विचार / लेख
डॉ. आर.के. पालीवाल
केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच बहुत लंबा विवाद रहा है जिसके कारण दिल्ली में एक के बाद एक पदस्थापित किए गए केंद्रीय प्रतिनिधि लेफ्टिनेंट गवर्नर के कार्यालय और दिल्ली सरकार के बीच छत्तीस का आंकड़ा लगातार बढ़ते बढते बार बार सर्वोच्च न्यायालय की देहरी पर पहुंच रहा है।दिल्ली में एक के बाद एक लेफ्टिनेंट गवर्नर तो बदलते रहे हैं लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री पिछ्ले लगभग एक दशक से अरविंद केजरीवाल ही हैं, और यही बात केंद्र सरकार को रास नहीं आ रही कि उसकी नाक के नीचे दो बार आप सरकार बहुत भारी बहुमत से बनती रही है। तमाम कोशिश के बाद भी दिल्ली में केंद्र की डबल इंजन सरकार नहीं बन पाई। यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट फैसले के बावजूद केंद्र सरकार दिल्ली सरकार को अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग के अधिकार देने में अड़ंगा लगा रही है।
दिल्ली में दो सरकारों के बीच यह रिकॉर्ड नौ साल से चल रहे लंबे टेस्ट मैच की तरह है, जिसमें केंद्र सरकार के फास्ट, मीडियम पेसर और गुगली फेंकने वाले कई स्पिनर्स लगे हैं लेकिन केजरीवाल सरकार आउट नहीं हो रही। पांच साल बाद नए चुनाव के रुप में नई बाल भी आई थी लेकिन अरविंद केजरीवाल राहुल द्रविड की तरह वाल बनकर डटे रहे। उनके डेप्युटी और साथी जेल की पवेलियन पहुंच गए लेकिन दिल्ली की टीम अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में अंगद के पैर की तरह जस की तस जमी है।
भारतीय जनता पार्टी और विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की जोड़ी के लिए यह बहुत बडी चुनौती रही है कि उनकी ऐन नाक के नीचे देश की राजधानी दिल्ली में उनकी तमाम चाणक्य नीति, हिंदुत्व से लेकर बूथ मैनेजमेंट की रणनीति बार बार ध्वस्त होती गई हैं। जिन मोदी जी के लिए सब मुमकिन है कहा जाता है उनका विजयरथ दिल्ली में दो कदम आगे बढऩे की बजाय पीछे हटता जा रहा है।
केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के शीत युद्ध में सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय ने युद्ध विराम की आदर्श स्थिति पैदा करने की कोशिश की थी। साथ ही इस निर्णय में हमारे संविधान में केंद्र और राज्य सरकारों के लिए सह अस्तित्व की भावना को स्पष्ट किया गया था। विशेष रूप से केंद्र सरकार के लिए यह एक सबक था कि संविधान हमारे देश में संघीय ढांचे और लोकतंत्र को अहमियत देता है। भले ही देश की राजधानी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं है जिसकी वजह से केंद्र दिल्ली सरकार को अहमियत नहीं देता था, फिर भी दिल्ली के मतदाताओं द्वारा चुनी हुई आम आदमी पार्टी की सरकार को सर्वोच्च न्यायालय ने काफ़ी अहमियत दी है। इस दृष्टि से देखा जाए तो यह केंद्र सरकार को अन्य राज्यों में भी ज्यादा दखलंदाजी करने से रोकने वाला निर्णय है।
सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ के फैसले के बाद आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार और अरविंद केजरीवाल निश्चित रूप से राहत की सांस ली थी और केंद्र और दिल्ली सरकार की लड़ाई बंद होने की उम्मीद जगी थी कि अब उनके बीच रिकॉर्ड लंबा चला टेस्ट मैच ड्रा हो जाएगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। चंद दिनों में ही यह मामला फिर से सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गया। केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को विफल कर दिया है और सर्वोच्च न्यायालय में रिव्यू पिटीशन लगाई है कि आम आदमी पार्टी की सरकार को अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए। उधर आम आदमी पार्टी ने भी याचिका दायर की है कि केंद्र सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुरूप काम नहीं कर रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय त्वरित सुनवाई सुनिश्चित कर केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के कार्यक्षेत्र के बारे में शीघ्र निर्णय करेगा।