विचार / लेख
- सुदीप ठाकुर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले नौ सालों में इस देश को जो चीजें दी हैं, उनमें दो बातें साफ देखी जा सकती हैं। पहला, अधिकांश कार्यक्रमों और योजनाओं, चाहे वह नई हों या पुरानी, के नाम के आगे पीएम (प्रधानमंत्री) जुड़ गया है और दूसरा है, इन नामों का संक्षिप्त जिसे अंग्रेजी में Acronym कहते हैं। मसलन पीएम-किसान ( PM-Kisan) को ही देखें तो यह पीएम-किसान सम्मान निधि (PM-Kisan Samman Nidhi) को संक्षिप्त कर बनाया गया है।
लगता है, विपक्ष ने उन्हें इस खेल में उन्हीं के तरीके से चुनौती देने की कोशिश की है। बंगलुरू में हुई विपक्षी दलों की बहुचर्चित बैठक में विपक्षी गठबंधन ने अंततः अपने लिए एक नाम तलाश लिया है और यह है बड़ा दिलचस्प है। विपक्षी गठबंधन के पूरे नाम का अंग्रेजी में संक्षिप्त है... India यानी इंडिया! वैसे पूरा नाम है, Indian National Development Inclusive Alliance. इसका हिंदी में तर्जुमा कुछ इस तरह का होगा, भारतीय राष्ट्रीय विकासोन्मुखी समावेशी गठबंधन। और इसका संक्षिप्त होगा, भाराविसग। जाहिर है, विपक्षी गठबंधन खुद को अंग्रेजी के संक्षिप्त नाम इंडिया से जोड़ना चाहेगा और लगता तो यही है कि इसे ही ध्यान में रखकर यह नाम गढ़ा गया है। मगर यह भाजपा और राजग को कितना रास आएगा?
क्या विपक्षी गठबंधन का नाम देश के नाम पर होने के आधार पर इसे चुनाव आयोग और अदालतों में चुनौती तो नहींं दी जाएगी? यह तो कुछ दिनों में पता चल जाएगा, लेकिन इस नाम ने 2024 के आम चुनाव से पहले सियासी टकराव को दिलचस्प मोड़ दे दिया है।
ऐसा पहली बार हो रहा है, जब किसी राजनीतिक समूह को देश के नाम से जाना जाएगा। यों भारत, इंडिया और हिंदुस्तान से जुड़ी अनेक सियासी पार्टियां बन चुकी हैं और अब भी हैं, लेकिन उनके आगे पीछे भी कुछ शब्द या भाव जुड़े रहे हैं। मसलन कांग्रेस और भाजपा को ही देखें, तो कांग्रेस का पूरा नाम, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस है। भाजपा का पूरा नाम भारतीय जनता पार्टी है।
देश की दोनों प्रमुख कम्युनिस्ट पार्टियां चुनाव आयोग में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के रूप में दर्ज हैं। इन्हें माकपा और भाकपा या सीपीएम या सीपीआई के रूप में जाना जाता है। हाल ही में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने अपनी पार्टी का नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति से बदल कर भारत राष्ट्र समिति कर दिया है।
2019 के आम चुनाव के दौरान चुनाव आयोग में पंजीबद्ध सात राष्ट्रीय पार्टियों में से पांच के नामों में इंडिया या भारत किसी न किसी रूप में आता है। इनमें आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस भी शामिल थी। इसी तरह से पंजीबद्ध 43 राज्य स्तर पर मान्यता प्राप्त दलों में से आधा दर्जन के नामों में भारत या इंडिया है। इनमें आल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम और ऑल इंडिया मजलिस-ए- इत्तेहादुल मुस्लमीन जैसी पार्टियां भी शामिल हैं।
मैं इस आलेख को राजनीतिक दलों तक ही सीमित रखना चाहता हूं। अन्यथा प्रेस या मीडिया का विश्लेषण करें तो बहुत से नाम मिल जाएंगे। दरअसल विपक्ष के नए गठबंधन को लेकर जैसा कि मैंने ऊपर लिखा है, दिलचस्पी इसलिए है, क्योंकि इसे आम बोलचाल और राजनीतिक मंचों, टीवी चैनल की चर्चाओं में इंडिया ही कहा जाने वाला है।
असल में इस विमर्श का एक अहम पहलू यह भी है कि हमारे संविधान में देश का नाम इंडिया के रूप में दर्ज है। संविधान का अनुच्छेद एक कहता हैः
"संघ का नाम और राज्यक्षेत्र- (1) भारत, अर्थात, इंडिया, राज्यों का संघ होगा।"
संभवतः इसलिए इस पर सांविधानिक बहस भी छिड़ सकती है। विपक्षी गठबंधन में पी चिदंबरम, कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे दिग्गज वकील शामिल हैं, इसलिए यह उम्मीद की जा सकती है कि उन्होंने इस नाम के सारे पहलुओं पर विचार जरूर किया होगा।
सामान्य तौर पर दो बातें साफ दिख रही हैं, एक तो यह कि विपक्षी गठबंधन हिंदी पट्टी में, जहां उसे भाजपा से सबसे बड़ी चुनौती है, कैसे अपने गठबंधन के नाम को निचले स्तर तक पहुंचाएगा। दूसरा यदि किसी तरह से यह मसला संविधान पीठ तक पहुंच गया तो क्या होगा। मगर इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि इस इंडिया ने भाजपा और एनडीए के लिए इस टीवी बहस वाले दौर में मुश्किल खड़ी कर दी है, जहां विपक्ष को वे भ्रष्टाचारी कहने से गुरेज नहीं करते। क्या वह ऐसा इंडिया नाम के साथ कह पाएंगे ?
इंडिया का जिक्र पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपनी किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया में भी किया था। इसमें नेहरू ने लिखा था, अक्सर जब मैं एक जलसे से दूसरे जलसे में जाने लगा ,तो इन जलसों में अपने श्रोताओं से अपने इस इंडिया, हिंदुस्तान और भारत के बारे में चर्चा करता, जो कि एक संस्कृत शब्द है और इस नस्ल के परंपरागत संस्थापकों के नाम से निकला है।" इसी तरह नेहरू ने इस देश की जनता को 'भारत माता' कहा था।
वैसे विपक्ष की चुनौती अपने गठबंधन का नाम जनता के बीच पहुंचाने से अधिक यह है कि वह भाजपा-एनडीए के बरक्स कोई नया नरैटिव यानी आख्यान पेश कर सके।