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शादी की उम्र 21 क्यों नहीं चाहती कुछ लड़कियाँ?
20-Dec-2021 5:08 PM
शादी की उम्र 21 क्यों नहीं चाहती कुछ लड़कियाँ?

-दिव्या आर्य

भारत में शादी करने की न्यूनतम उम्र लडक़ों के लिए 21 और लड़कियों के लिए 18 है। बाल विवाह रोकथाम कानून 2006 के तहत इससे कम उम्र में शादी गैर-कानूनी है, जिसके लिए दो साल की सजा और एक लाख रुपए का जुर्माना हो सकता है। अब सरकार लड़कियों के लिए इस सीमा को बढ़ाकर 21 करना चाह रही है और संबंध में संसद में बिल पेश करने की तैयारी की जा रही है। पर इस बिल को लेकर कई विपक्षी दलों और संगठनों की अपनी शंकाएं भी हैं। इससे पहले सांसद जया जेटली की अध्यक्षता में 10 सदस्यों के टास्क फोर्स का गठन किया गया था जिसे अपने सुझाव नीति आयोग को देने थे।
भारत के बड़े शहरों में लड़कियों की पढ़ाई और करियर के प्रति बदलती सोच की बदौलत उनकी शादी अमूमन 21 साल की उम्र के बाद ही होती है।
यानी इस फैसले का सबसे ज्यादा असर छोटे शहरों, कस्बों और गाँवों में होगा, जहाँ लडक़ों के मुकाबले लड़कियों को पढ़ाने और नौकरी करवाने पर जोर कम है, परिवार में पोषण कम मिलता है, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच मुश्किल है और उनकी शादी जल्दी कर देने का चलन ज़्यादा है।
बाल विवाह के मामले भी इन्हीं इलाक़ों में ज़्यादा पाए जाते हैं।
क्या शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाने से इन लड़कियों की जिंदगी सँवर जाएगी?
टास्क फोर्स के साथ इन्हीं सरोकारों पर जमीनी अनुभव बाँटने और प्रस्ताव से असहमति जाहिर करने के लिए कुछ सामाजिक संगठनों ने ‘यंग वॉयसेस नेशनल वर्किंग ग्रुप’ बनाया।
इसके तहत जुलाई महीने में महिला और बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा आदि पर 15 राज्यों में काम कर रहे 96 संगठनों की मदद से 12 से 22 साल के 2,500 लडक़े-लड़कियों से उनकी राय जानने की कवायद की गई।
सीधे से सवाल के जवाब बहुत टेढ़े निकले। राय एक नहीं थी, बल्कि सरकार को कई तरीके से आईना दिखाते हुए लड़कियों ने कुछ और माँगे सामने रख डालीं।
जैसे राजस्थान के अजमेर की ममता जांगिड़, जिन्हें न्यूनतम उम्र बढ़ाने का ये प्रस्ताव सही नहीं लगा, जबकि वो ख़ुद बाल विवाह का शिकार होते-होते बची थीं।
आठ साल की उम्र में हो जाता बाल विवाह
ममता अब 19 साल की हैं, लेकिन जब उनकी बहन 8 साल की थी और वो 11 साल की, तब उनके परिवार पर उन दोनों की शादी करने का दबाव बना।
राजस्थान के कुछ तबकों में प्रचलित आटा-साटा परंपरा के तहत परिवार का लडक़ा जिस घर में शादी करता है, उस घर को लडक़े के परिवार की एक लडक़ी से शादी करनी होती है।
इसी लेन-देन के तहत ममता और उसकी बहन की शादी की माँग की गई पर उनकी माँ ने उनका साथ दिया और बहुत ताने और तिरस्कार के बावजूद बेटियों की जिंदगी ‘खराब’ नहीं होने दी।
ये सब तब हुआ, जब कानून के तहत 18 साल से कम उम्र में शादी गैर-कानूनी थी। ममता के मुताबिक यह सीमा 21 करने से भी कुछ नहीं बदलेगा।
उन्होंने कहा, ‘लडक़ी को पढ़ाया तो जाता नहीं, ना ही वो कमाती है, इसलिए जब वो बड़ी होती है, तो घर में खटकने लगती है, अपनी शादी की बात को वो कैसे चुनौती देगी, माँ-बाप 18 तक तो इंतजार कर नहीं पाते, 21 तक उन्हें कैसे रोक पाएगी?’
