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मोदी आज गोवा में, जानिए क्यों मनाया जाता है, गोवा लिब्रेशन डे
19-Dec-2021 12:32 PM
मोदी आज गोवा में, जानिए क्यों मनाया जाता है, गोवा लिब्रेशन डे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को गोवा में गोवा मुक्ति दिवस (गोवा लिब्रेशन डे) समारोह में शामिल होंगे.

इस दौरान प्रधानमंत्री ऑपरेशन विजय में शामिल रहे पूर्व सैनिकों को सम्मानित भी करेंगे.

गोवा की आज़ादी में अहम भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के सम्मान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आग्वाडा फोर्ट जेल में संग्रहालय का अनावरण भी करेंगे.

इसके अलावा मोदी गोवा में कई विकास कार्य योजनाओं का उद्घाटन भी करेंगे.

गोवा लिब्रेशन डे हर साल 19 दिसंबर को मनाया जाता है. इस दिन गोवा में सरकारी छुट्टी भी रहती है.

भारतीय सेना ने गोवा को पुर्तगाल के शासन से मुक्त कराने के लिए ऑपरेन विजय चलाया था. इस ऑपरेशन के कामयाब होने के बाद गोवा भारत में शामिल हो गया था. इसी की याद में गोवा लिब्रेशन डे मनाया जाता है.

भारतीय सेना के ऑपरेशन विजय के 36 घंटों के भीतर ही पुर्तगाली जनरल मैनुएल एंटोनियो वसालो ए सिल्वा ने "आत्मसमर्पण" के दस्तावेज़ पर दस्तख़त कर दिए थे.

गोवा का इतिहास
वास्को डी गामा 1498 में भारत आए और इसके 12 वर्षों के भीतर पुर्तगालियों ने गोवा पर कब्ज़ा जमा लिया था.

1510 से शुरू हुआ पुर्तगाली शासन गोवा के लोगों को 451 सालों तक झेलना पड़ा.

लेकिन गोवा को ये आज़ादी आसानी से नहीं मिली थी.

बँटवारे और भयावह सांप्रदायिक हिंसा के बाद भारत को अंग्रेज़ों से आज़ादी मिल गई लेकिन गोवा पुर्तगाल के ही कब्ज़े में रहा.

यहां तक कि 1954 में फ़्रांसीसी पांडिचेरी छोड़कर चले गए मगर गोवा आज़ाद नहीं हो पाया.

गोवा में ममता बनर्जी की बढ़ी दिलचस्पी की वजह क्या है?
भारत सरकार ने 1955 में गोवा पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए. इन प्रतिबंधों के जवाब में पुर्तगाल ने क्या किया, इसकी जानकारी गोवा में रहने वाले एक बुज़ुर्ग होटल व्यवसायी ने बीबीसी को दी थी. तब हिगिनो रोबेलो की उम्र 15 साल थी.

उन्होंने बताया, "हम वास्को में रहते थे जो मुख्य पोर्ट था. भारतीय प्रतिबंध के बाद नीदरलैंड्स से आलू, पुर्तगाल से वाइन, पाकिस्तान से चावल और सब्ज़ियां और श्रीलंका (तब सीलोन) से चाय भेजी जाने लगी."

पुर्तगाली दमन से परेशान गोवा के हिंदुओं और कैथोलिक ईसाइयों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरणा ली और ख़ुद को संगठित करना शुरू किया.

गोवा से पुर्तगालियों को हटाने के काम में एक क्रांतिकारी दल सक्रिय था, उसका नाम था- आज़ाद गोमांतक दल. विश्वनाथ लवांडे, नारायण हरि नाईक, दत्तात्रेय देशपांडे और प्रभाकर सिनारी ने इसकी स्थापना की थी.

इनमें से कई लोगों को पुर्तगालियों ने गिरफ़्तार करके लंबी सज़ा सुनाई और इनमें से कुछ लोगों को तो अफ़्रीकी देश अंगोला की जेल में रखा गया.

विश्वनाथ लवांडे और प्रभाकर सिनारी जेल से भागने में कामयाब रहे और लंबे समय तक क्रांतिकारी आंदोलन चलाते रहे.

आख़िरकार आज़ादी कैसे मिली?
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने आज़ादी मिलने से कुछ महीने पहले एक बयान में कहा कि "गोवा की पराधीनता भारत के गाल पर एक छोटी-सी फुंसी है, जिसे अंग्रेज़ों के जाते ही आसानी से मसलकर हटाया जा सकता है."

गोवा को 19 दिसंबर 1961 को कैसे आज़ादी मिली, इसकी कहानी बहुत दिलचस्प है. जिस फुंसी की बात नेहरू कर रहे थे, उसे मसलना उतना आसान नहीं था जितना उन्होंने सोचा था.

पुर्तगाल आसानी से गोवा को छोड़ने के मूड में नहीं था, वह नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन (नेटो) का सदस्य था और नेहरू किसी सैनिक टकराव से हिचक रहे थे.

प्रधानमंत्री नेहरू ने गोवा की आज़ादी की आज़ादी के लिए कई कूटनीतिक प्रयास किए लेकिन वो नाकाम रहे.

1961 के नवंबर महीने में पुर्तगाली सैनिकों ने गोवा के मछुआरों पर गोलियां चलाईं जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई, इसके बाद माहौल बदल गया. भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री केवी कृष्णा मेनन और नेहरू ने आपातकालीन बैठक की.

इस बैठक के बाद 17 दिसंबर को भारत ने 30 हज़ार सैनिकों को ऑपरेशन विजय के तहत गोवा भेजने का फ़ैसला किया, इस ऑपरेशन में नौसेना और वायुसेना भी शामिल थी.

भारतीय सेना की बढ़त को रोकने के लिए पुर्तगालियों ने वास्को के पास का पुल उड़ा दिया. लेकिन 36 घंटे के भीतर पुर्तगाल ने कब्ज़ा छोड़ने का फ़ैसला कर लिया.

साढ़े चार सौ साल तक पुर्तगाली राज के बाद 1961 में एक नए गोवा का जन्म हुआ जो आज़ाद था और पश्चिम और पूर्वी संस्कृति का एक हसीन संगम भी था.

पुर्तगाली शासन से आज़ादी के 60 साल बाद भी गोवा की संस्कृति और ज़िंदगी पर पुर्तगाल का असर है.

गोवा अब पर्यटन के लिए दुनियाभर में अपनी पहचान बना चुका है और यहां पर्यटन नावों पर अब भी पुर्तगाली संगीत सुनाई है.

गोवा में पुर्तगाल की सबसे जीती जागती निशानी यहां का ईसाई धर्म है. यहां के ईसाइयों के नाम भी अधिकतर पुर्तगाली ही हैं.

पुर्तगाल के शासन के दौरान बहुत से स्थानीय निवासियों ने ईसाई धर्म अपना लिया था. इनमें स्थानीय ब्राह्मण भी शामिल थे.

गोवा के अधिकतर बड़े गिरजाघर पुर्तगाल के काल में ही बने हैं. कैथोलिक चर्च गोवा के ईसाइयों की ज़िंदगी में अहल रोल अदा करता है. यह परंपरा पुर्तगाल के काल से चली आ रही है.(bbc.com)

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