विचार / लेख
अमेरिका और चीन का संबंध दिनोंदिन बिगड़ता जा रहा है। दोनों देशों में गत कुछ महीनों से जोरदार वाकयुद्ध शुरू है और बुधवार को उसमें एक और चिंगारी पड़ गई। अमेरिका ने ह्यूस्टन स्थित चीनी दूतावास को 72 घंटे के भीतर बंद करने का आदेश दे दिया। अमेरिका और चीन के बीच अनबन पहले से ही बढ़ती जा रही थी और इस नए निणर्य के कारण दोनों देशों के बीच संघर्ष बढ़ने की संभावना दिख रही है। इस फौरी आदेश के कारण चीनी अधिकारी सकपका गए क्योंकि ह्यूस्टन स्थित दूतावास कोई साधारण पासपोर्ट मंजूरी का कार्यालय अथवा कचहरी नहीं है, बल्कि ख्याति प्राप्त महावाणिज्य दूतावास है। इसके अलावा उसकी ये भी पहचान है कि अमेरिका में चीन का ये पहला दूतावास है। लेकिन अमेरिका ने एक झटके में दूतावास पर ताला लगाने का निर्णय ले लिया। चीन और अमेरिका के बीच जो अरबों डॉलर्स का व्यापार होता है, वाणिज्य और व्यापार विषयों के दस्तावेजों को मिलाना और उसकी जांच आदि के महत्वपूर्ण निर्णय इस दूतावास में होते थे, जिसे बंद करने का निर्णय अमेरिका द्वारा लिया गया। इसलिए आश्चर्य स्वाभाविक है। हालांकि प्रे. ट्रंप की आज तक की कार्यशैली को देखते हुए इसमें आश्चर्यजनक जैसा कुछ नहीं है। ट्रंप की कार्यशैली हमेशा धक्कादायक और चकित करने वाली ही रही है। उसी के तहत अमेरिकी राष्ट्राध्यक्ष द्वारा ह्यूस्टन दूतावास को खाली करने का आदेश दिया गया है। चीन को एक वाक्य में यह सूचना दे गई, ‘अमेरिकी नागरिकों की बौद्धिक संपदा और निजी जानकारियों की सुरक्षा के लिए इस दूतावास को बंद कर दिया जाए।’ चीन की वानर हरकतों को देखते हुए इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि चीन ने जासूसी आदि संदिग्ध गतिविधियों के लिए दूतावास का प्रयोग किया ही होगा। ‘गिरे तब भी टांग ऊपर’ की तरह चीन के विदेश मंत्रालय ने भी धमकी दी है, ‘हम भी इस कार्रवाई का प्रत्युत्तर देंगे।’ चीन की इस हल्की धमकी पर अमेरिका ने कोई तवज्जो नहीं दी। उल्टे अमेरिका में चीन के अतिरिक्त दूतावास को भी बंद करने से इनकार नहीं किया जा सकता, ऐसा कहते हुए प्रेसिडेंट ट्रंप ने चीन पर दूसरा बम फेंक दिया है। चीन और अमेरिका के बीच राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर संघर्ष कोई नई बात नहीं है। हालांकि 2018 के ‘ट्रेड वॉर’ से लेकर कोरोना के ताजा संकट तक दोनों देशों में तनाव शीर्ष पर पहुंचता दिख रहा है। अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष ने घोषित तौर पर चीन पर आरोप लगाया है कि चीन ने ही कोरोना का वैश्विक संकट विश्व पर लाद दिया है और यह वायरस वुहान की प्रयोगशाला से पैâलाने का चीनी षड्यंत्र है। चीन ने इस आरोप से इनकार भले ही कर दिया हो लेकिन अमेरिका ही क्या, दुनिया का एक भी देश चीन के नेताओं पर विश्वास करने को तैयार नहीं है। साम्यवादी अर्थात ‘साम्राज्यवादविरोधी’ वाला चीन का दिखाने वाला चेहरा अलग है और असली चेहरा ‘साम्राज्यविस्तार’ वाला है। चीन की विदेश नीति यही रही है। हिंदुस्थान सहित कुल 23 देशों से चीन का सीमा विवाद चल रहा है। हम दुनिया भर में जाकर व्यापार करेंगे, विदेशी मुद्रा लाएंगे, दुनिया भर की अर्थव्यवस्था में घुसपैठ करेंगे लेकिन हमारे देश में किसी व्यापारी को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है। दुनिया चीन की इस नीति को समझ गई है। ह्यूस्टन का दूतावास बंद करके अमेरिका ने चीन को पहला झटका दिया है। इस आदेश के बाद दूतावास में कागजातों का जलना और इमारत के बाहर निकलता धुआं बहुत कुछ कह जाता है। अमेरिका का शक सही रहा होगा, उसके बिना यह आग नहीं लगी होगी। दूतावास खाली करने के लिए चीन के पास अब केवल 24 घंटे बचे हैं। उसके बाद चीन पलटवार वैâसे करता है और यह संघर्ष कहां तक पहुंचता है, इस ओर पूरी दुनिया की नजर लगी हुई है।
जुलाई 23, 2020, मुंबई