विचार / लेख
-चैतन्य नागर
आपसी मतभेद भले ही कितने गहरे क्यों न हों, इसका समाधान एक-दूसरे का गला काटने में नहीं। भले ही कुछ नेकदिल लोग बार-बार दोहराते रहें कि इस्लाम शांति का मजहब है, पर रैडिकल इस्लाम की ताकत और असर को देख कर नहीं लगता कि उनकी बात को कोई महत्व देता भी है। महातीर मोहम्मद, इमरान खान और तुर्की के एर्दोआन समेत कई लोग फ्रांस में हुई घिनौनी आतंकी घटना के समर्थन में फ्रांस के खिलाफ एकजुट हो गये हैं, क्योंकि उन्हें मालूम है कि उनकी बातें हीं इस्लामिक दुनिया में ज़्यादा सुनी जाती हैं। यह पूरी दुनिया के लिए शर्मनाक है। फ्रांस के लिए लैसिते या धर्मनिरपेक्षता उसकी पहचान का अभिन्न हिस्सा है, और 1905 से उसे इसने अपनाया हुआ है। लैसिते की हार आतंकवादियों के साथ ही उन दक्षिणपंथियों की भी जीत है जो इस्लामोफोबिया के नाम पर समाज को कलह की आग में झोंक देना चाहते हैं।
फ्रांस में बाकी यूरोप के तुलना में सबसे अधिक मुस्लिम रहते हैं। उन्हें अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष सब कुछ तो चाहिए ही, साथ ही लोकतंत्र के बुनियादी मूल्यों पर हमला करने और लोगों की गर्दन काटने की आजादी भी चाहिए। उन देशों से भी ये खुश नहीं जहां इन्हें झोला भर-भर आजादी और अलग पहचान मिली हुई है, क्योंकि वहां इनकी बाकी रुग्ण आकांक्षाएं पूरी नहीं हो पातीं।
मध्ययुगीन सोच, विकृत धार्मिक व्याख्या और पैने हथियारों से लैस इन आतंकियों को मिटाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी उन्ही के मजहब के समझदार लोगों की है जो अपनी बातों को सामने रखकर लोगों को पूरे विश्वास के साथ बता सकें कि उनकी विचारधारा की हकीकत है क्या। लैसिते जैसे सिद्धांत सैकड़ों वर्षों की सोच का, जद्दोजहद का नतीजा हैं। हम एक ही दुनिया में रहें और एक दूसरे को बर्दाश्त न कर सकें, अपने मतों को लेकर खून बहाएं, तो हमारी प्रगति का अर्थ फिर है क्या!
फ्रांस संस्कृति और कला का केंद्र रहा है। नीस का अर्थ ही है खूबसूरत। वहां लोग अपने पेंट और ब्रश लेकर आते हैं, और ठहर जाते हैं अपनी कला को अभिव्यक्ति देने के लिए।
सीपिया फ्रांस पर खून के छींटे आखिरकार वहां के लोगों को उन ताकतों के हाथों में धकेल देंगे जो उनके व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन का सत्यानाश कर डालेंगे। चाहे वे इस्लामी कट्टरपंथी हों, या खून के बदले खून की मांग करने वाले दूसरे धर्म के दक्षिणपंथी।