विचार / लेख
-सुसंस्कृति परिहार
विगत दिनों, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के पूर्व निर्देश के पालन में राज्य शासन की तरफ से जातिगत आंकड़ा पेश कर दिया गया है। इसके मुताबिक, राज्य में 50.09 फीसद यानी आधी आबादी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की है। इसी तरह प्रदेश में अनुसूचित जाति (एससी) की आबादी 15.6 फीसद है। इस वर्ग को 16 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल रहा है। आबादी के अनुपात में 0.4 फीसद आरक्षण अधिक मिल रहा है। अनुसूचित जनजाति (एसटी) की आबादी 21.1 फीसद है। इस वर्ग को 20 फीसद आरक्षण मिल रहा है। यानी जनसंख्या के अनुपात में 1.1 फीसद आरक्षण का लाभ कम हासिल हो रहा है। अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी 50.09 फीसद के मुकाबले इस वर्ग को पुराने प्रावधान के तहत महज 14 फीसद आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है।
यह जानकारी जनहित याचिका लगाने वाले ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन के अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने दी। उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (पीएससी) की राज्य सेवा प्रारंभिक परीक्षा-2019 में आरक्षित श्रेणी के ओबीसी आवेदकों को संशोधित प्रावधान के तहत 27 फीसद आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा रहा है। इसी रवैये को चुनौती दी गई है। इसी मामले में जारी नोटिस के जवाब में राज्य शासन की ओर से जातिगत आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं। ये आंकड़े वर्ष 2011 की जनगणना पर आधारित हैं। कोरोना की वजह से 2021 की जनगणना नहीं हो पाई है
उनके मुताबिक, ओबीसी को संशोधित प्रावधान के तहत 27 फीसद आरक्षण न मिल पाने की सबसे ब़ड़ी वजह सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश है, जिसके तहत किसी भी सूरत में आरक्षण 50 फीसद से अधिक नहीं दिया जा सकता। बहरहाल, हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक की अध्यक्षता वाली युगलपीठ ने राज्य शासन की जानकारी को रिकॉर्ड पर ले लिया है। आगामी सुनवाई के दौरान आंकड़ो की रोशनी में विचार कर आदेश पारित किए जाने की संभावना है।
सरकार ने 24 जुलाई, 2019 को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का विधेयक विधानसभा में पेश किया, जो सर्वसम्मति से पारित हो गया। इस विधेयक को तत्कालीन राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने मंजूरी भी दे दी। सरकार और विधानसभा के इस फैसले को आकांक्षा दुबे और अन्य ने उच्च न्यायालय जबलपुर में चुनौती दी। उनका कहना था कि यह इंदिरा साहनी मामले में न्यायालय के फैसले का उल्लंघन है, जिसमें 50 प्रतिशत से ऊपर सीटें आरक्षित न किए जाने का आदेश दिया गया है।
इस याचिका पर सुनवाई करने के बाद उच्च न्यायालय ने अंतरिम आदेश में आरक्षण पर रोक लगा दी। इसके बाद अलग-अलग विभागों के नियुक्तियों के कई मामलों में न्यायालय के फ़ैसले आए। कुल मिलाकर ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का मामला अटक गया। इस बीच केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने गैर आरक्षित तबके यानी सवर्णों के लिए आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया। मध्य प्रदेश में भी यह आरक्षण लागू है। यह इंदिरा साहनी मामले में 50 प्रतिशत तक आरक्षण सीमित रखने के फैसले का उल्लंघन भी है, क्योंकि केंद्र व राज्यों में इस आरक्षण के लागू होने के बाद अमूमन आरक्षण 60 प्रतिशत के करीब हो गया है। इसके बावजूद किसी उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय ने मोदी सरकार के इस आरक्षण पर एक मिनट के लिए भी रोक नहीं लगाई और वह जारी है।
अब राज्य सरकार ने 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक़ ओबीसी की संख्या साफ कर दी है। इसके मुताबिक़ भोपाल में ओबीसी की आबादी सबसे ज्यादा 63.14 प्रतिशत है और 61.69 प्रतिशत आबादी के साथ इंदौर दूसरे स्थान पर है। मंदसौर और नीमच में भी ओबीसी की आबादी 61 प्रतिशत से ऊपर है। कुल मिलाकर ओबीसी की आबादी 50 प्रतिशत से ऊपर होने के बावजूद राज्य में 14 प्रतिशत आरक्षण ही ओबीसी के लिए है। वहीं राज्य सरकार के मुताबिक़ राज्य में सवर्णों यानी गैर आरक्षित तबक़े की आबादी 13.21 प्रतिशत है, उनके लिए भी राज्य में 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान कर दिया गया है।
