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क्या कानून में संशोधन से रुकेंगे बाल विवाह
18-Dec-2021 2:22 PM
क्या कानून में संशोधन से रुकेंगे बाल विवाह

भारत में केंद्र सरकार ने भले ही लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाकर 21 साल करने का फैसला किया हो, लेकिन इससे बाल विवाह पर अंकुश लगाना आसान नहीं होगा. समस्या की जड़ें सामाजिक और आर्थिक हैं.

  डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-

केंद्र सरकार के ताजा फैसले के बाद यही सवाल पूछा जा रहा है किया कानून में संशोधन से बाल विवाह पर अंकुश लगेगा. पहले जब न्यूनतम उम्र 18 साल थी तब भी पश्चिम बंगाल समेत देश के कई दूसरे राज्यों से अक्सर बाल विवाह की खबरें सामने आती रहती थी. खासकर कोरोना महामारी के दौरान तो बाल विवाह की तादाद और बढ़ी है. वर्ष 2011 की जनगणना में यह तथ्य सामने आया था कि युवतियों के बाल विवाह के मामले में बंगाल सबसे आगे है. राज्य में यह औसत 7.8 फीसदी था जो राष्ट्रीय औसत (3.7 फीसदी) के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा था.

इन आंकड़ों में भले मामूली हेरफेर हुआ हो, कुल मिला कर हालात जस के तस हैं. अब 43 साल बाद कानून में यह अहम बदलाव होने जा रहा है. मोटे अनुमान के मुताबिक, देश में हर साल लगभग 15 लाख लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में होती है. 15 से 19 साल की उम्र की लगभग 16 प्रतिशत लड़कियां शादीशुदा हैं.

ताजा फैसला
बाल विवाह पर अंकुश लगाने के प्रयास के तहत केंद्र ने अब लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है. नए प्रस्ताव के मंजूर होने के बाद अब सरकार बाल विवाह निषेध कानून, स्पेशल मैरिज एक्ट और हिंदू मैरिज एक्ट में संशोधन करेगी. नीति आयोग में जया जेटली की अध्यक्षता में साल 2020 में बने टास्क फोर्स ने इसकी सिफारिश की थी. इस टास्क फोर्स का गठन "मातृत्व की आयु से संबंधित मामलों, मातृ मृत्यु दर को कम करने, पोषण स्तर में सुधार और संबंधित मुद्दों" की जांच कर उचित सुझाव देने के लिए किया गया था.

टास्क फोर्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि पहले बच्चे को जन्म देते समय लड़की की उम्र 21 वर्ष होनी चाहिए. यूनीसेफ ने दो साल पहले अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि देश के कई राज्यों में बाल विवाह के मामले अक्सर सामने आने के बावजूद बहुत कम मामलों में ही दोषियों के खिलाफ कार्रवाई हो पाती है.

वर्ष 1929 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार की ओर से बनाए गए एक कानून के तहत शादी के लिए लड़कियों की न्यूनतम उम्र 14 साल और लड़कों की 18 साल तय की गई थी. वर्ष 1978 में इसमें संशोधन कर इसे बढ़ा कर क्रमशः 18 और 21 साल कर दिया गया था. लेकिन ऐसे तमाम संशोधनों के बावजूद बाल विवाह पर पूरी तरह अंकुश नहीं लगाया जा सका है. यही वजह है कि अब ताजा फैसले के बाद सवाल उठने लगा है कि क्या इससे बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई पर पूरी तरह अंकुश लगाया जा सकेगा? भारत में ही सबसे ज्यादा बाल विवाह होते हैं.

बंगाल में भी
पश्चिम बंगाल जैसा राज्य भी बाल विवाह के मामले में शीर्ष तीन राज्यों में शामिल हैं. सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद इस पर ठोस तरीके से अंकुश नहीं लगाया जा सका है. यह स्थिति तब है जब ममता बनर्जी सरकार ने बाल विवाह पर अंकुश लगाने के लिए कन्याश्री समेत कई योजनाएं शुरू की हैं.

कलकत्ता हाईकोर्ट ने बीते साल आए अम्फान तूफान के बाद राज्य के ग्रामीण इलाकों में बढ़ते बाल विवाह की घटनाओं पर चिंता जताते हुए राज्य बाल संरक्षण आयोग को इस पर अंकुश लगाने के लिए ठोस कदम उठाने का निर्देश दिया था. आयोग में बाल विवाह और बाल तस्करी के मामले देखने वाले आयोग की विशेष सलाहकार सुदेष्णा राय बताती हैं, "बीते साल अम्फान और कोरोना महामारी के दौरान ऐसी दो सौ से ज्यादा शिकायतें मिली थीं. इनमें से ज्यादातर सही पाई गईं."

गैर-सरकारी संगठन सेव द चिल्ड्रेन के उपनिदेशक (पूर्व) चित्तप्रिय साधु कहते हैं, "पश्चिम बंगाल में पहले से ही दूसरे राज्यों के मुकाबले ज्यादा बाल विवाह होते रहे हैं. नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) की चौथी रिपोर्ट में कहा गया था कि 20 से 24 साल की 41 फीसदी महिलाओं का विवाह 18 साल से कम उम्र में ही हो गया था."

समस्या की असली वजह गरीबी
भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम), कोलकाता में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे अनूप सिन्हा कहते हैं, "अम्फान के बाद ऐसे मामलों का तेजी से बढ़ना कोई आश्चर्यजनक नहीं है. गरीबी ही इस समस्या की मूल वजह है. ऐसे में सरकार की भूमिका बेहद अहम हो जाती है. ऐसे परिवारों की शिनाख्त कर पंचायतों के जरिए उनको आर्थिक सहायता पहुंचा कर समस्या की गंभीरता को काफी हद तक कम किया जा सकता है." उनका कहना है कि कोई विकल्प नहीं होने की वजह से ही गरीब परिवार बाल विवाह का विकल्प चुन रहे हैं.

समाजशास्त्रियों का कहना है कि देश के खासकर ग्रामीण इलाकों में अब भी बाल विवाह की समस्या गंभीर है. इसके लिए सामाजिक और आर्थिक वजहें जिम्मेदार हैं. समाजशास्त्र के प्रोफेसर मनोहर सेनगुप्ता कहते हैं, "महज कानून बनाने से अगर इस सामाजिक बुराई पर अंकुश संभव होता तो अब तक यह समस्या दूर हो गई होती. इसके लिए लोगों में जागरूकता फैलाने के साथ ही पंचायतों की भागीदारी के जरिए जमीन पर इस कानून को लागू करना जरूरी है. इसके अलावा सरकार को गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिल कर बाल विवाह की मूल वजह का भी ठोस समाधान निकालना होगा." (dw.com)

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