विचार / लेख

धर्म के अम्ल में घुलती राजनीति
07-Jul-2023 3:02 PM
धर्म के अम्ल में घुलती राजनीति

- डॉ.आर.के. पालीवाल
मानव विकास के क्रम में धर्म की कल्पना तब की गई थी जब मनुष्य धरती के अन्य जानवरों से अलग एक बेहतर जीवन जीने की कोशिश में अपने अर्द्ध जंगली कबीलों को विकसित कर रहा था ताकि वह अपने जीवन को खाने, सोने और प्रजनन के अलावा थोड़ा सुखमय, शान्तिमय और सार्थक बना सके। इसी पृष्ठभूमि में धरती के अलग अलग हिस्सों में अलग अलग धर्मों की शुरुआत हुई। यही कारण है कि बाहरी कर्मकांड अलग अलग होते हुए भी सभी धर्मों के आंतरिक तत्व एक जैसे ही हैं जिन्हें हम धर्मों के मूल तत्व, नैतिक मूल्य या आध्यात्मिक सिद्धांतों के नाम से जानते हैं।

मानव जीवन और मानव समाज की बेहतरी के लिए शुरू हुई धर्म की लम्बी यात्रा हमारे समय तक पहुंचते पहुंचते अजीब सी पाशविक बीहड़ता में प्रवेश कर गई है। कालांतर में धर्म के आवरण में छिपे कुछ स्वार्थी तत्वों और सत्ता के लालची राजनीतिज्ञों के नापाक गठबंधनों के कारण धर्म समय समय पर अपने मूल रूप से विकृत होता रहा है। विभिन्न धर्मों की विकृतियों के कारण ही कई विभूतियों ने विभिन्न धर्म की विकृतियों को दूर करने के लिए नए नए धर्मों की शुरुआत की है। भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदू धर्म की जड़ों से निकले बौद्ध, जैन और सिख धर्म और इस्लामिक मूल से निकले पारसी और ईसाई आदि धर्म विकसित हुए थे। अमूमन हर धर्म में एक शाखा उदारवाद की प्रवर्तक रही है और दूसरी कट्टरता की। भारतीय उपमहाद्वीप की ही बात करें तो इस्लाम की सूफी परंपरा धर्मों और संस्कृतियों के संगम की वकालत करती है तो देवबंदी सुन्नी परंपरा से तालिबान अपना नाता जोड़ते हैं। हिंदू धर्म में भी एक वक्त शैव और वैष्णव संप्रदाय एक दूसरे के आमने सामने युद्धरत अवस्था में रहते थे जिन्हें आदि शंकराचार्य ने एक दूसरे के साथ सह अस्तित्व की सीख दी थी।

आजकल हमारे देश में फिर से धर्म के अम्ल में राजनीति घोली जा रही है। कर्नाटक चुनाव की वैतरणी पार करने के लिए धर्म सबसे सशक्त नैया बन गया था। वहां राजनीति का घृणित चेहरा सामने आया है । भाजपा का तो धर्म पहला और आखिरी हथियार है ,उनकी रणनीति के बरक्स  कांग्रेस  भी इस खेल में शामिल हो गई जो कांग्रेस के दिवालियेपन का ही प्रमाण है । राजीव गांधी के शाहबानो मामले में हस्तक्षेप और राम जन्मभूमि पर पूजा शुरू कराने से कांग्रेस को कोई लाभ नहीं हुआ न भविष्य में होगा । बेहतर है वह राजनीति में धर्म से दूरी के सिद्धांत पर दृढ़ रहे। देश का बड़ा वर्ग धर्म को व्यक्तिगत जीवन तक सीमित रखना चाहता है , उसका उसे समर्थन रहेगा । यह देश का दुर्भाग्य है कि भाजपा के धार्मिक उदघोषों का उत्तर उसी तरह देने का प्रयास दूसरे दल भी करते हैं ।कभी राहुल गांधी शिवभक्त और जनेऊधारी ब्राह्मण बन जाते हैं और कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डी के शिवकुमार प्रदेश में अनेक  हनुमान मंदिर बनवाने का वायदा करते हैं । इसी तर्ज पर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार श्री राम वन गमन पथ  के विकास की घोषणा करती है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी जय श्री राम  की टक्कर में जय बजरंग बली कहकर बुज़ुर्गों को मुफ़्त तीर्थयात्रा कराती है। बंगाल में  ममता बनर्जी दुर्गा सप्तशती पाठ का जप करने लगती हैं । उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव परशुराम को याद करते हैं। सब राजनीतिक दल एक दूसरे से दो कदम ज्यादा धार्मिक हो रहे हैं।

धार्मिक कट्टरता के सहारे भारत जैसा धार्मिक विविधता वाला देश नहीं विकास नहीं कर सकता, यह बात देश के तमाम दलों और सामान्य नागरिकों को समझनी होगी ।भाजपा यदि धर्म की आड़ में अन्य मुद्दों को दबाने की कोशिश करती है तो विपक्ष को उस चक्रव्यूह में उलझने की जगह बड़े मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो सबको प्रभावित कर रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस ने भी तय कर लिया है कि भारतीय जनता पार्टी को अकेले अस्सी प्रतिशत हिंदुओं का प्रतिनिधि नहीं बनने देंगे। जैसे भाजपा ने कांग्रेस से सरदार पटेल छीन लिया, लगता है अब कांग्रेस भाजपा से हिंदुत्व छीनने की मुद्रा में है ।उसी का अनुसरण समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और आप कर रही हैं। यह माहौल विभिन्न दलों को कुछ सीट ज्यादा दिला सकता है लेकिन यह माहौल राष्ट्रहित के लिए उचित नहीं है।

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