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तिहाड़ पर सिगरेट और चॉकलेट की बारिश से शुरू हुई भारत में एयरपोर्ट सुरक्षा की कहानी
04-Jul-2021 8:50 PM
तिहाड़ पर सिगरेट और चॉकलेट की बारिश से शुरू हुई भारत में एयरपोर्ट सुरक्षा की कहानी

-डाॅ.  परिवेश मिश्रा 
जिन साथियों को किसी हवाई अड्डे में प्रवेश करने का अवसर मिला है वे भी भली भाँति जानते हैं आज के समय में किसी अनधिकृत चिड़िया के लिए भी आसान नहीं कि सुरक्षा व्यवस्था को भेदकर वह एयरपोर्ट में प्रवेश कर पाए। 

किन्तु एयरपोर्ट की ऐसी चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था हमेशा नहीं थी। साठ के दशक तक लाठी लिए होमगार्ड के एक या दो सैनिक हवाई अड्डे की सुरक्षा ड्यूटी में होते थे। बहुत छोटे एरोड्रोम हों तो गांव के कोटवार पर्याप्त थे। कलकत्ता के डमडम, दिल्ली के पालम और बम्बई के सांताक्रूज आदि बड़ों में शुमार थे सो वहां स्थानीय थाने की पुलिस को यह काम सौंपा जाता था। उस थाना क्षेत्र मे जिस दिन किसी वी.आय.पी का कार्यक्रम हो या कोई कानून व्यवस्था की समस्या हो, पुलिस को एयरपोर्ट ड्यूटी से हटा कर उधर भेज दिया जाता था। ये हाल सिर्फ एरोड्रोम के भवनों के ही नहीं बल्कि हवाई पट्टियों के भी थे। अधिकांश स्थानों में मैदानों में फेन्सिंग भी नहीं थी। वर्षों तक मध्यप्रदेश के स्टेट पायलट रह चुके स्व. ज़ेड. ए. बेकर ने मुझे बताया था अनेक अवसरों पर हवाई पट्टी पर चरते गाय-बकरियों के बीच विमान लैन्ड कराना उनके अनुभवों में शुमार था। 

जिस घटना के कारण भारत में हवाई अड्डों की सुरक्षा पर पहली बार सरकार का ध्यान गया, उस घटना में दिल्ली के सफदरजंग एरोड्रोम का बड़ा रोल है। पालम से पहले दिल्ली का मुख्य एरोड्रोम यही था। लाॅर्ड माऊंटबैटन जब अंतिम वायसराॅय बनकर भारत आये तो उनका विमान मध्य दिल्ली में यहीं उतरा था। हाल तक यहां फ्लाईंग क्लब काम करता था। प्राणघाती दुर्घटना के दिन 23 जून 1980 को संजय गांधी का विमान यहीं से उड़ा था। पास ही स्थित प्रधान मंत्री आवास की सुरक्षा के चलते यहां की गतिविधियों पर अब लगाम लग चुकी है।   

हमारी कहानी के हीरो (आप चाहें तो विलेन कह सकते हैं) हैं डेनियल हैली वाॅलकाॅट। तीस-एक साल की उम्र में इस अमरीकी ने एक छोटा विमान खरीदकर अपने देश में समुद्र पार से माल ढुलाई का कारोबार शुरू किया। आज के संदर्भ में कुरियर कम्पनी। हालांकि तब तक यह जानकारी बाहर नहीं आयी थी कि इनका असली काम सामान के साथ साथ बिना कागज़ात वाले लोगों की स्मगलिंग का था। 

वाॅलकाॅट को भारत में बड़ा काम 1962 में मिला जब  एयर इंडिया ने उन्हें बड़े रेल्वे स्टेशनों से माल उठाकर अफगानिस्तान पहुंचाने का ठेका दिया। वाॅलकाॅट ने अपनी पत्नी के साथ दिल्ली के अशोका होटल में अस्थायी निवास बनाया और अपने "पाईपर अपाशे" विमान के साथ काम शुरू कर दिया। स्मगलिंग का अनुभव तो था ही। सो साथ ही साथ भारत में शिकार के शौकीन लोगों से सम्पर्क कर बन्दूकों की गोलियां भी सप्लाई करने लगे। 

सितम्बर 1962 में दिल्ली पुलिस ने छापा मारकर होटल के कमरे के अलावा इनके पाईपर अपाशे विमान से बड़ी मात्रा में बन्दूक की गोलियां जब्त की। 

एस.डी.एम ने वाॅलकाॅट को न्यायिक अभिरक्षा में तिहाड़ जेल भेज दिया। सफदरजंग एरोड्रोम पर खड़े विमान को भी जब्त कर लिया गया। एक महीने के बाद जब जमानत मिली तो वाॅलकाॅट ने भारत से भागने का प्रयास किया। किन्तु वाघा सीमा पर इन्हे पकड़ कर फिर से तिहाड़ में डाल दिया गया। 

