विचार / लेख

उत्तरकाशी टनल से निकल मज़दूरों ने बताया भीतर का माहौल, कैसे 24 घंटे में बदले हालात
29-Nov-2023 4:12 PM
उत्तरकाशी टनल से निकल मज़दूरों ने बताया भीतर का माहौल, कैसे 24 घंटे में बदले हालात

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सिलक्यारा सुरंग में फँसे 41 मज़दूरों के सुरक्षित बाहर आने के बाद उनके परिवारों ने राहत की सांस ली है।

ये मज़दूर दिवाली के दिन हुए हादसे के बाद से फँसे हुए थे। अब, जबकि ये 17 दिनों के बाद बाहर आए हैं, इनमें से कइयों के घर पर दिवाली जैसा माहौल है।

अंदर फँसे 41 मज़दूरों में 15 झारखंड, आठ उत्तर प्रदेश, पांच-पांच बिहार और ओडिशा से, तीन पश्चिम बंगाल से, दो-दो असम और उत्तराखंड से थे और एक श्रमिक हिमाचल प्रदेश से था।

सुरंग से निकाले जाने के बाद इन्हें अस्पताल ले जाया गया है और वहाँ से उन्हें ज़रूरी स्वास्थ्य जांच के बाद घर भेजा जा सकता है।

बाहर आए मज़दूर बता रहे हैं कि अंदर किस तरह के हालात थे, वे कैसा महसूस कर रहे थे और उन्हें क्या कठिनाइयां आईं।

झारखंड के सुबोध कुमार वर्मा ने बताया कि सुरंग का हिस्सा धंसने के बाद शुरुआत के 24 घंटे काफ़ी मुश्किल थे।

समाचार एजेंसी एएनआई के वीडियो में उन्होंने कहा, ‘हमें सिर्फ 24 घंटे दिक्क़त हुई। खाने और हवा (सांस लेने) को लेकर। फिर कंपनी ने खाने को लेकर काजू-किशमिश वगैरह भेजे और दस दिन के बाद हमेें दाल-रोटी और चावल खाने को मिला।’

उन्होंने कहा, ‘अब मैं स्वस्थ हूं, किसी तरह की कोई दिक्क़त नहीं है। मैं बिल्कुल सही हूँ। सब आप लोगों की दुआ और मेहनत है। केंद्र और राज्य सरकार की मेहनत से निकल आया हूँ, वरना अंदर क्या होता, मैं ही जानता हूँ।’

सुरक्षित निकले लोगों में झारखंड के विश्वजीत कुमार भी हैं। वह कंप्रेशर मशीन चलाते हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें पूरा यक़ीन था कि उन्हें बचा लिया जाएगा और वह बाहर की दुनिया एक बार फिर देख सकेंगे।

उन्होंने एएनआई को बताया, ‘मैं बहुत ख़ुश और सुरक्षित हूँ। सभी श्रमिक ख़ुश हैं। अभी हम अस्पताल में हैं। मलबा सुरंग के मुहाने के पास गिरा। मैं उसके दूसरी ओर था। अंदर कऱीब ढाई किलोमीटर का हिस्सा ख़ाली था। हम वक़्त बिताने के लिए अंदर घूमा करते थे।’

थोड़ा डर भी था शुरू में, लेकिन फिर जब खाना और पानी आया, उसके बाद परिजनों से बात हुई तो हमारा मनोबल लगातार बढ़ता गया। हमें जल्द ही यक़ीन हो गया कि हम बाहर की दुनिया देख पाएंगे।

विश्वजीत का भी यही कहना है कि फँसने के बाद के शुरुआती घंटे काफ़ी परेशानी हुई। उन्होंने बताया, ‘थोड़ा डर भी था शुरू में, लेकिन फिर जब खाना और पानी आया, उसके बाद परिजनों से बात हुई तो हमारा मनोबल लगातार बढ़ता गया। हमें जल्द ही यक़ीन हो गया कि हम बाहर की दुनिया देख पाएंगे।’

विश्वजीत कुमार वर्मा ने कहा, ‘जैसे ही ऊपर से मलबा गिरा, तब हमें लगा कि निकलने का रास्ता बंद हो गया। लेकिन सब लोग हमें निकालने के प्रयास में लगे रहे। फिर ऑक्सीजन और पानी के पाइप से खाने-पीने की व्यवस्था की गई। बाहर से मशीनें मंगाई गईं।’

