विचार / लेख
स्मिता अखिलेश
लॉक डाउन के मद्दे नजऱ चूँकि बड़ी संख्या में प्रवासी अपने गाँवों की ओर लौट गए है और बुरी तरह से प्रभावित अर्थव्यवस्था में एक आशा की किरन कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर जा टिकी है। इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने कृषि क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन करते हुए कृषि मंडियों के बाहर अपनी फसल बेचने और कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को लेकर किसानों के लिए अध्यादेश जारी किए।
अध्यादेश के मुताबिक किसानों को अपनी पसंद के बाजार में उत्पाद बेचने की छूट मिलेगी. आधिकारिक बयान के मुताबिक, ‘कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश 2020 को अधिसूचित किया गया है. इसके तहत किसान अपनी पसंद के बाजार में उपज बेच पाएंगे. सरकार को उम्मीद है कि किसानों को फसलों का बेहतर दाम मिलेगा।
चूँकि कृषि उत्पादों को सीधे व्यापारियों को बेचे जाने के कानून से मंडी बोर्ड का नियंत्रण खत्म हो जायेगा . मंडी बोर्ड को केंद्र सरकार से मिलने वाले 2 प्रतिशत का टैक्स में कटौती हो जाएगी। गौरतलब है कि इस टैक्स मद का बड़ा हिस्सा राज्य शासन को रिसर्व फण्ड और सडक़ निर्माण में दिया जाता है। जिससे राज्य शासन को आर्थिक नुकसान होना तय है।
रही बात किसानों के हित की तो छत्तीसगढ राज्य में 85 प्रतिशत किसान छोटे रकबे वाले है अमूमन यहाँ सरना धान की पैदावार अधिक होती है, जिसे राज्य शासन द्वारा अधिक दामों में खरीदी पहले से ही किया जा रहा है।
मंडी बोर्ड का नियंत्रण खत्म होने से व्यापारियों में फिर से जमाखोरी की प्रवृति को बढ़ावा मिलेगा और कृत्रिम महंगाई की सम्भावना से भी इंकार नही किया जा सकता। वहीँ इस राज्य में लगभग 1700 मंडी कर्मी का रोजगार भी संशय में है।
यह अध्यादेश बड़े किसानों या जो वैकल्पिक खेती करते हैं उनके लिए अधिक लाभप्रद है। इससे राज्य और केंद्र के बीच तारतम्यता स्थापित हो सकेगी इसमें संदेह है बेहतर होता कि इसे राज्य सरकारों की इच्छा के आधार पर लागु किया जाना था ताकि सभी राज्य अपने भौगोलिक और जलवायु के आधार पर होने वाले कृषि उत्पादों को देखते हुए अधिक उपयुक्त निर्णय लेते।
हालाँकि पिछले दिनों कृषि मंत्री ने कृषि सुधारों को लेकर सभी मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर इन सुधारों को सफल तरीके से लागू करने में सहयोग का आग्रह किया था।