ममता चाहती हैं कि सरकार लड़कियों के लिए स्कूल-कॉलेज जाना आसान बनाए, रोजगार के मौके बनाए, ताकि वो मजबूत और सशक्त हो सकें।
आखिर शादी उनकी मर्जी से होनी चाहिए, उनका फैसला, किसी सरकारी नियम का मोहताज नहीं।
यानी अगर कोई लडक़ी 18 साल की उम्र में शादी करना चाहे, तो वो वयस्क है और उस पर कोई कानूनी बंधन नहीं होने चाहिए।
बाल-विवाह नहीं किशोर-विवाह
विश्व के ज़्यादतर देशों में लडक़े और लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 ही है।
भारत में 1929 के शारदा कानून के तहत शादी की न्यूनतम उम्र लडक़ों के लिए 18 और लड़कियों के लिए 14 साल तय की गई थी।
1978 में संशोधन के बाद लडक़ों के लिए ये सीमा 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल हो गई।
वर्ष 2006 में बाल विवाह रोकथाम कानून ने इन्हीं सीमाओं को अपनाते हुए और कुछ बेहतर प्रावधान शामिल कर, इस कानून की जगह ली।
यूनिसेफ (यूनाइटेड नेशन्स इंटरनेशनल चिल्ड्रन्स फंड) के मुताबिक विश्वभर में बाल विवाह के मामले लगातार घट रहे हैं, और पिछले एक दशक में सबसे तेज़ी से गिरावट दक्षिण एशिया में आई है।
18 से कम उम्र में विवाह के सबसे ज़्यादा मामले उप-सहारा अफ्रीका (35 फीसदी) और फिर दक्षिण एशिया (30 फीसदी) में हैं।
यूनिसेफ के मुताबिक 18 साल से कम उम्र में शादी मानवाधिकारों का उल्लंघन है। इससे लड़कियों की पढ़ाई छूटने, घरेलू हिंसा का शिकार होने और प्रसव के दौरान मृत्यु होने का खतरा बढ़ जाता है।
इसी परिवेश में सरकार के टास्क फोर्स को लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने पर फैसला उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के हित को ध्यान में रखते हुए करना है।
‘प्री-मैरिटल सेक्स’
भारत में प्रसव के दौरान या उससे जुड़ी समस्याओं की वजह से माँ की मृत्यु होने की दर में काफ़ी गिरावट दर्ज की गई है।
यूनिसेफ के मुताबिक भारत में साल 2000 में 1,03,000 से गिरकर ये आँकड़ा साल 2017 में 35,000 तक आ गया। फिर भी ये देश में किशोरावस्था में होने वाली लड़कियों की मौत की सबसे बड़ी वजह है।
शादी की उम्र बढ़ाने से क्या इस चुनौती से निपटने में मदद मिलेगी?
‘यंग वॉयसेस नेशनल वर्किंग ग्रुप’ की दिव्या मुकंद का मानना है कि माँ का स्वास्थ्य सिर्फ गर्भ धारण करने की उम्र पर निर्भर नहीं करता, ‘गरीबी और परिवार में औरत को नीचा दर्जा दिए जाने की वजह से उन्हें पोषण कम मिलता है, और ये चुनौती कुछ हद तक देर से गर्भवती होने पर भी बनी रहेगी।’
जमीनी हकीकत थोड़ी पेचीदा भी है।
भारत में ‘एज ऑफ कन्सेंट’, यानी यौन संबंध बनाने के लिए सहमति की उम्र 18 है। अगर शादी की उम्र बढ़ गई, तो 18 से 21 के बीच बनाए गए यौन संबंध, ‘प्री-मैरिटल सेक्स’ की श्रेणी में आ जाएँगे।
शादी से पहले यौन संबंध क़ानूनी तो है, लेकिन समाज ने इसे अब भी नहीं अपनाया है।
‘यंग वॉयसेस नेशनल वर्किंग ग्रुप’ की कविता रत्ना कहती हैं, ‘ऐसे में गर्भ निरोध और अन्य स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं तक औरतों की पहुँच कम हो जाएगी या उन्हें ये बहुत तिरस्कार सह कर ही मिल पाएँगी।’
उम्र के हिसाब से नहीं होनी चाहिए शादी
देशभर से लड़कियों से की गई रायशुमारी में कई लड़कियाँ न्यूनतम उम्र को 21 साल तक बढ़ाए जाने के हक़ में भी हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि कानून की वजह से वो अपने परिवारों को शादी करने से रोक पाएँगी।
