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अमित शाह के 200 सीटें जीतने के दावे से गरमाई बंगाल की चुनावी राजनीति
07-Nov-2020 8:45 AM
अमित शाह के 200 सीटें जीतने के दावे से गरमाई बंगाल की चुनावी राजनीति

- प्रभाकर मणि तिवारी

बिहार विधानसभा चुनावों के पूरा होने से पहले ही पड़ोसी पश्चिम बंगाल में चुनावी राजनीति गरमाने लगी है. पश्चिम बंगाल के दौरे पर आए केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा नेता अमित शाह ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में राज्य के 294 में से दो सौ सीटें जीतने का दावा कर राजनीति के ठहरे पानी में हलचल मचा दी है.

हालांकि अब यह भी सवाल उठने लगा है कि शाह का दावा हकीकत के कितने क़रीब है और क्या भाजपा अपनी मौजूदा सांगठनिक ताक़त के बूते इस लक्ष्य तक पहुंच सकेगी? शाह के दौरे और उनके दावों से यह भी साफ़ है कि पार्टी के लिए बिहार से ज़्यादा अहमियत पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों की है.अमित शाह बिहार में तो एक बार भी नहीं गए. लेकिन अचानक तीन दिनों के दौरे पर बंगाल पहुंच गए.

भाजपा नेता ने अपने दौरे की शुरुआत भी उस आदिवासी-बहुल बांकुड़ा ज़िले से की जहां बीते पंचायत और लोकसभा चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन बेहतर रहा था.

बुधवार की रात को कोलकाता पहुंचने के बाद शाह अगले दिन सुबह ही बांकुड़ा पहुंचे. झारखंड से सटे इस आदिवासी-बहुल इलाके में उन्होंने बिरसा मुंडा की मूर्ति पर फूल-माला चढ़ाई. वहां उन्होंने स्थानीय नेताओं के साथ बातचीत की, दोपहर में एक आदिवासी के घर ज़मीन पर बैठकर भोजन किया और उसके बाद पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक को संबोधित किया.

बाद में उन्होंने एक रैली में भी भाषण दिया. शाह के साथ राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, उपाध्यक्ष मुकुल राय और प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष भी थे. पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठक और उसके बाद रैली में उन्होंने लोगों से अगले विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंकने की अपील की.

शाह ने कार्यकर्ताओं से कहा, "जोश से नहीं होश से काम करो. वर्ष 2018 में जब मैंने लोकसभा की 22 सीटें जीतने का दावा किया तो विपक्ष ने खिल्ली उड़ाई थी. लेकिन हमने 18 सीटें जीत लीं और 4-5 सीटें बहुत कम अंतर से हमारे हाथों से निकल गईं."

उन्होंने दावा किया कि बिरसा मुंडा के आशीर्वाद से अगले चुनाव में पार्टी कम से कम दो सौ सीटें जीतेंगी.

"इस दावे पर जिनको जितना हंसना है, हंस सकते हैं. लेकिन अगर हमने सुनियोजित तरीके से काम किया तो दौ सौ से ज़्यादा सीटें भी जीत सकते हैं. राज्य के लोग बदलाव के लिए बेचैन हैं."

शाह ने शुक्रवार को कोलकाता में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक में सांगठनिक तैयारियों का जायजा लिया और चुनावी रणनीति पर भी विस्तार से बातचीत की.

उधर, शाह के बयान पर राजनीतिक घमासान शुरू हो गया है. तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद सौगत राय कहते हैं, "भाजपा के पास मुख्यमंत्री पद का कोई उम्मीदवार नहीं है. पार्टी के पास न तो काडर हैं और न ही ज़मीनी समर्थन. राय ने दावा किया कि बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों से साबित हो जाएगा कि नरेंद्र मोदी का करिश्मा भी अब फीका पड़ गया है. बंगाल में दो सौ सीटें जीतने का अमित शाह का दावा महज दिवास्वप्न है."

