बेमेतरा

गौवंश सरंक्षण के लिए सरकार बैल से कृषि करने वालों को प्रोत्साहित करें
03-Jul-2022 4:31 PM
गौवंश सरंक्षण के लिए सरकार बैल से कृषि करने वालों को प्रोत्साहित करें

किसानी बढ़ते मशीनीकरण से, अनुपयोगी होते जा रहे हैं बैल

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बेमेतरा, 3 जुलाई।
आधुनिकीकरण के दौर में किसान फसल के दौरान जुताई, फसल लाने-ले जाने और अन्य उपयोग के लिए बैल व भैंसा के बजाय ट्रैक्टर वाहन का उपयोग करने लगे है, जिसकी वजह से क्षेत्र में ट्रैक्टर की संख्या बढ़ी है। वहीं बैल व भैंसा की संख्या में लगातार कमी आई है। गोवंश के चिंतक किसानों फसल के लिए परम्परागत तरीके से मवेशियों को पालने का पक्ष रखा है।

कास्तकारी जिले में किसान मशीनीकरण की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहे हैं। इस बीच मवेशियों के सहारे खेती करने यानी हल, गाड़ी का उपयोग करने के बजाय ट्रैक्टर व छोटे वाहन का उपयोग करते हैं। इसी वजह से आम तौर पर प्रत्येक किसान घर मे नजर आने वाला बैल व भैंसा इन दिनों काम ही नजर आने लगा है। किसान चिंतक रामाधार साहू ने बताया कि एक समय था कि हम परम्परागत खेती पर निर्भर थे। सरकार आधुनिक खेती पर जोर देने अनेक सुविधाएं किसानों को देने लगी हैं। जैसे ट्रैक्टर, हार्वेस्टर सहित अन्य यंत्रों का तेजी से विस्तार होने लगा है। नतीजन कृषि में कम समय लगने लगा, किंतु दूसरी ओर गौवंश बैल व भैंसा के जीवन मे संकट आ चुका है।

बैल पालने वालों को सुविधा दे
जागरूक युवा किसान बसंत सिंह राजपूत ने बताया कि सरकार इस बार पोला में बैल की पूजन की परंपरा तक सीमित न हो बल्कि बैल से कृषि करने वालों के लिए सुविधाओं की शुरुवात अवश्य कर प्रोत्साहित करें इसके अवश्य दूरगामी परिणाम देखने को मिलेंगे।

दांत देखकर बैल खरीदा जाता था
ग्राम बसनी के किसान मन्नू लाल साहू ने बताया कि फसल सीजन आने से पहले गांव व जिला मुख्यालय में मवेशी पसरा याने मवेशी बाजार लगता था। जहा पर गांव-गांव के बड़े-बड़े बैल बिकने आया करते थे। तब बुजुर्ग बिचौलिए से पहुँचकर होशियार बैल खरीदने जोर देते थे। दांत देखकर बैल का उम्र का हिसाब लगाया जाता था। जो पसंद आता था उसे अगले दिन बैल गाड़ी से बैल की परख करते सामान्य तौर पर इस तरह से बैल खरीदने की एक प्रक्रिया थी। जो बंद हो चुकी है।

पैरा जलाना भी इसी का अंश है
युवा किसान जीवन साहू ने बताया कि आधुनिक खेती से उत्पादन में तो वृद्धि हुई हैं , पर नुकशान भी बहुत हो रहा है। जिससे फसल कटाई के समय बहुत से अनाज गिर जाना , पैरा न रख उसे जला देना, गौवंश को घरों में न रख सडक़ में निकाल देना जिससे इधर-उधर घूमना तक शामिल हैं।

शहर का मवेशी पसरा कर कारोबार समाप्त हो गया
किसान संतराम निषाद ने बताया कि वो आज भी भैंसा रखते है और कई किसान बैल रखते हैं , पर अब मवेशी खरीदने के लिए दीगर क्षेत्र की ओर जाना पड़ता है। जबकि पूर्व में शहर में किसान भवन के पास फिर तालाब पार में मवेशी पसरा प्रति शनिवार को लगता था जो अब नही लगता। शहर में अब यह कारोबार समाप्त हो चुका है। बात मवेशी बेचने व खरीदने का नहीं बल्कि पशुओं के सहारे खेती करने की है।
बहरहाल फसल सीजन प्रारम्भ होने के साथ ही बैल, भैंसा की पहले की तरह पूछ-परख नही रहा है। केवल छोटे किसान या कम रकबा वाले किसान ही मवेशी पालकर खेती करते हैं।

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