विचार / लेख

तभी शिव बचे रहेंगे...
02-Mar-2022 12:53 PM
 तभी शिव बचे रहेंगे...

-आयुष चतुर्वेदी

आस्तिकता और नास्तिकता के बीच जूझती मानवता में जब भी ईश्वर के बारे में सोचता हूँ तो पहला चेहरा शिव का दिखता है बचपन से ही। बाई डिफॉल्ट।
तमाम बहसें की जा सकती हैं कि शिव काल्पनिक हैं या वास्तविक। यह बहसें ज़रूरी भी हैं। लेकिन शिव लोक के देवता हैं। लोगों के देवता। आप उस गरीब किसान-मजदूर को नास्तिकता का कौन-सा चैप्टर पढ़ाएंगे जो रोजाही के बीस रुपये कमाकर भी बाबा को धन्यवाद देता है।

शिव उसके बाबा हैं। भोले बाबा। शंकर।
पिंडी पर टिकुली सटा के उसे शंकर बना देने वाले बच्चे से जबरन उसका शंकर कहाँ से छीन पाएंगे हम? चलिए थोड़ी-सी आस्तिकता बची रहने देते हैं उसके अंदर। और शिव सोने-चांदी वाले देवता नहीं हैं। हीरे-जवाहरात उनके लिए नाक के बाल बराबर हैं। शिव को देवों ने पूजा, दानवों ने भी। आज भी शिव को जमींदार भी पूजते हैं, मजदूर भी। लेकिन शिव मजदूरों के ही साथ हैं। अगर हैं तो!

जानवरों, पेड़-पौधों, बर्फ-पहाड़ के साथ जीने वाले शिव मजलूमों की नुमाइंदगी करते हैं। तमाम सवाल किए जा सकते हैं, तर्क दिए जा सकते हैं कि शिव थे ही नहीं। मैं भी कह रहा हूँ नहीं थे। लेकिन शिव के होने के लिए क्या शिव का होना जरूरी है?
क्या बर्फ, जानवर, साँप, नदी, चाँद, पहाड़ का होना शिव का होना नहीं है? आज के शिव यही हैं। तमाम पर्यावरणविदों से बड़े पर्यावरणविद। अपने-आप में एक क्रांतिकारी और एक विद्रोही-शंकर!
प्रकृति से प्रेम करना, दुनिया से प्रेम करना, लोगों से प्रेम करना, दबाए गए और उपेक्षित हुए लोगों से खासा स्नेह-सहानुभूति और सॉलिडैरिटी रखना भी शिव से सीखा जा सकता है। शिव कुछ नहीं तो एक प्रतीक हैं, एक ऐसे प्रतीक कि जिसके मूल्यों के बिना मनुष्य शव समान है।

और उन मूल्यों के साथ शिव समान।
शिव के नाम पर गांजा पीकर, सुट्टा मारकर, भांग पीसकर पीने से आप खुद के साथ-साथ शिव का भी गला घोंट रहे हैं। शिव के नाम पर दूध की नदियाँ ज़मीन पर बहाकर आप शिव को डुबा रहे हैं। शिव का होना यह होना नहीं है।
एक बच्चे की पूजा की अलमारी में छोटी-सी पत्थर की पिंडी ही शिव है। पत्थरों में शिव हैं, और उस पत्थर को पीसकर अपने कारखानों और इमारतों की बुनियाद बनाने वाले लोग ढोंगी हैं। वे शिव को पीस रहे हैं। इस सभ्यता ने शिव जैसों को पीसा ही तो है।

एक पेड़ को सोफा बनने से अगर आप बचा लेते हैं तो आप शिव को बचा लेते हैं। चिपको आंदोलन में पेड़ से चिपकना था। वो चिपकना बचा रहे, तभी शिव बचे रहेंगे।
और शिव करें, कि शिव को कभी राजनीति में न लाया जाए। और राम जैसा हश्र किसी देवता का न हो!
 

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