साथ ही वो ये भी मानती हैं कि उनकी जिंदगी में कुछ और नहीं बदला और वो सशक्त नहीं हुईं तो ये कानून बाल विवाह को रोकेगा नहीं, बल्कि वो छिपकर किया जाने लगेगा।
दामिनी सिंह उत्तर प्रदेश के हरदोई के एक छोटे से गाँव में रहती हैं। करीब 70 परिवारों वाले गाँव में ज़्यादातर लोग खेती करते हैं।
दामिनी के मुताबिक शादी देर से ही होनी चाहिए, लेकिन उम्र की वजह से नहीं। जब लडक़ी अपने पैसे कमाने लगे, आत्मनिर्भर हो जाए, तभी उसका रिश्ता होना चाहिए फिर तब उसकी उम्र जो भी हो।
उनके गाँव में सिर्फ पाँच परिवारों में औरतें बाहर काम करती हैं। दो स्कूल में पढ़ाती हैं, दो आशा वर्कर हैं और एक आंगनबाड़ी में काम करती हैं। इनके मुकाबले 20 परिवारों में मर्द नौकरीपेशा हैं।
दामिनी ने बताया, ‘हमारे गाँव से स्कूल छह किलोमीटर दूर है, दो किलोमीटर की दूरी हो तो वो पैदल चली जाएँ, लेकिन उससे ज़्यादा के लिए गरीब परिवार रास्ते के साधन पर लड़कियों पर पैसा नहीं खर्च करना चाहते, तो उनकी पढ़ाई छूट जाती है और वो कभी अपना अस्तित्व नहीं बना पातीं।’
दामिनी के मुताबिक, सरकार को लड़कियों के लिए प्रशिक्षण केंद्र खोलने चाहिए ताकि वो अपने पैरों पर खड़े होकर अपने फैसले खुद कर सकें, और उनके लिए लडऩा पड़े तो आवाज उठा सकें।
लड़कियों को बोझ समझनेवाली सोच
झारखंड के सराईकेला की प्रियंका मुर्मू सरकार के प्रस्ताव के खिलाफ हैं और दामिनी और ममता की ही तरह बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की जरूरत की बात रखती हैं।
उनके मुताबिक मूल समस्या लड़कियों को बोझ समझने वाली सोच है, और जब तक वो नहीं बदलेगी, तय उम्र 18 हो या 21, परिवार अपनी मनमर्जी ही करेंगे।
लेकिन अगर लड़कियाँ कमाने लगें, तो उन पर शादी का दबाव कम हो जाएगा।
प्रियंका का दावा है कि उनके इलाक़े में अब भी बहुत बाल विवाह हो रहे हैं, ‘लोगों को मौजूदा कानून की जानकारी है, लेकिन डर नहीं, किसी मामले में सख्ती से कार्रवाई हो तो कुछ बदलाव आए, वर्ना 21 साल करने से भी कुछ नहीं बदलेगा, क्योंकि घर में लडक़ी की आवाज़ दबी ही रहेगी।’
वो चाहती हैं कि लड़कियों को लडक़ों के बराबर हक़ मिले, ताकि वो ये बेहतर तय कर सकें कि उन्हें शादी कब करनी है।
गलत इस्तेमाल का डर
शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाए जाने से जुड़ा एक डर ये भी है कि लड़कियों की जगह उनके माँ-बाप अपने मतलब के लिए इसका गलत इस्तेमाल कर सकते हैं।
दिव्या मुकंद के मुताबिक, ‘18 साल की वयस्क लड़कियाँ जब परिवार के खिलाफ अपनी पसंद के लडक़े से शादी करना चाहेंगी, तो मां-बाप को उनकी बात ना मानने के लिए क़ानून की आड़ में एक रास्ता मिल जाएगा, नतीजा ये कि लडक़ी की मदद की जगह ये उनकी मर्जी को और कम कर देगा और उनके लिए जेल का खतरा भी बन जाएगा।’
इस कवायद में ज़्यादातर लड़कियों ने इस बात पर जोर दिया कि सरकार जो भी फैसला ले, उससे पहले उनकी बात को तरजीह दे।
उनके मुताबिक वो शादी को अपनी जिंदगी का केंद्र बनाए जाने से थक गई हैं, उनकी जिंदगी की दशा और दिशा वो और पैमानों पर तय करना चाहती हैं।
कविता ने बताया, ‘वो बस अपने मन का करने की आजादी और मजबूती चाहती हैं। सरकार इसमें मदद करे तो सबसे बेहतर।’ (bbc.com/hindi)

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