विचार / लेख
प्रकाश दुबे
बात तब से शुरु की जा सकती है, जब करुणानिधि, बाला साहब ठाकरे, माधव राव सिंधिया, राजेश पायलट, एस वाय राज शेखर रेड्डी, मुफ्ती मोहम्मद सईद, अजीत जोगी जीवित थे। और भी पीछे जा सकते हैं। जब नंदमूरि तारक रामाराव, बाबू जगजीवनराम, एस आर बोम्मई, एस बंगारप्पा राजनीति में सक्रिय थे। वर्तमान हलचल के हिसाब से शुरुआत सचिन पायलट से करना ठीक है। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक रात में बुलाई गई थी। मकसद साफ था। तब तक दिल्ली के अधिकांश वरिष्ठ पत्रकार थकान उतारने चेम्सफोर्ड क्लब के सामने बने राहत शिविर पहुंच जाते हैं। अखबार तैयार करने का दायित्व संभालने वाले संपादकीय सहयोगी संवाद एजेंसी पर आँख गड़ाये रहते हैं। 24, अकबर रोड पर कांग्रेस कार्यालय में मौजूद इक्का--दुक्का पत्रकार चल दिए थे। मैं अंधेरे की आड़ में जिस व्यक्ति की प्रतीक्षा कर रहा था-वे मुख्यालय से बाहर निकले। सफेद कपड़े पहने आर के धवन। देखकर चौंके- दुबेजी ? जी। सच बताइए। आपकी किस बात पर झड़प हुई? धवन का प्रतिप्रश्न था-किसने बताया? आप मुंह पर सच बोलने से नहीं हिचकते। बैठक में किससे झड़प हुई?
धवन के मन में जमा रोष फट पड़ा-इंदिराजी का बाबू होने का मुझे गर्व है। इस बाबू के घर सबेरे सबेरे आप दूध देने आप कई बार सपत्नीक आये। राजेश पायलट महत्वाकांक्षी नेता थे। बारीक दांव चलते थे। नारायण दत्त तिवारी गुम हुए तब वे आंतरिक सुरक्षा राज्यमंत्री थे। पायलट ने कहा-तिवारीजी को ढूंढ निकालेंगे। उनकी सुरक्षा के लिए एक (इंस्पेक्टर) चार (हवलदार) की स्थाई तैनाती करेंगे। गु़लाम नबी आज़ाद ने कहा-ये पायलट पंडत को मरवाएगा। पायलट कई बार प्रधानमंत्री नरसिंह राव से शिकायत कर चुके थे कि गृह मंत्री शंकर राव चव्हाण विश्वास में नहीं लेते।
चव्हाण अलग मिट्टी के बने थे। राजनीतिक-अपराधी गंठजोड़ पर वोहरा समिति की रपट संसद में पेश हुई। प्रधानमंत्री को छोडक़र चव्हाण ने किसी अन्य को हवा नहीं लगने दी। ज़मीनी संपर्क में प्रवीण राजेश पायलट की सडक़ दुर्घटना में मृत्यु हुई। उन्हें भावी प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल किया जाता था। दुर्घटना को लेकर संदेह जताया गया। पत्नी रमा पायलट को कांग्रेस ने लोकसभा उम्मीदवार बनाया। उसके बाद सचिन सक्रिय हुए। राहुल गांधी की युवा मंडली में उन्हें महत्व मिला। कम आयु में संसद और सरकार में शामिल होने का अवसर मिला। दूसरा चेहरा ज्योतिरादित्य का। सफदरजंग इलाके की विशाल कोठी में किसी शाम माधवराव से गपशप होती। ज्योतिरादित्य कारोबार संभालते थे। राजनीतिक चर्चा में ज्योतिरादित्य कभी माधवराव के जीते जी सहभागी नहीं हुए।
