विचार / लेख
पेंटिंग बिमल विश्वास
-ध्रुव गुप्त
योग और अध्यात्म में रुचि रखने वाले मेरे एक फेसबुक मित्र ने कुछ दिनों पहले मेरी एक प्रेम कविता पर टिप्पणी की थी कि जीवन की इस चौथी अवस्था ने प्यार-मुहम्बत की बात मुझे शोभा नहीं देती। समय आ गया है कि अब मुझे धर्म, अध्यात्म, ध्यान और पारलौकिक चीजों के बारे में सोचना और लिखना चाहिए। मैंने तत्काल उनकी बात का जवाब नहीं दिया आज उन्हें और उनकी तरह सोचने वाले और मित्रों को भी कहना चाहता हूँ कि मेरी दृष्टि में प्रेम से बड़ा कोई धर्म या योग नहीं प्रेम ईश्वर की रचना है। धार्मिक कर्मकांड और अध्यात्म हम मनुष्यों के बनाए हुए हैं। वे उनके लिए है जिनके जीवन में प्रेम नहीं है। मुझे ईश्वर की रचना पर भरोसा है। इसीलिए मैं प्रेम ही करता हूं.. प्रेम ही सोचता हूं और प्रेम ही लिखता हूँ। आप धार्मिक और आध्यात्मिक लोग वर्षों और कभी कभी जीवन भर के पूजा-पाठ और ध्यान के बाद जो एकाग्रता हासिल नहीं कर पाते, यह एकायता प्रेम में पडऩे वाला व्यक्ति पल भर में हासिल कर लेता है। प्रेम संध्या है तो यह एक तरह की समाधि ही है। आपका धर्म और योग आत्मकल्याण के लिए है। प्रेम हम अपने आसपास की दुनिया से जोड़ता है। आप एक से प्रेम में पड़े तो आप सबके प्रेम में पड़ जाते हैं। समूची मानवता के प्रेम में जीव-जंतुओं के प्रेम में प्रकृति के प्रेम में पारलौकिक जीवन की अवधारणा बैठे-ठाले लोगों की कल्पना की उड़ान भर है वरना मरने के बाद क्या होता है यह किसी ने नहीं देखा है। और जो मर गए हैं वे तो बताने आएंगे नहीं।
मुझे तो इस जीवन को ही खूबसूरत बनाता है और मैं वही कर रहा हूँ। इसे खूबसूरत बनाने का प्रेम से बेहतर और कोई हरिया नहीं।
तो आप भी प्रेम करिए और प्रेम फैलाइए वरना यहां से खाली हाथ तो जाएंगे ही, मरने के बाद भी शायद कुछ हासिल न हो।