विचार / लेख

नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन से बेखबर, अनछुआ हिंदी मीडिया
27-Aug-2021 1:39 PM
नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन से बेखबर, अनछुआ हिंदी मीडिया

-गिरीश मालवीय

 

नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन को लॉन्च किए गए चार दिन हो गए हैं। हिंदी मीडिया ने सरकारी विज्ञप्ति छापने के अलावा एक लेख भी उसका विश्लेषण करने वाला नहीं लिखा जिसमें इस योजना के हानि लाभ की कोई चर्चा हो।

देश की सम्पति को इतने बड़े पैमाने पर ठिकाने लगाने की स्कीम आज से पहले किसी सरकार ने नही घोषित की है, क्या हिंदी मीडिया का यह दायित्व नहीं बनता है कि अपने पाठकों अपने पाठकों/दर्शकों को इस योजना के बारे में सरकार के पक्ष से इतर विश्लेषणात्मक, तुलनात्मक जानकारी दे?

चलिए हिंदी मीडिया भी छोड़ दीजिए अंग्रेजी मीडिया में जो एक मात्र ढंग का लेख इस विषय मे आया है वह भी विदेशी मीडिया में आया है जिसे सभी साभार प्रस्तुत कर रहे हैं वह लेख है एंडी मुखर्जी का जो शायद ब्लूमबर्ग के लिए सबसे पहले लिखा गया है।

इस लेख में नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन की तुलना साल 2013 में ऑस्ट्रेलिया सरकार द्वारा में घोषित एसेट रीसाइक्लिंग प्लान से की गई है।

इस लेख में बताया गया है कि ऑस्ट्रेलिया के कंपटीशन एवं कंज्यूमर कमिशन चेयरमैन ने पिछले महीने ही इस विषय मे  बयान दिया है, ‘संस्थानों का निजीकरण उनकी कार्य क्षमता और अर्थव्यवस्था की एफिशिएंसी बढ़ाने के लिए किया जाना चाहिए। सभी सरकारी संपत्ति का निजीकरण नहीं किया जाना चाहिए।’

इस लेख में रेलवे में मोनेटाइजेशन स्कीम को लेकर सिंगापुर का उदाहरण दिया सिंगापुर सरकार को अपनी सबअर्बन ट्रेन का वापस से  नेशनलाइजेशन करना पड़ा क्योंकि जिस  प्राइवेट ऑपरेटर को उन्होंने लीज पर दिया उसने उसमे इसमें जरूरी निवेश नहीं किया, जिसकी वजह से बार-बार ब्रेकडाउन होने लगे थे और लोगों में गुस्सा बढ़ रहा था।

पॉवर के क्षेत्र में मोनेटाइजेशन पॉलिसी के दुष्परिणाम को भी इस लेख में आस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स इलाके के उदाहरण से समझाया गया है कि वहां पिछले 5 साल में इलेक्ट्रिसिटी की कीमत दोगुनी हो चुकी है। बिजली के खंभे और तार समेत पूरे सिस्टम का निजीकरण कर दिया गया था जब बिजली महंगी होने लगी और लोगों में गुस्सा बढऩे लगा तो सरकार को एनर्जी अफॉर्डेबिलिटी पैकेज लाकर लोगों के बढ़ते भार को कम करना पड़ा।

इस लेख से स्पष्ट है कि अन्य देशों में ऐसी पॉलिसी का विश्लेषण यह बताता है कि यह प्रयोग इतना सफल नहीं हुआ है, अफसोस की बात है कि अनुवाद के अलावा ऐसे ही अन्य लेख कम से कम हिंदी में तो बिल्कुल भी उपलब्ध नहीं है।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news