विचार / लेख

कस्तूर, तुम अब मेरी ब्याहता नहीं, रखैल हो!
21-Jul-2020 6:40 PM
 कस्तूर, तुम अब मेरी ब्याहता नहीं, रखैल हो!

मनीष सिंह

मोहनदास के शब्द सुनकर कस्तूर को झटका लगा। पलटकर चिल्लाई-आप कैसी बात करते हैं? कुछ भी कहते है? बच्चो के सामने ? दिमाग खराब हो गया है आपका?गांधी अखबार टेबल पर फेंकते हुए हॅंसे। ‘अरे, यह मैं नहीं, जनरल स्मट्स का नया कानून कह रहा है। उसने क्रिश्चियन तरीके से हुई मैरिज को छोडक़र बाकी सभी प्रकार की शादियां अवैध करार दे दी हैं।’

कस्तूर को बात समझ आयी। पूछा - ‘तो क्या हमे चर्च में जाकर फिर से शादी करनी होगी’?

‘नहीं। हम लड़ेंगे, यह कानून स्मट्स को बदलना होगा। हम अपने धार्मिक और परम्परागत रवायतों की रक्षा के लिए लड़ेंगे। हम सत्याग्रह करेंगे’ - गांधी की धीमी महीन सी आवाज कमरे की दीवारों से टकराकर गूंज रही थी। इसकी गूंज, दक्षिण अफ्रीका के शासक, जनरल स्मट्स की कुर्सी हिलाने वाली थी।

आप ब्याह कैसे करना चाहेंगे? फेरे लेकर, कबूल है- कबूल है कहकर, पादरी के सामने किस करके, या मजिस्ट्रेट के सामने पेपर दस्तखत करके? आपकी पसंद चाहे जो हो, क्या सरकार को अधिकार है कि वह शादी के किसी और तरीके को वैलिड कर दे, और दीगर तरीके अवैध।

भारत का संविधान बना तो इन सवालों से संविधान सभा को सोचना था, संसद को सोचना था। तय यही हुआ कि सत्ता धार्मिक, परम्परागत तरीको में हस्तक्षेप नहीं करेगी। शादी आपने अपनी रवायत के अनुसार फेरे लेकर की, या चुम्मा लेकर .. उसे कानूनी मान्यता होगी।

यही पर्सनल लॉ है। विवाह से शुरू होता है, परिवार की परिभाषा तय करता है, उत्तराधिकार की जो रवायतें उस कौम या धर्म के अनुसार हों, उसे यथावत स्वीकार करता है, और मान्यता देता है। उंसके अनुसार टैक्स के नियम रवायतों की इज्जत करते हुए बनते है। हिन्दू अन डिवाईडेड फेमली (॥ह्वस्न) का पैन कार्ड तो सुना होगा, बनवाया भी होगा?

यूनिफार्म सिविल कोड को लेकर बहस है। अधिकांश सिर्फ शब्दों में उलझे हैं। एक देश एक संहिता- हां बे, जनरल स्मट्स के नाती। तो ब्याह, चूमकर करना सबको अनिवार्य किया जाए?? या कबूल कबूल करके??? अच्छा चलो, सबको फेरे लेना कानूनी किया जाए? कौन सा सिस्टम डालेंगे ड्राफ्ट में, बताओ ?

पर्सनल लॉ किसी का व्यक्तिगत (निजी/पर्सनल) कानून नही है। यह उक्त समाज के पर्सन्स ( पीपुल/पेर्सनल्स) के बीच सदियों से चली आ रही रवायतें है, जिसे शासन ने लीगल पर्पज के लिए वैलिड मान लिया है।

कानून रवायतों के बीच पल रही बुराइयों को अनदेखा नही कर सकता। वह सती को आपकी परम्परा नही मान सकता, वह हत्या है। वह दहेज, अस्पृश्यता के निवारण के लिए कानून बनाता है, जो हर धर्म पर लागू है। एससी-एसटी में कोई जातिगत गाली दे, तो वह मुसलमान हो या पारसी, जेल जाएगा।

तमाम कन्फ्यूजन है मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को लेकर। किसी देश की गुणवत्ता इससे नापी जाती है कि अल्पसंख्यकों की निजता की रक्षा कितनी शिद्दत से करता है। यह ला बोर्ड सरकार के पास एक विंडो है, जो उनकी निजी रवायतों की समझ बनाने के लिए सलाहकारी काम करता है।

मुसलमान कितनी शादी करते हैं, कैसे तलाक लेते है, सारी बहस बस इन दो बिंदुओं पर टिकी है। शीर्ष मूर्ख यह भी समझते है कि शायद मुसलमानों के लिए कोई अलग से द्बश्चष्/ष्ह्म्श्चष् है। अज्ञान और उकसावे में मूर्खतापूर्ण नॉन ईशूज 70 साल से देश की छाती पर मचल रहे है।

शाहबानो केस इसमे उठता है। शाहबानो समृद्ध घर की लेडी थी। उसे पैसों की जरूरत नही थी, पति को हराना था। सुप्रीम कोर्ट तक लड़ी, 200 रुपये की ऐलमोनी के लिए। कठमुल्ले कोर्ट के फैसले को अपनी रवायतों में अतिक्रमण मानकर लॉबीइंग करने लगे। राजीव ने माना कि ये लोग गड्ढे में रहना चाहते हैं, रहे।

आप भी यही मानिए। मुस्लिम महिलायें बुरके में रहे, या हिजाब में उन पर छोडिये। महिला सशक्तिकरण की ढेर चिंता है, तो पहले अपने घर मे इज्जत दीजिये, मा-बहन की गाली देना बंद कीजिए। हिन्दू या मुस्लिम या किसी भी महिला पर अत्याचार हुआ, तो डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट है। सब पर लागू है।

बहरहाल गांधी ने सत्याग्रह किया। खूब बमचक हुई। गांधी जेल गए। यह 1912-14 का दौर था। जिसके अंत मे गांधी भारत लौटे। स्मट्स ने चैन की सांस ली। जाते जाते गांधी ने अपनी चप्पलें स्मट्स को गिफ्ट भेजी, जो उन्होंने जेल में पहनी थी।

स्मट्स को अटपटा लगा होगा। तब तो नही, मगर बरसों बाद उन्होंने गांधी को लिखा

‘ÒI have worn these for many a summer, even though I may feel that I am not worthy to stand in the shoes of so great a man.Ó

आप आज, गांधी के हत्यारों के साथ मिलकर, गांधी की उन चप्पलों को तोडऩे पर आतुर है।

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