहां जाने के बजाय मध्य प्रदेश के आदिवासियों को सब्जबाग दिखा रहे हैं। मध्य प्रदेश में जल्द चुनाव होने हैं। इन चुनावों का असर यहां की कई लोकसभा सीटों के चुनाव पर भी पड़ेगा। इसीलिए मणिपुर के आदिवासियों की तुलना में मध्य प्रदेश के आदिवासी ज्यादा महत्वपूर्ण बन गए हैं। जब हम संविधान के सर्व धर्म समभाव की भावना को ताक पर रखकर किसी धर्म विशेष की राजनीति करने लगते हैं तब आदिवासी समुदाय को देखने का पैमाना भी बदलने लगता है। मणिपुर और पूर्वोत्तर के काफ़ी आदिवासियों ने ईसाई धर्म अपना लिया है। इस लिहाज से वे धार्मिक चश्में से गैर ईसाई आदिवासियों से अलग हो जाते हैं। राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, और केन्द्रीय मंत्रियों को यह ध्यान रखना चाहिए कि वे किसी खास धर्म,जाति, क्षेत्र, विचारधारा और वर्ग के बजाय पूरे देश का नेतृत्व करते हैं, तभी मध्य प्रदेश और मणिपुर एक समान दिखाई दे सकते हैं।