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छत्तीसगढ़ एक खोज : इक्कतीसवीं कड़ी : हिंदी सिनेमा का नायाब सितारा : किशोर साहू
21-Aug-2021 12:48 PM
छत्तीसगढ़ एक खोज : इक्कतीसवीं कड़ी :  हिंदी सिनेमा का नायाब सितारा : किशोर साहू

-रमेश अनुपम

22 अगस्त को किशोर साहू की इकतालिसवीं पुण्यतिथि है। उनकी स्मृति को छत्तीसगढ़ सादर प्रणाम करता है।

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में 22 अक्टूबर सन 1915 को कन्हैया लाल साहू के परिवार में जन्म लेने वाले रायगढ़, सक्ति की मिट्टी और धूल में खेलकर बचपन बिताने वाले और राजनांदगांव के स्कूल में पढ़ाई करने वाले किशोर साहू एक दिन हिंदी सिनेमा के इतने बड़े स्टार बन जायेंगे, यह किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा।

यह भी किसने सोचा होगा कि मात्र बाईस साल का छत्तीसगढ़ का यह छैल छबीला, तीखे नैन नक्श और पांच फुट साढ़े आठ इंच का बांका नौजवान सन 1937 में हिंदी सिनेमा की च्ीन और हर दिल अजीज नायिका देविका रानी के साथ बॉम्बे टॉकीज की फिल्म ‘जीवन प्रभात’ में हीरो की मुख्य भूमिका अदा करेगा और रातों रात लाखों लोगों के दिलों में अपनी जगह बना लेगा।

आज यह सोचकर विश्वास नहीं होता है कि छत्तीसगढ़ के इस सपूत ने केवल तेईस वर्ष की उम्र में बॉम्बे टॉकीज के समानांतर अपना खुद का एक प्रोडक्शन हाउस बॉम्बे में खोलकर और उसके बैनर में ‘बहूरानी’ जैसी सुपर-डुपर हिट फिल्म बनाकर हिंदी सिनेमा जगत में देगा।

गौरतलब है कि इस फिल्म का निर्देशन भी उन्होंने स्वयं किया था। इस फिल्म की नायिका उस दौर की मशहूर हिरोइन अनुराधा और मिस रोज थीं।
बाईस साल की उम्र में उस समय की मशहूर अदाकारा ब्यूटीच्ीन देविका रानी के साथ बॉम्बे टॉकीज की फिल्म में हीरो होना और 23 साल की उम्र में अपने खुद का प्रोडक्शन हाउस खोलकर ‘बहूरानी’ जैसी फिल्म का निर्माण तथा निर्देशन करना साथ में नायक की प्रमुख निभाना क्या अपने आप में कोई कम आश्चर्य की बात नहीं है।

चमत्कार का दौर केवल यहीं थमने वाला नहीं था। सन 1940 में उनकी दो फिल्में रिलीज हुई ‘बहूरानी’ और ‘पुनर्मिलन’। ‘पुनर्मिलन’ बॉम्बे टॉकीज की फिल्म थी।

देविका रानी को एक बार फिर बॉम्बे टॉकीज की फिल्म में किशोर साहू को बतौर हीरो लेने के लिए बाध्य होना पड़ा था। इस बार उसके साथ हीरोइन थी स्नेहप्रभा प्रधान, उस जमाने की सबसे सुंदर और चर्चित नायिका। तब तक हिमांशु राय का निधन हो चुका था। बॉम्बे टॉकीज की सारी जिम्मेदारी देविका रानी के ऊपर आ गई थी।

‘बहूरानी’ और ‘पुनर्मिलन’ ने हिंदी सिनेमा में किशोर साहू की अभिनय प्रतिभा के झंडे गाड़ दिए थे। बॉम्बे की सिनेमा नगरी में चारों ओर अगर किसी का शोर मच रहा था तो वह थे हर दिल अजीज हमारे किशोर साहू का।

इसके बाद ‘कुंवारा बाप’ और ‘शरारत’ जैसी फिल्में आई दोनों के हीरो थे किशोर साहू और उनके साथ खूबसूरत हीरोइन थीं प्रतिमा दास गुप्ता। दोनों ही फिल्में खूब चलीं। इसके बाद तो जैसे किशोर साहू हिंदी सिनेमा के सिरमौर बन गए।

वह हिंदी सिनेमा का शुरुवाती और स्वर्णिम दौर था। हिंदी सिनेमा को एक नई मंजिल की तलाश थी और किशोर साहू, अशोक कुमार जैसे हीरो हिंदी सिनेमा के मंजिल थे। दोनों ही मध्यप्रदेश के कोहिनूर थे। एक खंडवा के तो दूसरे छत्तीसगढ़ के।

फिर सन 1943 में ‘राजा’ जैसी बेहतरीन फिल्म आई। जिसके निर्माता, निर्देशक, नायक कोई और नहीं किशोर साहू थे।

उस समय ‘राजा’ फिल्म ने जैसे हिंदी सिनेमा में उथल-पुथल मचा दी थी। देश के सारे बड़े अखबार किशोर साहू की इस फिल्म की प्रशंसा से भरे पड़े थे।

‘टाईम्स ऑफ इंडिया’ ने लिखा- ‘राजा’ अभिनेता निदेशक किशोर साहू की महान व्यैक्तिक उपलब्धि है।’

‘अमृत बाजार पत्रिका’ में छपा- ‘राजा’ निर्माण और भाव की गहराई की महानतम नवीनता प्रदर्शित करता है और यही नहीं, दिग्दर्शन में भी बढिय़ा सफाई और भव्यता है।’

हिंदी सिनेमा के बेमिसाल अभिनेता, निर्देशक, निर्माता, पटकथा लेखक किशोर साहू का जीवन सफलता के नए-नए शिखरों को छूने के लिए बना हुआ था।

सम्राट अशोक के पुत्र कुणाल के जीवन पर आधारित फिल्म ‘वीर कुणाल’ किशोर साहू के लिए किसी महान उपलब्धि से कम नहीं थी। ‘वीर कुणाल’ के निर्माता, निर्देशक, लेखक और अभिनेता कोई और नहीं स्वयं किशोर साहू थे। उनके इस फिल्म की नायिका थी उस जमाने की मशहूर अदाकारा शोभना समर्थ, जो नूतन और तनुजा की मां और काजोल की नानी थी।

1 दिसंबर सन 1945 को यह फिल्म बंबई की नॉवेल्टी थियेटर में शान से रिलीज की गई। उस दिन इस फिल्म का उद्घाटन जिसके द्वारा हुआ वह वाक्या भी कम रोमांचक और दिलचस्प नहीं है।

सरदार वल्लभ भाई पटेल उन दिनों अपने सुपुत्र दया भाई पटेल के यहां बंबई आए हुए थे। दयाभाई पटेल उन दिनों मरीन ड्राइव में रहते थे। किशोर साहू को लगा ‘वीर कुणाल’ जैसी ऐतिहासिक महत्व की फिल्म के उद्घाटन के लिए सरदार पटेल से बड़ा और बेहतर नाम और कोई दूसरा नहीं हो सकता है। उन दिनों पंडित जवाहरलाल नेहरु और सरदार वल्लभ भाई पटेल स्वाधीनता आंदोलन और कांग्रेस के बड़े नायक थे।
(शेष अगले हफ्ते)

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