उन्होंने बताया कि परिवार से बात होने से भी बड़ा सहारा मिला। उन्होंने कहा, ‘परिवार से बात हो रही थी। इसके लिए माइक लगाया गया था। उससे हम बात करते रहते।’

इस पूरे मामले में अब जो एक नाम चर्चा में आ रहा है, वह है गब्बर सिंह नेगी। वह इस प्रॉजेक्ट में टनल फ़ॉरमैन के तौर पर काम कर रहे थे।

जिस समय सुरंग का हिस्सा धंसा, उस समय वह भी 40 श्रमिकों के साथ अंदर फंस गए थे। बाहर निकले मज़दूरों ने बताया कि गब्बर सिंह नेगी लगातार उनका मनोबल बढ़ा रहे थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रेस्क्यू किए गए श्रमिकों से बात करते समय जब गब्बर सिंह नेगी से मुख़ातिब हुए, तो उन्होंने उनकी जमकर तारीफ़ की।

पीएम ने कहा, ‘आपको विशेष रूप से बधाई, आपने जिस तरह से लीडरशिप दिखाई है, उस पर आने वाले समय में किसी विश्वविद्यालय को शोध करना चाहिए कि कैसे गाँव के व्यक्ति ने मुश्किल हालात में नेतृत्व दिखाया और संकट के समय अपनी पूरी टीम को संभाला।’

वहीं गब्बर सिंह नेगी ने पीएम का शुक्रिया अदा किया और कहा कि उन्हें ख़ुशी है कि सबने उनका साथ दिया। नेगी ने कहा, केंद्र सरकार, राज्य सरकार, एनडीआरएफ़, एसडीआरएफ़ और हमारी कंपनी ने हमारा हौसला बनाया, हमारा हालचाल लेते रहे। हम सब एक परिवार की तरह रहे। दोस्तों (अंदर फंसे) का भी शुक्रिया, जो मुश्किल घड़ी में शांत बने रहे, हमारी बात सुनी और हौसला नहीं छोड़ा।’

गांवों में जश्न, छोटे गए पटाखे

इस रेस्क्यू ऑपरेशन के सफल होने के बाद देश के कई हिस्सों से आम लोगों द्वारा ख़ुशी मनाने की तस्वीरें और वीडियो सामने आए।

प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों से संबंध रखने वाले मज़दूरों के परिजनों की भी राहत और ख़ुशी भरी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।

41 में से सबसे ज़्यादा 15 मज़दूर झारखंड से थे। रांची के ओरामांझी के खीराबेड़ा गांव में 17 दिनों बाद ख़ुशियां लौटी हैं।

इस गांव के तीन लडक़ों- राजेन्द्र बेदिया, अनिल बेदिया और सुखराम बेदिया के उत्तरकाशी टनल से सुरक्षित निकलने की ख़बर से गांव वालों ने राहत की सांस ली है। अब लोगों को उनके गांव लौटने का इंतज़ार है।

बीबीसी सहयोगी रवि प्रकाश ने बताया कि गांववालों को मंगलवार रात आठ बजे मज़दूरों के सुरंग से सुरक्षित निकलने की ख़बर मिली। इसके बाद गांववालों ने पटाखे छोड़े। सुबह भी पटाखे छोड़े गए और एक-दूसरे का मुंह मीठा करवाकर ख़ुशियां मनाई गईं।

तीनों लडक़ों के परिजनों ने उनके सुरक्षित घर वापसी के लिए मन्नतें मांगी हुई थीं। अनिल बेदिया की मौसी घटना के बाद से ही उनके घर पर आई हुई हैं। ख़ुशख़बरी मिलते ही उन्होंने घर के बाहर पूरे द्वार की लीपाई की। घर में पूजा-पाठ की भी तैयारी चल रही है।

इन तीनों ने जिस स्कूल में पढक़र मैट्रिक पास की है, वहां भी जश्न का माहौल है। स्कूल में पढऩे वाले बच्चों और शिक्षकों ने ढोल मांदर की थाप पर नाचकर जश्न मनाया।

