विचार / लेख

बाबा साहब की मानें तो राजस्थान के राज्यपाल संविधान का उल्लंघन कर रहे हैं ?
25-Jul-2020 8:38 PM
बाबा साहब की मानें तो राजस्थान के राज्यपाल संविधान का उल्लंघन कर रहे हैं ?

देवेन्द्र वर्मा

पूर्व प्रमुख सचिव, छत्तीसगढ़ विधानसभा

संसदीय एवं संवैधानिक विशेषज्ञ

संसदीय प्रजातंत्र अर्थात जनता के द्वारा जनता के लिए जनता का शासन। क्या यह मूलाधार राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर विराजमान और राजनीति के क्षेत्र में लगभग 50 वर्ष का अनुभव प्राप्त व्यक्ति के संज्ञान में नहीं है,यह प्रश्न बार-बार विचार में आता है और ऐसा विश्वास भी नहीं होता। तब क्या यह बात विश्वास योग्य है, जो राजस्थान के परिपेक्ष में इन दिनों देश में न केवल चर्चा में, अपितु समाचार पत्रों एवं मीडिया में भी सुनाई आ रही है कि राजस्थान के राज्यपाल पर ऊपर से दबाव है?

राज्यपाल के पद पर विराजमान व्यक्ति भारत के संविधान जिसका मूलाधार गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 है, के तहत केंद्र का प्रतिनिधि के रूप में संवैधानिक प्रावधानों की रक्षा के लिए नियुक्त किया जाता है और उससे यह अपेक्षा की जाती है कि यदि राज्यों में संविधान के प्रावधानों का पूर्ण तरह पालन नही हो रहा हो, तथा यदि कोई असंवैधानिक कार्य होता दिखे तो वह समुचित कार्यवाही करें।

किंतु कितना आश्चर्यजनक है कि जिन पर संविधान की रक्षा का दायित्व है, उन पर संविधान के प्रावधानों का मखोल उड़ाने के आरोप लग रहे हैं। संसदीय प्रणाली एवं व्यवस्था में संविधान के प्रावधानों के अंतर्गत सामान्यत: प्रत्येक 5 वर्ष में जनता के द्वारा उनके प्रतिनिधि को निर्वाचित किया जाता है। जो राज्यों के लिए विधानसभा और देश के लिए लोकसभा में अपने-अपने प्रदेश तथा देश की जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं। अर्थात विधायिका का गठन करते है। ये चुने हुए जनता के प्रतिनिधि ही अपने में से कुछ सदस्यों को चयनित करके मंत्री परिषद अर्थात राजनीतिक कार्यपालिका का गठन करते हैं। और यह राजनीतिक कार्यपालिका संविधान की व्यवस्थाओं के अनुरूप जनता के लिए, शासन व्यवस्था के संचालन के लिए जिम्मेदार होती है।

विधायिका जो अपरोक्ष रूप से प्रदेश अथवा देश की संपूर्ण जनता का प्रतिनिधित्व करती है, को अधिकार प्राप्त है कि वह राजनीतिक कार्यपालिका से समय-समय पर उनके द्वारा संपादित किए जा रहे कार्यों का विवरण ले,अर्थात राजनीतिक कार्यपालिका विधायिका के प्रति उत्तरदाई रहती है।इस राजनीतिक कार्यपालिका के प्रमुख कि यह महती जिम्मेदारी है कि वह समय-समय पर कार्यपालिका द्वारा संपादित किए जा रहे कार्यों की जानकारी न केवल विधायिका के माध्यम से जनता की जानकारी में लाए अपितु जन प्रतिनिधि के माध्यम से जनता यह भी सुनिश्चित करती है कि वह राजनीतिक कार्यपालिका से उनके द्वारा संपादित कार्यों की जानकारी ले। अर्थात विधायिका जनता के प्रति उत्तरदाई जवाब दे है।

संविधान सभा में संसदीय प्रणाली के उपरोक्त मूलभूत सिद्धांत की पूर्ति के लिए संपूर्ण व्यवस्थाएं किस प्रकार से रचित की जाएं इस संबंध में संविधान सभा में विस्तृत विचार विमर्श हुआ और सिद्धांत:, क्योंकि राजनीतिक कार्यपालिका विधायिका के प्रति उत्तर उत्तरदाई होती है, जवाबदेह होती है। अत: विधानसभा के सत्र बुलाने का अधिकार राजनीतिक कार्यपालिका के प्रमुख अर्थात मुख्यमंत्री मैं निहित किया गया ताकि वह जब भी आवश्यक समझे अपनी जवाबदेही या उत्तरदायित्व की पूर्ति के लिए विधानसभा के सत्र आहूत कर सकें, और जनता के प्रति उत्तरदायित्व,जवाबदेही को सुनिश्चित कर सके।

क्योंकि हमने ब्रिटिश शासन व्यवस्था को आधार रूप में अपनाया है जहां समस्त कार्य यद्यपि किंग के नाम से संपादित होता है किंतु कार्यों में किंग का किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं रहता,उसी व्यवस्था के अनुरूप हमने देश में राष्ट्रपति एवं राज्यपाल के पदों को निर्मित किया और कार्यपालिका के समस्त कार्य उनके नाम से तथा आदेशानुसार ही किए जाते हैं। संविधान के प्रावधानों के अंतर्गत राज्यपाल मंत्रिमंडल की सलाह पर ही कार्य करता है केवल कुछ मामलों में उसे अपने विवेक से कार्य करने की स्वतंत्रता दी गई है जैसे कि सभा द्वारा पारित विधेयक।

