विचार / लेख

लिंकन किसी और ही मिट्टी के बने हुए थे
06-Jul-2021 2:47 PM
लिंकन किसी और ही मिट्टी के बने हुए थे

-गोपाल लाल पांडेय 

अब्राहम लिंकन चर्मकार (अपभ्रंश....चमार) थे, उनके पिताजी जूते बनाते थे, जब वह राष्ट्रपति चुने गए तो अमेरिका के अभिजात्य वर्ग को बड़ी ठेस पहुँची। 

सीनेट के समक्ष जब वह अपना पहला भाषण देने खड़े हुए तो एक सीनेटर ने ऊँची आवाज में कहा, मिस्टर लिंकन याद रखो कि तुम्हारे पिता मेरे और मेरे परिवार के जूते बनाया करते थे। इसी के साथ सीनेट भद्दे अट्टहास से गूँज उठी। लेकिन लिंकन किसी और ही मिट्टी के बने हुए थे। 

लिंकन ने कहा- मुझे मालूम है कि मेरे पिता जूते बनाते थे। सिर्फ आपके ही नहीं यहाँ बैठे कई माननीयों के जूते उन्होंने बनाये होंगे। वह पूरे मनोयोग से जूते बनाते थे, उनके बनाए जूतों में उनकी आत्मा बसती है। अपने काम के प्रति पूर्ण समर्पण के कारण उनके बनाए जूतों में कभी कोई शिकायत नहीं आई। क्या आपको उनके काम से कोई शिकायत है? उनका पुत्र होने के नाते मैं स्वयं भी जूते  बना लेता हूँ और यदि आपको कोई शिकायत है तो मैं उनके बनाए जूतों की मरम्मत कर देता हूँ। मुझे अपने पिता और उनके काम पर गर्व है। 

सीनेट में उनके इस तर्कवादी भाषण से सन्नाटा छा गया और इस भाषण को अमेरिकी सीनेट के इतिहास में बहुत बेहतरीन भाषण माना गया है, और उसी भाषण से एक थ्योरी निकली  Dignity of Labour (श्रम का महत्व) और इसका ये असर हुआ कि जितने भी कामगार थे। उन्होंने अपने पेशे को अपना सरनेम बना दिया जैसे कि कोब्लर, शूमेकर, बूचर, टेलर, स्मिथ, कारपेंटर, पॉटर आदि। 

अमेरिका में आज भी श्रम को महत्व दिया जाता है इसीलिए वो दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति है। वहीं भारत में जो श्रम करता है उसका कोई सम्मान नहीं है, वो छोटी जाति का है, नीच है। यहाँ जो बिल्कुल भी श्रम नहीं करता वो ऊंचा है। जो यहाँ सफाई करता है, उसे हेय (नीच) समझते हैं और जो गंदगी करता है उसे ऊँचा समझते हैं। ऐसी गलत मानसिकता के साथ हम दुनिया के नंबर एक देश बनने का सपना सिर्फ देख सकते हैं, लेकिन उसे पूरा नहीं कर सकते। जब तक कि हम श्रम को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखेंगे, जातिवाद और ऊँच-नीच का भेदभाव किसी भी राष्ट्र निर्माण के लिए बहुत बड़ी बाधा है। 

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