माधव राव का जीवन राजकुमार होने के बाद भारी उतार-चढ़ाव से गुजरा था। मां की राजनीतिक वैचारिकता तथा उनके निकटतम विश्वासपात्रों जैसे मसलों पर असहमति थी। प्रकाश चंद्र सेठी अड़े लेकिन कांग्रेस में शामिल किये गये। प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में माधवराव का नाम था। नरसिंह राव का नाम तय होने से पहले कमलनाथ ने चुटकी ली-एक सांसद के दम पर प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल होने वाले भी हैं। एक सांसद मतलब बस्तर से जीतकर आए-महेन्द्र कर्मा जिनका नक्सली हमले में निधन हुआ। इस हमले में छत्तीसगढ़ के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों अजीत जोगी और डॉ. रमन सिंह की मिलीभगत के कई किस्से आज भी हवा में तैरते हैं।
सचिन और ज्योतिरादित्य सहित जिन राजदुलारों को चांदी की चम्मच में पद मिले, उनकी महत्वाकांक्षा उसी अनुपात में आकाश निहारने लगी। सितारे छूने वाली सीढ़ी राजनीति में हमेशा उपलब्ध नहीं होती। कांग्रेस में आरम्भ से दो धाराएं रही हैं। एक संपन्नता के बावजूद सक्रिय राजनीति में अपने को झोंकने की। इसका फल पीढ़ी दर पीढ़ी चखा। वंश बेल से सत्ता का स्वाद चखने मिला। इसके बावजृद श्रम और समर्पण की अनदेखी नहीं की जा सकती। दूसरा प्रवाह मोहन दास गांधी का था। जीते जी उनके किसी परिवार जन को सत्ता में सहभागिता नहीं मिली। गौर करने वाली बात यह है कि गांधी ने किसी न किसी प्रयोग में किसी अपने को झोंक दिया। कुर्बान किया।
इस बात का ध्यान उन लोगों ने भी नहीं रखा जिन्हें गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय संगठन विसर्जित करने की सलाह दी थी ताकि सत्ता की दौड़ में समान अवसर मिले। बसंत राव नाईक, देवराज अरसु, वसंत दादा पाटील, माधव सिंह सोलंकी, करुणाकरण, तरुण गोगोई, कमल नाथ आदि ने परिवार के उद्धार को महत्व दिया। पार्टी ने पूरा सहयोग किया। शरद पवार ने परिवार की तीसरी पीढ़ी को तुरंत लोकसभा की उम्मीदवारी देने पर ऐतराज किया। घर में कलह छिड़ी। इस देश की खूबी है राजनीति, खेल, कारोबार हर क्षेत्र में वारिस की ताजपोशी की लंबी सूची है। प्रो प्रेम कुमार धूमल, वसुंधरा राजे, अमित शाह, राजनाथ सिंह, येदियुरप्पा नाम घोखते हुए थक जाएंगे। एक और धारा थी। परिवारवाद एवं व्यक्तिवाद के विरुद्ध जन्मी इस विचारधारा के बीजू पटनायक, मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद, राम विलास पासवान आदि आदि। इनमें ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक को याद करें।
राजनीति में सक्रिय वर्ग के पास एक ज़ोरदार तर्क है। डॉक्टर, वकील, स भी तो यही करते हैं। कारोबार में तो यह आम है। वे सही कहते हैं। राजनीति को कारेाबार के नजरिए से तौलकर अंबानी सफलता के शिखर पर हैं।राजनीति के बारे में अब भी धारणा यही है कि यह समाज सेवा है। इस धारणा का अंत किए बगैर इस तरह के सवाल पूछे जाते रहेंगे। महाराष्ट्र में क्षेत्रीय पार्टी शेतकरी-किसान कामगार पक्ष के नेता नारायण ज्ञान देव पाटिल से किसी ने पूछा-आपने बेटे या किसी को राजनीति में नहीं उतारा। संघर्ष को जीवन समर्पित करने वाले पाटिल ने उत्तर दिया- जिनके लिए राजनीति संपत्ति है या कमाई का जरिया है, वे विरासत सौंपते हैं। मैं तो विचार का कार्यकर्ता हूं।
(लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)