विचार / लेख
गोपाल राठी
बीजू मतलब बीज द्वारा उगने वाले और कलमी मतलब कलम रोपड़ से उगने वाले। ये बहुत सिंपल परिभाषा है आरएसएस मूल से आये और गैर संघी पृष्ठभूमि से आये भाजपा नेताओं की। इस अंतर को हमें समझाया था कभी समाजवादी पृष्ठभूमि के एक भाजपाई विधायक ने। उनसे हम और हमारे दिवंगत समाजवादी साथी सुनील सौजन्य मुलाकात के लिए गए थे। तवा विस्थापितों की समस्या पर चर्चा के दौरान उन्होंने कहा हम हैं तो भाजपा के विधायक लेकिन कलमी है आप अपनी समस्या के लिए किसी बीजू विधायक से मिल लें मंत्री और मुख्यमंत्री उन्हें ज़्यादा महत्व देते है। तात्कालिक लाभहानि के चक्कर में कांग्रेस या अन्य पार्टियों के नेताओं के भाजपा में हो रहे दलबदल के बीच यह वाकया याद आ गया।
जो लोग भी अपने उज्ज्वल कैरियर के लिए भाजपा में जा रहे है उन्हें यह अच्छी तरह जान लेना चाहिए कि वहां सिर्फ संघी पृष्ठभूमि के लोगों की ही चलती है। बाकी कांग्रेस और अन्य पार्टियों के दलबदलूओं का सिर्फ इस्तेमाल होता है। आपका प्रभाव जब तक रहेगा तब तक वे आपको पर्याप्त महत्व देंगे और जब आपका उनके लिए कोई उपयोग ना हो तो वे दूध में मक्खी की तरह लात मार कर बाहर का रास्ता दिखा देंगे। यह दलबदलू कांग्रेसी कितना ही प्रयास कर लें लेकिन उन्हें भाजपा के आम कार्यकर्ता में वो सम्मान नहीं मिल सकता जो संघ से आए भाजपाई नेता को मिलता है।
मणिपुर गोवा बिहार कर्नाटक एमपी राजस्थान में दलबदल सत्ता और स्वार्थ पर आधारित है। जिसमे खरीद-फरोख्त की संभावना से कोई इंकार नहीं कर सकता। जिन राज्यों के चुनाव में जनता ने भाजपा को नकार दिया था वहां व्यापक दलबदल द्वारा जनमत का सरेआम मजाक बना दिया गया। इस तरह का सामूहिक दलबदल अनैतिक है।
दलबदल हो या धर्म परिवर्तन अगर वह स्वार्थ और लोभ पर आधारित ना होकर विचारों पर आधारित हो तो उसे गलत नहीं कहा जा सकता। दलित समुदाय में जन्मे डॉ अंबेडकर ने हिन्दू धर्म त्यागने के बहुत पहले यह घोषणा कर दी थी कि उन्होंने हिन्दू धर्म में जन्म अवश्य लिया है लेकिन इस धर्म में मरेंगे नहीं। आंबेडकर ने हिंदू धर्म छोडऩे की घोषणा 1936 में ही अपने भाषण जातिभेद का उच्छेद यानी एनिहिलेशन ऑफ कास्ट में कर दी थी लेकिन उन्होंने धर्म परिवर्तन 1956 में जाकर किया। इस बीच उन्होंने सभी धर्मों का अध्ययन किया और फिर अपने हिसाब से श्रेष्ठ धर्म का चयन किया। उन्होंने अपने लाखों अनुयायियों के साथ नागपुर में बौद्ध धम्म ग्रहण किया ।
गहन विचार-मंथन के बाद विचारों के आधार पर किये गए एक सर्वश्रेष्ठ दल बदल का उदाहरण मैंने देखा है। जीवन भर कांग्रेस के कटु आलोचक रहे प्रखर सांसद प्रकाश वीर शास्त्री ने 1977 में तब काँग्रेस का दामन थामा तो सब लोगों को आश्चर्य हुआ क्योंकि उस समय बड़े-बड़े कांग्रेसी नेता कांग्रेस छोडक़र जा रहे थे। काँग्रेस में शामिल होते ही वे पिपरिया मे मंगलवारा चौराहे पर कांग्रेस की आमसभा संबोधित करने के लिए आए थे। वे पूरी जिंदगी कांग्रेस के विरोध में बोलते और लिखते रहे लेकिन इस चुनाव में वे कांग्रेस की तरफ से प्रचार के लिए आए थे।
सटीक और तर्क के साथ प्रभावपूर्ण प्रस्तुति उनके भाषण की विशेषता थी। कांग्रेस विरोधी मानसिकता के हम जैसे बहुत से लोग उनकी भाषण शैली के कायल हुए बिना नहीं रह सके। आर्य समाज से जुड़े प्रकाशवीर शास्त्री तीन बार (दूसरी, तीसरी और चौथी) लोकसभा के स्वतंत्र सांसद रहे।
हिन्दी सेवी प्रकाशवीर शास्त्री संयुक्त राष्ट्रसंघ में हिन्दी बोलने वाले पहले भारतीय थे जबकि दूसरे अटल बिहारी वाजपेयी। प्रकाशवीर के भाषणों में तर्क बहुत शक्तिशाली होते थे। उनके विरोधी भी उनके प्रशंसक बन जाते थे। एक बार भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि प्रकाशवीर जी उनसे भी बेहतर वक्ता थे। इसी तरह मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध समाजवादी नेता यमुनाप्रसाद शास्त्री अपने जीवन के अंतिम वर्षों में माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए थे। किसी ने उनकी नीयत पर उंगली नहीं उठाई।
भाजपा की बड़ी हुई ताकत को और बढ़ाने के लिए भाजपा में शामिल होने वाले कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं को इस पार्टी में वह हैसियत और विश्वास कभी नहीं मिल सकती जो उन्होंने अपनी मूल पार्टी में रहकर अर्जित किया है। सत्ता, स्वार्थ और धन के लिए किए गए दलबदल का तात्कालिक लाभ भले ही मिल जाये लेकिन दीर्घकाल में यह एक आत्मघाती कदम ही सिद्ध होगा।
इस पार्टी से उस पार्टी में या उस पार्टी से इस पार्टी में आने वालों पर जिंदगी भर दलबदलू होने का तमगा लगा ही रहेगा। दलबदल का यह कलंक लेकर वे नई पार्टी में अपने लिए कितना स्पेस बना पाते है यह आने वाला समय बताएगा।
वैसे भाजपा में बीजू और कलमी का अंतर बना रहेगा।