उसी समय भारत पर चीन का आक्रमण हुआ और देशप्रेम बाकी हर बात पर हावी हो गया। देश के लिए कुछ कर गुज़रने के लिए भारतीय लालायित हो गये थे। ऐसे समय में वाॅलकाॅट ने कोर्ट में आवेदन दे कर कहा उसके पास विमान है, विमान उड़ाने का अनुभव है, और यदि आवश्यकता पड़े तो वह भारत की सेवा में अपने विमान को समर्पित करना चाहेगा। मांग बस इतनी थी कि उसे विमान को चालू हालत में रख सकने की अनुमति दी जाए। अनुमति मिल गयी और जेल का वाहन वाॅलकाॅट को नियमित रूप से सफदरजंग एरोड्रोम ले जाने लगा। उन्हें थोड़ा पेट्रोल दिया जाता ताकि वे  एंजिन को कुछ समय चालू रख सकें। यह अनदेखा रह गया है कि वाॅलकाॅट हर बार कुछ पेट्रोल बचा कर इकट्ठा करते जा रहे हैं। 

साल भर में दोबारा जमानत मिली तो वाॅलकाॅट की अमेरिका वापसी स्वाभाविक मानी जाती। किन्तु दो समस्याएं बाधा बन गई थीं। वाॅलकाॅट पर टाटा की ओर साठ हज़ार रुपयों की देनदारी बाकी थी और दूसरे उनका विमान अभी तक वापस नहीं मिला था। जब पैसा वसूली की उम्मीद कम हुई तो टाटा के वकीलों ने इनके विरुद्ध गैर-जमानती वाॅरंट की प्रक्रिया शुरू कर दी। वाॅलकाॅट के लिए निर्णायक कदम उठाने का समय आ गया था। 

23 सितम्बर 1963 की सुबह जब वाॅलकाॅट सफदरजंग एरोड्रोम पहुंचे तब तक पुलिस का जवान इन्हे वहां देखने का आदी हो चुका था। वाॅलकाॅट ने वहां पहुंच कर हर बार की तरह विमान को स्टार्ट किया। यह अप्रत्याशित नहीं था। कुछ देर के बाद जवान का ध्यान उस ओर लौटा तब तक विमान रन-वे पर पहुंच चुका था। उसने दौड़कर विमान को रोकने का प्रयास किया पर देर हो चुकी थी। जवान ने लौटकर कार्यकाल का दरवाजा खुलवाया, फोन के डब्बे से रिसीवर उठाकर ऑपरेटर के "नम्बर प्लीज़" कहने की प्रतीक्षा की और हवाई जहाज के भाग जाने की सूचना आगे दी। भारतीय वायु सेना के दो हंटर विमानों को पीछा करने भेजा गया किन्तु तब तक वाॅलकाॅट का विमान पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर चुका था। 

लेकिन इस से पहले वाॅलकाॅट ने एक काम किया। सफदरजंग एरोड्रोम से उड़ने के बाद उसने तिहाड़ जेल के चक्कर लगाये और ऊपर से सिगरेट और चॉकलेट के पैकेट गिराये। जेल के मित्रों के लिए यह वाॅलकाॅट का उपहार था। 
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और जो हुआ सो हुआ, लेकिन इस घटना के फ़ौरन बाद सरकार ने हवाई अड्डों की सुरक्षा के तरीके ढूंढ़ने के लिये एक समिति बनाई थी। तमिलनाडु काडर के पुलिस अधिकारी आर.एन. माणिक्कम इंटेलिजेंस ब्यूरो में थे और "राॅ" के भीतर एविएशन रिसर्च सेन्टर के संस्थापक के रूप में याद किये जाते हैं। वे इस समिति के मेम्बर सेक्रेटरी थे। अपनी पुस्तक "सिक्योरिटी, एस्पियोनेज एन्ड काऊंटर इन्टेलिजेन्स" में लिखते हैं कि पहली बार भारत के हवाई अड्डों की सुरक्षा के लिए केन्द्र शासन के अधीन किसी समर्पित व्यवस्था का सुझाव दिया गया। 

1969 से फिलिस्तीन वालों ने हवाई जहाज हाइजैक करने का सिलसिला शुरू किया। इनमें महिला हाइजैकर लैला खालिद का बड़ा नाम हुआ था। इसके बाद हवाई अड्डों की सुरक्षा और चौकस की गयी। 30 जनवरी 1971 में पहली बार भारत में विमान का अपहरण हुआ। व्यवस्था और बढ़ाई गयी। और तब से यह चक्र चल रहा है। धीरे धीरे बात बढ़ती रही और राज्य शासन के एस.पी. स्तर के अधिकारियों से बढ़ कर सी.आर.पी.एफ. और सी.आय. एस.एफ. से भी आगे निकल गयी। अप्रैल 1993 में तत्कालीन विमानन मंत्री गुलाम नबी आज़ाद ने संसद में घोषणा की कि प्रमुख हवाई अड्डों की सुरक्षा के लिए केन्द्र विशेष रूप से प्रशिक्षित बल तैनात करेगा।
 
1960 का काल और तिहाड़ जेल पर सिगरेट और चॉकलेट की बारिश का किस्सा अब इतिहास बन चुका है। 

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