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कितना सुरक्षित है पेपर कप में चाय-कॉफी पीना
06-Nov-2020 8:33 AM
कितना सुरक्षित है पेपर कप में चाय-कॉफी पीना

आईआईटी, खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने डिस्पोजेबल पेपर कप में गर्म पेय पदार्थ के इस्तेमाल पर स्टडी के बाद चौंकाने वाली रिपोर्ट जारी की है

- DTE Staff

ज्यादातर पेय पदार्थ डिस्पोजेबल पेपर कप में पीये जाते हैं, लेकिन क्या ऐसा करना सही है? आईआईटी, खड़गपुर की एक रिसर्च में पाया गया है कि इन डिस्पोजेबल पेपर कप में गर्म पेय पदार्थ पीना सही नहीं है, क्योंकि इन पेपर कप से माइक्रोप्लास्टिक सहित कई हानिकारक तत्व निकलते हैं। दरअसल यह पेपर कप एक महीन हाइड्रोफोबिक फिल्म से तैयार किए जाते हैं, जो अममून प्लास्टिक (पॉलीथिलेन) से बनते हैं। कई दफा पेपर कप में तरल पदार्थ को रोकने के लिए को-पॉलीमर्स का इस्तेमाल किया जाता है।

आईआईटी, खड़गपुर के सिविल इंजीनियरिंग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर सुधा गोयल, रिसर्च स्कॉलर वेद प्रकाश रंजन और अनुजा जोसफ ने यह अध्ययन किया और पाया कि पेपर कप में 15 मिनट तक गर्म पानी रखने से माइक्रोप्लास्टिक की पतली परत क्षीण हो जाती है।

सुधा गोयल ने कहा, हमारा अध्ययन बताता है कि एक पेपर कप में 85 से 90 डिग्री सेल्सियस तापमान वाला 100 मिलीलीटर गर्म तरल पदार्थ अगर 15 मिनट तक रहता है तो उसमें 25 हजार माइक्रोन आकार के माइक्रोप्लास्टिक के कण निकले। इसका मतलब है कि एक औसत व्यक्ति अगर दिन में तीन बार पेपर कप में चाय या कॉफी पीता है तो वह अपने शरीर के भीतर लगभग 75 हजार सूक्ष्म माइक्रोप्लास्टिक के कण पहुंचा रहा है, जो एक व्यक्ति के आंखों को दृष्टिहीन तक कर सकता है।

इन शोधकर्ताओं ने इस स्टडी के लिए दो तरीके आजमाए। एक- 85 से 90 सेल्सियस तापमान वाला गर्म पानी एक डिस्पोजेबल पेपर कप में डाला गया और 15 मिनट तक इंतजार किया गया। इसके बाद पानी की जांच की गई, जिसमें माइक्रोप्लास्टिक्स के कण मिले। दूसरा- 30 से 40 डिग्री सेल्सियस के गर्म पानी में एक पेपर कप डुबोया। इसके बाद पेपर लेयर से सावधानी से हाइड्रोफोबिक फिल्म को अलग किया गया और गर्म पानी को 15 मिनट तक रखा गया। साथ ही, प्लास्टिक फिल्म के फिजीकल, केमिकल और मैकेनिकल बदलावों की जांच की गई।

शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि ये माइक्रोप्लास्टिक के कण विषाक्त पदार्थों के वाहक के रूप में कार्य कर सकते हैं। इनमें पैलेडियम, क्रोमियम, कैडमियम जैसे जहरीले भारी धातु और कार्बनिक यौगिक शामिल हैं। जब इन विषाक्त पदार्थों को निगला जाता है, तो स्वास्थ्य के लिए काफी गंभीर हो सकते हैं।

आईआईटी, खड़गपुर के निदेशक प्रो. वीरेंद्र के. तिवारी ने कहा, "यह अध्ययन बताता है कि ऐसे उत्पादों के इस्तेमाल से पहले सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। हमें पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों को खोजना होगा, लेकिन साथ ही हमें हमारे पारंपरिक व स्थायी जीवन शैली को बढ़ावा देना होगा।”(downtoearth)

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