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कला और प्रकृति इस दुनिया को रहने लायक बनाए रखती है
14-Jul-2023 7:45 PM
कला और प्रकृति इस दुनिया को  रहने लायक बनाए रखती है

-अमिता नीरव
बहुत साल पहले एक कहानी पढ़ी थी। एज यूजवल न कहानी का शीर्षक याद है और न ही कहानी का लेखक, कहानी भी तफ्सील से याद नहीं है। बस उसका मर्म ठहर गया है यादों में। वह एक भारतीय लडक़ी और अमेरिकन सोल्जर के प्रेम और फिर अलगाव की कहानी थी।

शायद वो लडक़ा अश्वेत था, इसलिए लडक़ी उसे कृष यानी कृष्ण कहा करती थी। लडक़ा बहुत लविंग और केयरिंग रहता है। दोनों में प्रेम होता है और शादी कर लेते हैं। कुछ वक्त बाद लडक़े को युद्ध लडऩे के लिए इराक भेजा जाता है। दो साल बाद वह इराक से लौटता है। दोनों बहुत खुश होते हैं।

लव मेकिंग के दौरान लडक़ा बहुत हिंसक हो जाता है। इससे दोनों ही हतप्रभ रह जाते हैं। लडक़ा गहरे अपराध बोध में रहता है और अगली सुबह ही वह अपनी पत्नी से कहता है कि उसे उससे तलाक चाहिए। कहानी ने बहुत लंबे समय तक मुझे एंगेज रखा था।
हमारी दूसरी ऊटी यात्रा में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ कॉस्मिक सेंटर के साइंटिस्ट दोस्त ने एक बहुत बारीक बात कही। उन्होंने कहा कि कॉल सेंटर में काम करने वाले लोग या डोर-टू-डोर सेल्स का काम करने वाले लोग दिन भर बहुत ह्युमिलिएट होते हैं। वो अपने परिवार के प्रति कैसे सॉफ्ट और लविंग रह सकते हैं!

कुछ साल पहले एक दोपहर कश्मीर से एक अनजान नंबर से कॉल आया। अपना परिचय देते हुए उन्होंने बताया कि वे इंडियन आर्मी में कर्नल हैं और अनंतनाग में पोस्टेड हैं। मेरा नंबर उन्हें हिंदी समय से मिला। वहीं उन्होंने मेरी कहानियाँ पढ़ी औऱ उन्हें इतनी अच्छी लगी कि वे खुद को रोक नहीं पाए और कॉल किया।

बाय करने से पहले उन्होंने कहा कि ‘आप जैसे लोगों की वजह से हम अपने इंसान होने को बचा पाते हैं।’ मैंने कहा, ‘अरे ये क्या बात हुई!’ तो उन्होंने कहा कि ‘हम जिस तरह की परिस्थितियों में रहते हैं, उसमें हमारे इंसान बने रहने की गुंजाइश बहुत कम होती है। इस रिमोट एरिया में कला और साहित्य ही हमें खत्म होने से बचाता है।’

उस वक्त मैंने इस बात को अपने लिखे की तारीफ की तरह ही लिया। फिर धीरे-धीरे आसपास नजर दौड़ाना शुरू किया। पाया कि हर इंसान प्रोफेशनल फ्रंट पर कई तरह की तल्खियाँ, बेरूखी, राजनीति, प्रतिस्पर्धा, कड़वाहट, निराशा और हताशा सहता है।

फिर विचार आया कि जिस तरह से हम अपनी व्यावसायिक जिंदगी में अपने व्यक्तित्व से बदलाव लाते हैं तो क्या ऐसा नहीं होता होगा कि हमारी व्यावसायिक जिम्मेदारियाँ भी हमें बदल देती हो! हो सकता है इस सिलसिले में शोध हुए और होते रहें हों कि हमारे प्रोफेशन हमें बदलते हैं या नहीं या बदलते हैं तो कैसे बदलते हैं!

हर दिन उदास, निराश, बीमार और हारे हुए लोगों के चेहरों से घिरा डॉक्टर अपनी स्वाभाविक प्रसन्नता को बरकरार रख पाता होगा, इस बात पर मुझे संदेह है। इसी तरह पुलिस में काम करते लोग अपने इर्दगिर्द अपराध, हिंसा, क्रूरता और चालाकी के बीच अपनी नर्मी बचाए रख पाते होंगे?

इसी तरह हर दिन तरह-तरह का हुमिलिएशन बर्दाश्त करते लोग क्या अपने परिवार और करीबियों के साथ प्यार और नर्मी का बर्ताव कर पाते होंगे? मनोविज्ञान तो इससे इत्तेफाक नहीं रखता है। 

अपवादों को छोड़ दिया जाए तो ऐसा होना संभव नहीं लगता है कि हमें जो मिलता है हम उससे उलट व्यवहार कर पाते हैं।

एक साथी है, जो लगातार प्रतिकूल परिस्थितियों में काम करते हुए भी हमेशा कूल बना रहता है। जब इस सिलसिले में उससे बात हुई तो वो बताने लगा कि प्रतिकूलताओं के बीच संगीत ने मुझे संतुलित बनाए रखा है। मैं खुद को संगीत और साहित्य के माध्यम से संतुलन में रखने की कोशिश करती हूँ।

धीरे-धीरे महसूस हुआ कि गलाकाट प्रतिस्पर्धा और तमाम गणित, खींचतान और अस्तित्व के प्रश्नों से दो-चार करती व्यावसायिक जिंदगी हमें हमारी भौतिक जरूरत को पूरा करने में मदद तो करती है, लेकिन वह लगातार हमसे हमारा स्वाभाविक व्यक्तित्व छीन रही है।

कलाएँ हमारी भावनात्मक जरूरतों को, हमारे भावपक्ष को संभाले रखती हैं। वह हमारी स्वाभाविकता को बनाए रखने में मदद करती हैं। कलाओं को मैं सभ्यताओं का सेफ्टी वॉल्व समझती हूँ, लेकिन इसी तरह से कला वो टूल भी है जो आपको तल्खियों से, प्रतिकूलताओं से लडऩे और उबरने में मदद करती है।

व्यावसायिक जिंदगियाँ हमारी मजबूरी हैं और उससे हमें हर हाल में निभाना ही है, लेकिन बहुत कम लोग होंगे, जिन्हें इससे शिकायतें नहीं होंगी, कम से कम हमारे जैसे देशों में तो। मैं अपने संपर्क में आने वाले हर इंसान से कहती हूँ कि यदि खुद को बचाना है तो किसी न किसी कला से रिश्ता बनाएँ।

उसे सीखें, इसलिए नहीं कि उसमें आपको यश, प्रतिष्ठा, प्रसिद्धि या पैसा मिले, बल्कि इसलिए कि वह आपको अपनी परिस्थितियों से लडऩे में मदद करे, हमारी संवेदनाओं का विस्तार करे। हमारा मूल स्वभाव बचाने में हमारी मदद करें।

कला और प्रकृति इस दुनिया को रहने लायक बनाए रखती है।

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