‘ख़ुशी बयां नहीं कर सकते’

श्रावस्ती के राम मिलन भी सुरंग में फंसे हुए थे। उनके बेटे संदीप कुमार ने एएनआई से कहा, ‘हम बहुत ख़ुश हैं। मेरे रिश्तेदार पापा को लाने उत्तराखंड गए हैं। मैं रेस्क्यू ऑपरेशन से जुड़े सभी लोगों को शुक्रिया कहना चाहता हूं।’

एक अन्य श्रमिक संतोष कुमार भी श्रावस्ती से हैं। उनकी ताई शमिता देवी ने बताया कि श्रावस्ती के आठ लोग सुरंग के अंदर फंसे हुए थे। संतोष की मां ने कहा कि बेटे से बात हुई है और वह जल्दी घर आ रहा है।

उन्होंने कहा, ‘हम बहुत ख़ुश हैं। हम भी दिवाली मना रहे हैं और हमारे साथ पूरा गांव दिवाली मना रहा है।’

ओडिशा के मयूरभंज के रहने वाले श्रमिक धीरेन नायक की मां ने बचावकर्मियों को शुक्रिया कहा है। इशी तरह, सुरंग से बचाए गए असम के रहने वाले राम प्रसाद नरजरी के परिजनों ने भी ख़ुशी जताई है।

उनके बुज़ुर्ग पिता ने कहा, ‘बेटे से बात करके इतनी ख़ुशी मिली, जिसे मैं बयां नहीं कर सकता। मैं सभी सरकारों और बचाव अभियान में जुटे लोगों का शुक्रिया अदा करता हूं।’

ये एक चमत्कार है-डिक्स

जैसे ही मलबे से होते हुए बचाव का रास्ता निकाला गया, सुरंग के अंदर फंसे मज़दूरों तक पहुंचने वाले शुरुआती लोगों में एनडीआरएफ़ कर्मी मनमोहन सिंह रावत भी शामिल थे।

उन्होंने कहा, ‘जैसे ही मैं अंदर पहुंचा, मज़दूरों के चेहरे पर बहुत ख़ुशी नजऱ आ रही थी। हम पहले से ही उन्हें भरोसा दिलाते आ रहे ते कि जल्द ही उन्हें बचा लिया जाएगा। इससे उनकी मानसिक स्थिति को स्थिर रखने में मदद मिली।’

इस रेस्क्यू ऑपरेशन में मदद के लिए बतौर कंल्टेंट तैनात रहे अंतरराष्ट्रीय टनलिंग एक्सपर्ट आरनल्ड डिक्स ने कहा, इस अभियान में मदद कर पाना उनके लिए सम्मान का विषय है।

उन्होंने कहा, ‘मैं ख़ुद भी एक पिता हूं। ऐसे में माता-पिता के बच्चों (जो सुरंग में फंसे हुए थे) को घर भेज पाया, यह मेरे लिए सम्मान की बात है। आपको याद होगा कि शुरू में मैंने कहा था कि क्रिसमस से पहले 41 लोग अपने घरों में होंगे। इस बार क्रिसमस जल्दी आ गया है।’

जिस समय रेस्क्यू ऑपरेश चल रहा था, उस दौरान आरनल्ड डिक्स हर रोज़ सुरंग के बाहर बने मंदिर में पूजा करते नजऱ आते थे।

इसे लेकर समाचार एजेंसी एनएनआई से उन्होंने कहा, ‘मैंने अपने लिए कुछ नहीं मांगा, मैंने सिफऱ् अंदर फंसे 41 लोगों और उनकी मदद कर रहे लोगों के लिए प्रार्थना की। हम नहीं चाहते थे कि किसी को कोई नुक़सान हो।’

उन्होंने कहा, ’हम शांत थे और जानते थे कि हमें क्या करना है। हमने कमाल की टीम के तौर पर काम किया। भारत में बेहतरीन इंजीनियर हैं और इस सफल अभियान का हिस्सा बनना ख़ुशी देने वाला है।’

‘अब मुझे मंदिर जाना है, क्योंकि मैंने वादा किया था कि मैं शुक्रिया अदा करूंगा। पता नहीं आपने देखा या नहीं, लेकिन हमने एक चमत्कार देखा है।’ (bbc.com/hind)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news