दूसरी ओर, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी शाह को बाहरी करार देते हुए कहा है कि अगले चुनाव में लोग बंगाल से तृणमूल कांग्रेस नहीं बल्कि भाजपा को उखाड़ फेंकेंगे. ममता ने गुरुवार को शाह का नाम लिए बिना कहा, "वह हमें उखाड़ फेंकने का दावा कर रहे हैं. लेकिन होगा ठीक इसका उल्टा. शिष्टाचार मत भूलें वरना बंगाल के लोग बाहरियों को बर्दाश्त नहीं करेंगे."

अगले चुनावों के लिए हाथ मिलाने वाली कांग्रेस और वाममोर्चा ने भी शाह के दावे को हक़ीक़त से परे बताया है. माकपा नेता सुजन चक्रवर्ती कहते हैं, "भाजपा का यह सपना कभी पूरा नहीं होगा. जाति और धर्म के आधार पर राजनीति की परंपरा बंगाल में कभी नहीं रही है. लोग चुनावों में भगवा पार्टी को माकूल जवाब देंगे."

कांग्रेस नेता अब्दुल मन्नान ने भी यही बात कही है. मन्नान कहते हैं, "भाजपा के पांव पसारने के लिए तृणमूल कांग्रेस ही ज़िम्मेदार है. लेकिन अबकी लोग इन दोनों दलों को आइना दिखा देंगे. यहां सांप्रदायिक राजनीति के सहारे सत्ता हासिल नहीं की जा सकती. लोग बदलाव भले चाहते हों, यहां कांग्रेस-वाममोर्चा गठबंधन ही तृणमूल कांग्रेस का विकल्प है, भाजपा नहीं."

अमित शाह के दौरे और दावों के बाद राज्य में चुनावों से पहले राष्ट्रपति शासन की अटकलें भी तेज़ होने लगी हैं. लेकिन भाजपा के वरिष्ठ नेता मुकुल राय कहते हैं, "बंगाल में आखिरी बार 40 साल पहले राष्ट्रपति शासन लगा था. इसलिए फिलहाल इस बारे में कोई टिप्पणी करना संभव नहीं है. लेकिन यह सही है कि लोग अब मौजूदा सरकार के भ्रष्टाचार और आतंक से तंग आ चुके हैं और इसे बदलने का मन बना चुके हैं."

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि शाह का दो सौ सीटें जीतने का दावा फिलहाल ज़मीनी हक़ीक़त से दूर लगता है. इससे पहले लोकसभा चुनावों में भी पार्टी के 22 सीटें जीतने के दावे को हल्के में लिया गया था. राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, "लोकसभा चुनावों के नतीजों के आधार पर भाजपा को 120 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली थी. शायद शाह का दावा उस पर ही आधारित है. ऐसे दावों पर भरोसा कर कशमकश में रहे कुछ वोटर भाजपा के पाले में जा सकते हैं."

राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर मनोरंजन माइती कहते हैं, "भाजपा फिलहाल अंदरूनी गुटबाजी से जूझ रही है. यह सही है कि सीमावर्ती इलाकों और उत्तर बंगाल के चाय बागान के इलाकों में उसका प्रदर्शन बेहतर रहा था. लेकिन लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग होते हैं. एक के नतीजे के आधार पर दूसरे के बारे में पूर्वानुमान अक्सर ग़लत साबित होता है. इसके अलावा लोकसभा में लगे झटकों के बाद तृणमूल कांग्रेस ने भी उन इलाकों में वोटरों को लुभाने की कवायद तेज़ कर दी है. ऐसे में भाजपा का दौ सौ सीटें जीतने का दावा मौजूदा परिस्थिति में संभव नहीं लगता."

तमाम राजनीतिक दलों और पर्यवेक्षकों की नज़र भले ही अमित शाह के दावे को लेकर अलग अलग हों लेकिन बिहार चुनावों के बाद पश्चिम बंगाल में भी चुनावी राजनीति के जोर पकड़ने की संभावना है. शाह के दौरे ने इसकी शुरुआत तो कर ही दी है.(bbc)

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