महासमुन्द
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707 को पुलिस ने खोज निकाला, 273 अब भी लापता
रिश्तेदार थाने में हर दिन पहुंचकर उनके बारे में जानने के लिए पहुंचते हैं
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुन्द, 30 दिसम्बर। पिछले तीन सालों में महासमुन्द जिले के थानों में 980 नाबालिग और बालिग बेटियों के अपहरण-गुमशुदगी के मामले दर्ज हुए हैं। इनमें से 707 बेटियों को पुलिस ने खोज लिया है। हालांकि तीन साल 2018 से 2020 के बीच जिले की 273 लापता बेटियों का अब तक कोई सुराग पुलिस को नहीं मिला है। ये अभी तक अपने माता और परिवार से अब भी दूर है।
इस साल 20202 में ही जिले के विभिन्न थानों में 275 बेटियों के अपहरण-गुमशुदगी के मामले दर्ज किए गए थे। इसमें से 142 मामलों में पुलिस ने बेटियों को खोज निकाला। हालांकि 133 बेटियां अब भी लापता है। इन बेटियों के माता-पिता, भाई-बहन व अन्य रिश्तेदार थाने में हर दिन पहुंचकर उनके बारे में जानने के लिए पहुंचते हैं लेकिन उन्हें मायूसी हाथ लगती है।
गौरतलब है कि हाल ही में 19 दिसम्बर की रात पिथौरा में नेशनल हाईवे 53 पर टहलने निकली दो युवतियां गायब हो गई थी। इसमें से एक युवती नाबालिग है जबकि दूसरी बालिग। दोनों युवतियां सगी बहन हैं। युवती के पिता की रिपोर्ट पर पिथौरा थाना में अपराध पंजीबद्ध किया गया लेकिन घटना बीतने के 10 दिन बाद भी पुलिस खाली हाथ है। मामले में सांसद चुन्नीलाल साहू ने भी हस्तक्षेप किया था फिर भी लड़कियों का सुराग अब नहीं लगा है।
जिले के विभिन्न थानों में 275 मामले इसी साल 2020 में ही दर्ज हुए हैं। इनमें से 142 मामलों में बेटियां मिल चुकी हैं और 133 अब भी लापता हैं। इसी साल 3 मामले मानव तस्करी के भी दर्ज हैं। वैसे मानव तस्करी के 13 केस वर्ष 2018 से 2020 के बीच दर्जज्ञ किए गए हैं। वहीं तीन सालों में 980 अपहरण, गुमशूदगी के दर्ज हुए हैं। इनमें से 707 मामले 2018-20 के बीच सुलझाए दए हैं लेकिन 273 बेटियों का 2018 से 2020 के बीच अब तक कोी सुराग नहीं मिला है।
ज्ञात हो कि वर्ष 2018 में मानव तस्करी के 7 मामले दर्ज हुए थे। 2019-20 में इसमें कमी आई है। साल 2019 और 2020 में तीन-तीन मामले मानव तस्करी के दर्ज किए गए थे। जिले में अपहरण व गुमशुदगी के मामले में 2018 से घटे हैं। रिकॉर्ड में गुमशुदगी के नाबालिग से जुड़े हर मामले में अपहरण दर्ज किया जा रहा है। बालिग के मामलों में गुमशुदगी दर्ज की जा रही है। इसके बाद भी जांच के नाम पर फाइल सालों इधर से उधर घूमते रही है। थाना पुलिस भी इस तरह के मामलों में साइबर क्राइम का मुंह ताक रही है। थानों में तो सिर्फ मामला दर्ज कर लिया जाता है और जांच के नाम पर कार्रवाई और नतीजा शून्य रहता है।
इस मामले में मेघा साहू टेंभूरकर,एएसपी महासमुन्द कहती हैं-पिछले सालों को देखेंगे तो इस साल अपहरण-गुमशुदगी के मामले थानों में काफी कम दर्ज हुए हैं। अपहरण-गुमशुदगी के ज्यादातर मामले बालिग होते हैं। लडक़े-लड़कियां घर से भागगकर शादी कर लेते हैं। अधिकतर मामलों में लड़कियां सहमति से जाती हैं।
हम बेटियों को खोजने के लिए लगातार अभियान चलाते हैं। मुस्कान अभियान चलाकर हमने सैकड़ों बेटियों को खोजा है। वैसे हमारे जिले में मानव तस्करी की घटनाओं में कोई भी बालिग नहीं है। सभी मामले नाबालिग के हैं। छोटे होने के कारण इन्हें आसानी बरगलाया जा सकता है। पिछले सालों की अपेक्षा अब मानव तस्करी के मामलों में कमी आई है।