विचार / लेख

ध्रुव गुप्त का व्यंग्य : मुझे नरक चाहिए !
16-Jul-2020 11:42 AM
ध्रुव गुप्त का व्यंग्य :  मुझे नरक चाहिए !

एक पंडित जी और एक मौलवी साहब दोस्त थे। दोनों अपने मजहब को लेकर बेहद कट्टर। जि़ंदगी भर पंडित ने धर्मयुद्ध की और मौलाना ने जिहाद की प्रतीक्षा की ताकि वे अपने धर्म के लिए लड़-मर कर स्वर्ग या जन्नत में प्रवेश पा सकें। दोनों धर्मों के जाहिलों के मुक़ाबले उन्हें यह मौक़ा नहीं मिला तो उन्होंने तय किया कि वे आपस में ही लड़ मरें और स्वर्ग की अप्सराओं, जन्नत की हूरों का सुख भोगें। एक दिन दोनों लड़ कर मरे और अपने-अपने गंतव्य पर पहुंच गए।

महीनों बाद स्वर्ग और जन्नत के बीच की एक खाली जगह पर दोनों की मुलाकात हुई। दोनों उदास थे। पंडित ने बताया कि स्वर्ग जटाधारी ऋषि-मुनियों, साधु-साध्वियों और खूसट ब्रह्मचारियों से भरा पड़ा है। च्पवित्रज् लोगों की इस उबाऊ भीड़ में दिल बहलाने का कोई साधन नहीं। गायन के नाम पर ध्रुपद-धमार और वादन के नाम पर मृदंग और वीणा। नृत्य की महफि़ल सजाने वाली इन्द्र की अप्सराएं लाखों साल की बूढ़ी हो चुकी हैं। भोजन में छप्पन भोग की एकरसता से बोरियत होने लगी है। इंद्र महाराज की स्तुति गाकर कभी-कभी थोड़ा सोमरस मिल भी जाय तो बिना चखने के नशा नहीं चढ़ता।

मौलवी का दुख भी कुछ अलग नहीं था। मनहूस धर्मगुरुओं की भीड़ में उनका भी दम घुटने लगा था। सबके अलग फिरके, अलग फ़तवे। जन्नत में जिन बहत्तर हूरों की लालच में पहुंचे थे, उन सभी ने बुढ़ापे मे बिस्तर पकड़ लिया है। रात-रात भर उनके खांसने-थूकने की आवाज़ें गूंजती हैं। खजूर के पेड़, नहरों का ठंढा पानी और सहरा के दिलकश नज़ारें किसी का कितना दिल बहलायेंगे ? खाने के लिए मीठे खजूर तो हैं, लेकिन कबाब और बिरयानी के दीदार मुश्किल। एक-दो बार वे बगल के ईसाईयों के हेवन में भी झांककर आए, लेकिन वहां भी सफेद लबादों में प्रार्थनाएं करते प्रेतनुमा पादरियों और ननों के सिवा कुछ नहीं नजर आया।

थोड़ी ही देर में नरक से टहलता हुआ पुलिस का एक अफसर उधर से गुजऱा। पंडित और मौलाना ने उसपर तरस खाते हुए पूछा कि आपको तो रोज यमराज के दूत आग में भून कर और गर्म तेल के कड़ाहों में तल कर खाते होंगे ? पुलिसवाला हंसा- अरे मोली साहब और पंडीजी, ये सारी कही-सुनी बाते हैं। मरने के बाद जब देह ही नहीं होती तो वे ससुरे भूनेंगे-तलेंगे क्या और खाएंगे किसको ? मरने के पहले मुझे भी क्या पता था कि दुनिया की सारी रंगीनियां नरक में ही मौज़ूद हैं। पृथ्वी लोक के सारे रोमांटिक स्त्री-पुरूष, बिना ब्याह चोंच लड़ाने वाले प्रेमी-प्रेमिकाएं, अफेयरबाज अभिनेता-अभिनेत्रियां - सब वही हैं। स्त्रियों के नंगे चित्र बनाने वाले चित्रकार भी हैं, ग़ैर औरतों का तसव्वुर करने वाले कवि-शायर-गवैये भी और देर रात पराई औरतों के इनबॉक्स में जाकर प्रेम निवेदन करने वाले तमाम फेसबुकिये भी। राजनेता भी और मीडिया वाले भी। बगल वाले जहन्नुम में भी कमोबेश ऐसे ही खूबसूरत नजारे हैं। मेरे तमाम सहकर्मी भी नरक में ही हैं जो वहां के स्टाफ को पटाकर मेरे लिए चिकन-मटन और दारू का इंतज़ाम कर देते हैं। उनके सुबह-शाम के सैलूट से नर्क में भी मेरा रूतबा बुलंद रहता है।

नर्कवासी पुलिसवाले की बात सुनकर पंडित जी और मौलवी साहब को स्वर्ग या जन्नत में जाने के अपने फ़ैसले पर बेहद अफसोस हुआ। नरक या जहन्नुम का तसव्वुर उन्हें इतना दिलफऱेब लगा कि उन्होंने तय किया कि अगले ही दिन वे स्वर्ग और जन्नत की असीम शांति में इतने बवाल खड़ा करेंगे कि वहां के प्रबंधकों को मज़बूरन उन्हें नरक या जहन्नुम में शिफ्ट करना पड़ जाय।
-ध्रुव गुप्त

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