आंकड़ों के मुताबिक़, ओबीसी को सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है। यह स्थिति सिर्फ मध्य प्रदेश की ही नहीं है। मंडल कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक़ देश भर में ओबीसी की आबादी 52 प्रतिशत है और उसे केंद्र सरकार व कुछ राज्य महज 27 प्रतिशत आरक्षण देते हैं। आरक्षण मिलने के बावजूद केंद्रीय विश्वविद्यालयों व तमाम सरकारी संस्थानों में ओबीसी की आबादी नगण्य है और उच्च पदों पर बमुश्किल 5 प्रतिशत ओबीसी हैं।बीजेपी की विभिन्न सरकारों ने तरह-तरह के नियम लाकर ओबीसी को आरक्षण से वंचित किया है, जिसकी वजह से उन्हें सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में घुसने नहीं दिया जाता है। मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए नीट परीक्षा होती है। उसमें केंद्र की सीटों पर ओबीसी आरक्षण न होने की वजह से हर साल ओबीसी विद्यार्थियों को करीब 11,000 मेडिकल सीटों का नुकसान होता है।
केंद्र सरकार ने इसमें गरीबी के आधार पर सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण दे दिया है, लेकिन वह ओबीसी आरक्षण देने को तैयार नहीं है। इस मामले में तमिलनाडु की स्टालिन सरकार न्यायालय में गई और उसने नीट परीक्षा स्थगित करने की अपील की। तमिलनाडु बीजेपी के महासचिव कारू नागराजन ने मद्रास उच्च न्यायालय में मुकदमा दर्ज कर बगैर ओबीसी आरक्षण के ही मेडिकल एडमिशन टेस्ट कराने की अपील कर दी।
दिलचस्प यह है कि ओबीसी तबका आरक्षण को लेकर मुखर नहीं है। यह इस तबके का पिछड़ापन ही है कि उसे नहीं पता कि प्रशासनिक नौकरियों, विश्वविद्यालयों की नौकरियों सहित आईआईटी, आईआईएम और मेडिकल कॉलेजों में ओबीसी नगण्य हैं। ओबीसी तबके की तरफ से मांग न उठने के कारण राजनेता भी मुखर होकर ओबीसी के पक्ष में नहीं आते हैं। भारतीय समाज का एक बड़ा तबका तमाम धांधलियों के कारण उच्च पदों और बेहतर शिक्षा से वंचित है, जिसकी आबादी 50 प्रतिशत से ऊपर है।
प्रधानमंत्री भले ही ख़ुद को चुनावी मंच से पिछड़ा घोषित करते हैं लेकिन हकीकत यह है पिछड़ों के प्रतिनिधित्व को सरकार पूरी तरह ख़ामोश है।याद करें कि आबादी के हिसाब से आरक्षण की मांग बिहार चुनाव में उठी थी। बिहार के वाल्मीकि नगर में एक चुनावी सभा के दौरान, नीतीश कुमार ने कहा था कि जातियों को आबादी के हिसाब से आरक्षण मिलना चाहिए।उस वक्त ये चर्चा सुर्खियों में रही ।संघ ने तब इस विषय पर चुप्पी साध ली थी।
मध्य प्रदेश पिछड़ा वर्ग आंदोलन के विसलब्लोअर एड. वैभव सिंह ने सर्वप्रथम 2014 में मध्यप्रदेश में इंदिरा साहनी प्रकरण में हुए निर्णय अनुसार पिछड़ा वर्ग आरक्षण 14% से 27% करने हेतु सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई गई थी। तदुपरांत उनके के नेतृत्व में जनवरी 2019 में पिछड़ा वर्ग के अधिकारों हेतु भारत देश में सर्वाधिक लंबे समय का धरना सागर, दमोह आदि अन्य जगहों पर दिया गया। पूरे देश में जागृति अभियान भी चला। इसी आंदोलन के दौरान ओबीसी महासभा का उदय हुआ और वैभव सिंह को राष्ट्रीय संरक्षक का दायित्व मिला। वर्तमान में ओबीसी महासभा देश का सबसे बड़ा गैर राजनीतिक पिछड़ा वर्ग संगठन बनकर उभरा है। इन्हीं जन आंदोलनों के चलते मध्य प्रदेश सरकार कोर्ट में पिछड़ा वर्ग के आंकड़े देने के लिए मजबूर हुई।
ओ बी सी महासभा के मुताबिक आगामी रणनीति के अंतर्गत आरक्षण को संविधान की धारा 340 अनुसार लागू करवाना मुख्य विषय होगा । यह आरक्षण की व्यवस्था जिला स्तर पर जाकर लागू होना चाहिए एवं पिछड़ा वर्ग को उसके अधिकार कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका, मीडिया, प्राइवेट सेक्टर, बजट एवं भू अधिकार में मिलना चाहिए।नई रणनीति के अंतर्गत ओबीसी महासभा ने राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक माह की 13 तारीख को अपने अधिकारों के लिए ग्राम स्तर पर ज्ञापन दिये जाते हैं जिसकी बदौलत पिछड़ा वर्ग में जागरण संभव हुआ है।
इसके साथ ही आंदोलन को नई धार देते हुए ओबीसी महासभा के द्वारा भारत देश में 'आई सपोर्ट ओबीसी' का फेसबुक टैग लाया गया जिसको फेसबुक पर 14 करोड़ 83 लाख ने टैग किया, यह पिछड़ा वर्ग आंदोलनों में सोशल मीडिया पर मिली सबसे बड़ी सफलता थी। जब तक पिछड़ा वर्ग को उसकी संपूर्ण अधिकार नहीं मिलेंगे तब तक हम संघर्ष करते रहेंगे ये कहना है ओबीसी के प्रखर नेता महेंद्र सिंह लोधीजी का। वहीं एडवोकेट धर्मेंद्र कुशवाहा ग्वालियर का कहना है कि 74 साल से पिछड़ा वर्ग की जनगणना नहीं करा कर हमारे वर्गों के साथ बहुत अन्याय किया गया है।
कुल मिलाकर पिछड़े वर्ग का यह आंदोलन सरकार के गले की हड्डी बन गया है कतिपय लोगों इसे उप्र में मुख्यमंत्री योगी के लिए बड़ी चुनौती मान रहे हैं। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा हाई कोर्ट में आंकड़े देने को इसे योगी विरोधी मुहिम का हिस्सा बताया जा रहा है। बहरहाल एक बात साफ़ हो चुकी है कि ओबीसी संगठन पूरे देश में मज़बूत स्थिति में है उसकी उपेक्षा ख़तरनाक होगी।