विचार / लेख

अगर आप ऐसी क्रूरता के हिमायती हैं तो एक दिन ये आपके दरवाजे भी पहुंचेगी...
06-Jul-2021 8:42 AM
अगर आप ऐसी क्रूरता के हिमायती हैं तो एक दिन ये आपके दरवाजे भी पहुंचेगी...

-कृष्ण कान्त  

एक 'मजबूत सरकार' को 84 साल के एक बुजुर्ग से खतरा था। वह बूढ़ा व्यक्ति पार्किंसन का मरीज था। बाकी शरीर की तरह कान भी कम काम करते थे। जो हाथ अपना निवाला अपने मुंह में नहीं डाल सकते थे, उन कांपते हाथों से मजबूत प्रधानमंत्री की जान को खतरा था। जो कान किसी की बात नहीं सुन सकते थे, उन कानों से भी इस बहरी सरकार को खतरा था। खतरा इतना ज्यादा था कि उन्हें जेल डाल दिया गया। वे लंबे समय तक बीमार रहे और कल उनकी मौत हो गई। 
ये मौत नहीं है। ये बिना गोली मारे, बिना जहर दिए की गई हत्या है। 
उन्होंने अपील की थी कि उनके हाथ कांपते हैं, पानी पीने के लिए एक स्ट्रॉ दे दिया जाए। सरकार और अदालत मिलकर बहस करने लगीं और उन्हें स्ट्रॉ नहीं दे सकीं। वे जिंदगी नहीं दे सकते। वे मौत दे सकते हैं। उन्होंने उस बूढ़े को मौत अता की। जीवन के आखिरी पड़ाव पर उन्हें जेल में सड़ा कर मार डाला गया। जिंदगी भर गरीबों के मानवाधिकार के लिए लड़ने वाले एक भले व्यक्ति को मानवाधिकार से वंचित करके मारा गया। 
आतंक से लड़ने के लिए एक राष्ट्रीय एजेंसी बनाई गई है। वह आज तक किस आतंक से लड़ी, कोई नहीं जानता। वह एक निकृष्ट एजेंसी है जो तमाम बूढ़े सामाजिक कार्यकर्ताओं को सताने का काम करती है। इस फूहड़ एजेंसी की फूहड़ थ्योरी है कि कई बूढ़े कार्यकर्ता और लेखक मिलकर प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रच रहे थे। प्रधानमंत्री न हुआ, गली में घूमती मुर्गी हो गया जिसे 84 साल के बूढ़े भी मार देंगे और वह मर जाएगा। ऐसी अश्लील कहानी पर अदालत ने भी भरोसा किया और इस घटिया कहानी के दम पर आज कई बुजुर्ग जेलों में बंद हैं। 
ये वही केस है जिसके बारे में वाशिंगटन पोस्ट ने दावा किया है कि कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं के लैपटॉप में मालवेयर के जरिये सबूत प्लांट किये गए फिर उसी आधार पर उनको गिरफ्तार किया गया। इस केस में अब तक कुछ भी साबित नहीं हुआ है लेकिन दर्जनों बुद्धिजीवी महीनों से जेल में बंद हैं। 
फादर स्टेन स्वामी पूरी जिंदगी देश की सबसे गरीब आबादी के मानवाधिकार के लिए लड़ते रहे। सरकार ने उनसे उनका मानवाधिकार और उनका जीने का अधिकार भी छीन लिया। 
जिसका सम्मान करना चाहिए था, उसे जेल में बंद करके मार दिया गया। अगर आप ऐसी क्रूरता के हिमायती हैं तो एक दिन ये आपके दरवाजे तक भी पहुंचेगी। आपके पास दो विकल्प हैं: पहला, आप सवाल पूछे कि बीमार बूढ़े मानवाधिकार कार्यकर्ता की जिंदगी क्यों छीन ली गई। दूसरा, आप अपनी बारी का इंतजार करें जब आपको भी ऐसी ही बर्बरता से मारा जाए।
ये अतिशयोक्ति नहीं है। जब कोई प्रशासन क्रूरता और दमन के दम पर देश चलाने की हिमाकत करता है तो उसका काम सिर्फ एक हत्या से पूरा नहीं होता। 
फादर स्टेन स्वामी की ये हत्या करने वालों ने देश के माथे पर कभी न मिटने वाला कलंक लगाया है। वे देश के वंचितों की लड़ाई लड़े। उनका कद उनके हत्यारों से हमेशा ऊंचा रहेगा।

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