विचार / लेख
डॉ. आर.के. पालीवाल
आजादी के दौरान और आज़ादी के बाद सर्वोदय विचार के तीन सबसे बड़े स्तंभों महात्मा गांधी, विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण का भारतीय समाज में हुए सकारात्मक परिर्वतन में अदभुत योगदान है। विगत कुछ वर्षों से सर्वोदय से जुड़ी महत्त्वपूर्ण संस्थाओं के प्रति शासन के एक वर्ग का रवैया उपेक्षा भाव का रहा है। इसका ताजा उदाहरण सर्व सेवा संघ वाराणसी परिसर पर रेलवे और स्थानीय प्रशासन द्वारा की जा रही तोड़ फोड़ की अप्रत्याशित कार्यवाही के रूप में सामने आया है।
सर्व सेवा संघ का दावा है कि इस परिसर की भूमि रेलवे विभाग से १९६० - ६१ और १९७० में खरीदी गई थी। सर्व सेवा संघ की स्थापना में लाल बहादुर शास्त्री, विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण की विशिष्ट भूमिका रही है। पिछ्ले साठ साल से यहां गांधी और सर्वोदय विचार से जुडे विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे हैं लेकिन विगत कुछ दिनों से अचानक रेलवे विभाग और स्थानीय प्रशासन ने इस परिसर के एक भाग को तोडऩे की त्वरित कार्रवाई का नोटिस दिया है। केंद्र सरकार के रेलवे विभाग और उत्तर प्रदेश प्रशासन की इस कार्यवाही के खिलाफ देश भर के गांधी और सर्वोदय विचारक आक्रोशित हैं।
जहां तक वर्तमान केन्द्र सरकार का प्रश्न है उसकी दृष्टि इस सर्वोदय त्रयी की तीनों विभूतियों के प्रति अलग अलग दिखाई देती है। गांधी को लेकर सत्ता प्रतिष्ठान सबसे ज्यादा पशोपेश में है। भारतीय जनता पार्टी, आर एस एस और इनसे जुड़े कुछ अन्य हिंदू संगठनों के कट्टरपंथी तत्व गांधी के बारे में तरह तरह की अफवाहें फैलाकर उनका चरित्र हनन कर गोडसे को देशभक्त बनाने का प्रयास करते रहते हैं। इन संगठनों के उदारवादी तत्व गांधी के बारे में अक्सर मौन रहते हैं लेकिन प्रधानमंत्री और कुछ मंत्री मौके की नजाकत के अनुसार गांधी के नाम पर साफ सफाई अभियान आदि की शुरुआत भी करते हैं और विदेश में गांधी का गुणगान भी करते हैं। कुछ साल पहले गांधी १५० एक ऐसा अवसर था जिसका उपयोग सरकार न केवल अपने देश में सांप्रदायिक सद्भाव और शांति के लिए कर सकती थी अपितु जिस तरह से योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई है वैसे ही गांधी के शांति और अहिंसा के विचारों को विश्व में प्रचारित प्रसारित कर वाहवाही बटोर सकती थी लेकिन वह अवसर गवां दिया।
विनोबा भावे के प्रति सरकार का उदासीनता का भाव रहता है। जयप्रकाश नारायण के प्रति आपात काल के विरोध के कारण सरकार का रुख कुछ नरम दिखता है जो हाथी दांत की तरह बाहरी दिखावा अधिक लगता है। यदि सरकार जयप्रकाश नारायण और सर्वोदय के प्रति संवेदनशील होती तब रेलवे विभाग और उत्तर प्रदेश सरकार जयप्रकाश नारायण द्वारा पोषित सर्व सेवा संघ के प्रति ऐसा व्यवहार नहीं कर सकते थे। यदि रेलवे विभाग और उत्तर प्रदेश सरकार के सामने दीन दयाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, वीर सावरकर या किसी अन्य दक्षिण पंथी विभूति की विरासत होती तो उस पर बुलडोजर चलाने की कोशिश असंभव थी। ऐसी परिस्थिति में डबल इंजन सरकार के प्रशासन इस तरह का व्यवहार नहीं कर सकते थे।
अब सर्व सेवा संघ का मामला सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश के सामने आ गया है। उन्होंने इस मामले में सर्व सेवा संघ को प्रारंभिक राहत देते हुए मामले को तुरंत सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि केंद्र और प्रदेश सरकार भी इस मामले के शांतिपूर्ण समाधान के लिए हर संभव प्रयास करेंगी। गांधी और सर्वोदय से जुड़े संस्थान हमारे देश की अनमोल विरासत हैं। हिंसा और अशांति के वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में पूरे विश्व में गांधी और उनके विचार की प्रासंगिकता बढ़ रही है।
ऐसे में अपने देश में उनके विचारों के प्रचार प्रसार में जुटे शीर्ष संस्थानों के साथ प्रशासन का संवेदनहीन व्यवहार सर्वथा अनुचित है। गांधी संस्थानों के पदाधिकारियों को भी इस मामले को राजनीतिक रंग देने से बचना चाहिए और सत्याग्रह के बल पर केंद्र और राज्य सरकारों को सही निर्णय के लिए बाध्य करना चाहिए।