संविधान के अनुच्छेद 174 में राज्य के विधान मंडल के सत्र सत्रावसान और विघटन के प्रावधान किए गए हैं और इसमें यह उल्लेखित है कि राज्यपाल समय-समय पर राज्य के विधान मंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर जो वह ठीक समझे अधिवेशन के लिए आहूत करेगा किंतु उसके एक सत्र की अंतिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच 6 माह का अंतर नहीं होगा।

संविधान सभा में जब सत्र को आहूत करने के संबंध में इस अनुच्छेद पर चर्चा हो रही थी तब संविधान सभा के विद्वान सदस्य श्री के.टी शाह और कुछ अन्य सदस्यों ने संशोधन के प्रस्ताव भी रखें (संशोधन क्रमांक 1473 और 1478 संविधान सभा की कार्यवाही दिनांक 18 मई 1940 9 पार्ट 2) और यह आशंका भी जाहिर की कि, यदि राष्ट्रपति/ राज्यपाल साधारण समय में अथवा असामान्य समय में इस अनुच्छेद के अंतर्गत प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री की सलाह को न मानते हुए यदि सत्र आहूत नहीं करते हैं, ऐसी स्थिति में संविधान में यह भी प्रावधानित करना चाहिए कि, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री विधान मंडल के अध्यक्ष/परिषद के सभा पति से सलाह कर सत्र आहूत कर सकेंगे।

ऐसे संशोधन का आधार यह था कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व जब गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 के अंतर्गत काउंसिल का गठन किया गया और इंग्लैंड के प्रतिनिधि के रूप में गवर्नर जनरल के पास में यह अधिकार था कि वह काउंसिल की बैठकों के लिए समन जारी करें तब एकाधिक अवसरों पर एक 1 वर्ष तक काउंसिल की बैठक आहूत नहीं की जा सकी थी। इन संशोधनों पर बाबा साहब अंबेडकर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए निम्नानुसार अपनी बातें रखी-

The Honourable Dr. B.R. Ambedkar : You better let that lie. I can tell my honourable Friend privately which province it was. It was felt that if such a thing happened as did happen before 1935, it would be a travesty of popular government. To summon the legislature merely for the purpose of getting the revenue and then to dismiss it summarily and thus deprive it of all the legitimate opportunities which the law had given it to improve the administration either by question or by legislation was, as I said, a travesty of democracy.

Similarly there will be many private members who might also wish to pilot private legislation in order to give effect to either their fads or their petty fancies. Again, there may be a further reason which may compel the executive to summon the legislature more often. I think the question of getting through in time the taxation measures, demands for grants and supplementary grants is another very powerful factor which is going to play a great part in deciding this issue as to how many times the legislature is to be summoned.

Then I take the two other amendments of Prof. Shah (Nos. 1473 and 1478). The amendments as they are worded are rather complicated. The gist of the amendments is this. Prof. Shah seems to think that the President may fail to summon the Parliament either in ordinary times in accordance with the article or that he may not even summon the legislature when there is an emergency. Therefore he says that the power to summon the legislature where the President has failed to perform his duty must be vested either in the Speaker of the lower House or in the Chairman or the Deputy Chairman of the Upper House. That is, if I have understood it correctly, the proposition of Prof. K.T. Shah. It seems to me that here again Prof. Shah has entirely misunderstood the whole position. “First of all, I do not understand why the President should fail to perform an obligation which has been imposed upon him by law. If the Prime Minister proposes to the President that the Legislature be summoned and the President, for no reason, purely out of wantonness or cussedness, refuses to summon it, I think we have already got very good remedy in our own Constitution to displace such a President.”

“We have the right to impeach him, because such a refusal on the part of the President to perform obligations which have been imposed upon him would be undoubtedly violation of the Constitution. There is therefore ample remedy contained in that particular clause.”

बाबा साहब अंबेडकर के उपरोक्त विचारों से यह स्पष्ट है कि विधानसभा का सत्र बुलाना कार्यपालिका के प्रमुख अर्थात मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र की बात है और यदि मुख्यमंत्री/ मंत्री परिषद यह निर्णय लेती है, कि विधानसभा का सत्र आहूत किया जाना है, तब यह राज्यपाल के विचार क्षेत्र की बात नहीं है कि वह मुख्यमंत्री के प्रस्ताव को तनिक भी रोके।

राज्यपाल को केवल विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों के मामलों में ही, विचार करने कारण बताते हुए पुन: विधानसभा को भेजने की अधिकारिता संविधान के अंतर्गत है विधानसभा के सत्र आहूत करने के प्रस्ताव पर विचार करने अथवा वापस करने या अस्वीकृत करने जैसा कोई भी प्रावधान संविधान में नहीं है, अपितु इस अनुच्छेद पर चर्चा के समय तो बाबा साहब अंबेडकर ने यहां तक कहा कि यदि ऐसा होता है राष्ट्रपति/ राज्यपाल उनके कर्तव्यों का पालन नहीं करते हैं स्वच्छंदता पूर्ण व्यवहार करते हैं, यह तो संविधान का उल्लंघन होगा।

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